बिहार में शायद ही कोई एक ऐसा दिन होता है जब स्वास्थ्य विभाग विवादों के घेरे में नहीं रहता है. अब तो नीतीश सरकार की फजीहत, वो चाहे मीडिया में हो या कोर्ट से फटकार, इन सबका यह विभाग मुख्य श्रोत बनता जा रहा है. टीकाकरण को लेकर बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय के दावे के कारण जो विवाद शुरू हुआ था वो अभी थमा भी नहीं था कि मुजफ्फरपुर में अस्थायी रूप से 780 लोगों की नियुक्तियां आख़िरकार रद्द करनी पड़ी. जिसकी अधिसूचना राज्य के स्वास्थ्य समिति ने शनिवार देर शाम जारी की.
इस नियुक्ति प्रकरण में दिलचस्प बात यह है कि अखबार दैनिक भास्कर में ये धांधली की खबर छपी और जिलाधिकारी ने जांच का आदेश दिया, जिसमें ये सही पाया गया, लेकिन उसके बाद इस आधार पर कि इन्हें फ़िलहाल हटा दिया जायेगा तो वैक्सीन देने के काम पर इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा नियुक्त को रद्द करने के फैसले को रोक दिया गया. हालांकि, फिर अख़बार में ख़बर छपने के बाद राज्य सरकार ने पूरी नियुक्ति को रद्द किया. इस प्रकरण में अगर वहां के सिविल सर्जंन की मानें तो एक जनता दल विधान पार्षद और एक सांसद के कहने पर कुछ लोगों को उन्होंने रखा, लेकिन उनके मनमुताबिक़ संख्या में लोगों को ना रखने के कारण उन्होंने बवाल खड़ा किया और इस मामले में सरकार की फ़जीहत हुई.
इस विवाद से पूर्व वैक्सीन के सम्बंध में भी नीतीश सरकार के दावे पर भी अब शक की सुई घूम रही है. राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने तीन दिन पूर्व एक दिन में छह लाख टीके देने का दावा कर दिया, लेकिन राज्य के स्वास्थ्य समिति के हर दिन के इस वैक्सीन कार्यक्रम से सम्बंधित आँकड़े से ना इसका मिलान हो रहा था और ना विभाग का कोई अधिकारी सफ़ाई देने के लिए तैयार था.
हालांकि, इस सम्बंध में भी जब अख़बारों में सवाल उठाया गया तो शनिवार को यह सफ़ाई दी गयी कि अख़बार एकतरफा ख़बर छाप रहे हैं. इस बीच दवा के फ़्रंट पर राज्य में ब्लैक फ़ंगस के मरीज़ों को काफ़ी कठिनाई का सामना करना पर रहा है. केंद्र से मिलने वाली इस बीमारी की आवश्यक दवा की आपूर्ति नियमित ना होने के कारण AIIMS पटना ने अपने वेंडर से दवा मंगवाना शुरू कर दिया है.
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इससे पूर्व कोरोना से हुई मौतों के सिलसिले में पटना हाईकोर्ट ने शुक्रवार को अपने फ़ैसले में कड़ी टिप्पणी कहते हुए कहा था कि राज्य सरकार के अधिकारी, चाहे जिस कारण से हो लेकिन मौत का आंकड़ा सार्वजनिक करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखते. नीतीश कुमार के लिए दिक्कत है कि अब इन सारे फ़्रंट पर सार्वजनिक फ़ज़ीहत होने के बाद वो लालू रबड़ी शासन के ऊपर दोषारोपण भी नहीं कर सकते क्योंकि पंद्रह वर्षों से अधिक उनका ही शासन हैं. दूसरा वो ख़ुद इस विभाग की नियमित मॉनिटरिंग करते रहते हैं.
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