- बिहार चुनाव के लिए एनडीए के भीतर सीट बंटवारे पर अब तक सहमति नहीं बन पायी है
- चिराग पासवान अपनी पार्टी लोजपा के लिए कम से कम पच्चीस से तीस विधानसभा सीटों की मांग पर अड़े हुए हैं
- जीतन राम मांझी ने एनडीए नेतृत्व को साफ चेतावनी दी है कि उन्हें पंद्रह सीटों से कम मंजूर नहीं हैं
बिहार विधानसभा चुनाव नज़दीक हैं और एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के भीतर सीट बंटवारे को लेकर सियासी खींचतान चरम पर पहुंच गई है. चिराग पासवान की खामोशी और जीतन राम मांझी के तल्ख तेवर इस बात का संकेत हैं कि गठबंधन के भीतर सबकुछ ठीक नहीं चल रहा. जहां चिराग पासवान अपनी पार्टी लोजपा (रामविलास) के लिए 25 से 30 सीटों की मांग पर अड़े हुए हैं, वहीं मांझी ने साफ चेतावनी दी है कि उन्हें 15 सीटों से कम मंजूर नहीं. दिल्ली में बीजेपी नेताओं और चिराग पासवान के बीच हुई मुलाकात के बावजूद सीट शेयरिंग पर सहमति नहीं बन सकी है. चिराग का रुख अब और कड़ा दिख रहा है, उन्होंने बातचीत की जिम्मेदारी अपने बहनोई अरुण भारती और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राजू तिवारी को सौंप दी है.
मांझी अपने संगठन की ताकत और दलित वोटबैंक का हवाला देकर दबाव बनाए हुए हैं. एनडीए के सामने चुनौती यह है कि दोनों नेताओं को साथ रखते हुए गठबंधन की एकजुटता बनाए रखी जाए. बिहार की राजनीति में चिराग और मांझी दोनों के अपने-अपने समीकरण हैं और अगर यह समीकरण बिगड़ता है, तो एनडीए के लिए यह चुनावी गणित को उलझा सकता है. जीतन राम मांझी ने ट्वीट कर 15 सीटों की डिमांड की है.
चिराग पासवान कितनी सीटें चाहते हैं?
सूत्रों के मुताबिक, चिराग पासवान चाहते हैं कि लोजपा (रामविलास) को कम से कम 25 से 30 विधानसभा सीटें दी जाएं. बीजेपी ने अब तक 22-25 सीटों पर सहमति जताई है, लेकिन चिराग के लिए यह संख्या पर्याप्त नहीं है.
चिराग की मांग है कि 2024 लोकसभा चुनाव में पार्टी जिन 5 सीटों (हाजीपुर, समस्तीपुर, खगड़िया, नवादा और जमुई) पर जीती थी, उन प्रत्येक लोकसभा क्षेत्रों से कम से कम दो विधानसभा सीटें उनकी पार्टी को दी जाएं. साथ ही, लोजपा (रामविलास) के वरिष्ठ नेताओं के लिए भी कुछ सुरक्षित सीटों की मांग की गई है.
बीजेपी के वरिष्ठ नेता और बिहार चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान ने दिल्ली में चिराग पासवान से मुलाकात की थी. लेकिन बैठक के बाद भी अंतिम सहमति नहीं बन पाई. सूत्र बताते हैं कि चिराग का फोकस सिर्फ संख्या पर नहीं, बल्कि "प्रभाव क्षेत्र वाली सीटों" पर है, जहाx लोजपा को जीत की संभावना दिखती है.
मांझी की क्या है डिमांड?
दूसरी ओर, जीतन राम मांझी ने भी अपने तेवर साफ कर दिए हैं. उन्होंने एनडीए नेतृत्व को चेतावनी दी है कि उन्हें 15 सीटों से कम मंजूर नहीं. मांझी की पार्टी ‘हम' पिछले चुनाव में एनडीए का हिस्सा रही थी और उन्हें चार सीटें मिली थीं. इस बार वे अपने संगठन की मजबूती और दलित वोटबैंक को आधार बनाकर बड़ी हिस्सेदारी की मांग कर रहे हैं. दोनों दलों की सख्त स्थिति ने एनडीए की सीट बंटवारे की प्रक्रिया को जटिल बना दिया है. बीजेपी जहां छोटे सहयोगियों को साथ रखकर गठबंधन की एकजुटता बनाए रखना चाहती है, वहीं चिराग और मांझी दोनों “सम्मानजनक हिस्सेदारी” की मांग पर अड़े हैं.
बीजेपी नेताओं का कहना है कि पार्टी जल्द ही अंतिम फार्मूला तय करेगी, लेकिन अंदरखाने यह माना जा रहा है कि अगर चिराग की शर्तें नहीं मानी गईं, तो वे “बागी रुख” भी अपना सकते हैं. जैसा उन्होंने 2020 के विधानसभा चुनाव में किया था. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चिराग और मांझी दोनों के पास अपने-अपने वोट बेस हैं, इसलिए बीजेपी उन्हें नाराज़ करने का जोखिम नहीं उठा सकती है.
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