नवादा में एंबुलेंस नहीं मिली, तो ठेले पर लेकर गए शव, बिहार में कब सुधरेगी स्वास्‍थ्‍य व्यवस्था?

बिहार के स्वास्थ्य व्यवस्था की एक शर्मसार कर देने वाली तस्वीर सामने आई है. नवादा में मरीज को एंबुलेंस की जगह ठेला रिक्शा से अस्पताल ले जाना पड़ा. मौत के बाद भी अस्पताल से कोई शव वाहन नही उपलब्ध कराया गया.

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  • नवादा जिले के गोविंदपुर में मरीज को एंबुलेंस न मिलने पर ठेला रिक्शा से अस्पताल ले जाना पड़ा
  • मृतक अखिलेश कुमार के शव को अस्पताल से घर ले जाने के लिए भी कोई शव वाहन उपलब्ध नहीं कराया गया
  • नवादा में 12 दिनों के भीतर स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही की दो गंभीर घटनाएं सामने आई हैं
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नवादा:

बिहार के स्वास्थ्य व्यवस्था की एक शर्मसार कर देने वाली तस्वीर सामने आई है. स्वास्‍थ्‍य व्यवस्था में लगातार सुधार के दावे किए जाते रहे हैं. लेकिन उसमें सुधार नहीं होता दिख रहा है. ताजा मामला नवादा के गोविंदपुर का है, जहां मरीज को एंबुलेंस की जगह ठेला रिक्शा से अस्पताल ले जाना पड़ा. मौत के बाद भी अस्पताल से कोई शव वाहन नहीं उपलब्ध कराया गया. 12 दिनों के भीतर नवादा जिले में स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही की यह दूसरी बड़ी घटना सामने आई है. इसके पहले अकबरपुर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की तस्वीर सामने आई थी, जब मरीज की मौत के बाद उसे शव वाहन नहीं उपलब्ध कराया गया था. शव को स्ट्रेचर पर खींचकर परिजन अस्पताल से घर ले गए थे, लेकिन स्ट्रेचर के बदले में मृतक महिला के पोते और बहू को गिरवी रहना पड़ा था.

मौत के बाद परिजन ठेले पर घर लाए शव

नवादा जिले में गुरुवार की रात गोविंदपुर बाजार कुम्हार टोली निवासी 30 वर्षीय अखिलेश कुमार को अचानक पेट में तेज दर्द हुआ. उन्हें एक निजी डॉक्‍टर को  दिखाया गया, लेकिन पेट दर्द ठीक नहीं हुआ. ऐसे में परिजन अखिलेश को ठेले पर लेकर गोविंदपुर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचा. यहां डॉक्‍टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. लेकिन चिंता वाली बात यह कि अखिलेश को मृत घोषित करने के बाद भी शव वाहन नहीं उपलब्ध कराया गया. परिजन मृतक अखिलेश के शव को ठेला पर लेकर घर पहुंचे. नागरिकों ने कहा कि यह घटना यह साबित करती है कि एंबुलेंस की व्यवस्था कितना कठिन काम है. आम लोग इस सुविधा से कितने दूर हैं. 

लचर व्‍यवस्‍था का शिकार एंबुलेंस सुविधा

आरोप है कि स्वास्थ्य विभाग की एम्बुलेंस व्यवस्था की लचर प्रणाली के कारण लोगों को इसका लाभ नहीं मिल पाता है. आम लोगों में यह भरोसा नहीं बन पाया है कि एंबुलेंस की सुविधा अविलंब मिल जाती है. लिहाजा, मरीज को इलाज के लिए अस्पताल ले जाना हो या फिर शव को अस्पताल से घर ले जाना हो, ज्यादातर लोग अब भी अपने स्तर से साधनों की व्यवस्था करते हैं. अस्पताल प्रशासन मददगार नहीं साबित होता है. अकबरपुर के बाद गोविंदपुर की घटना इसी कड़ी का हिस्सा है. बहरहाल, मृतक अखिलेश कुमार की पत्नी ने बताया कि उनका एक मात्र दो साल का बच्चा है. अब परिवार के सामने उसकी देखभाल को लेकर गंभीर संकट खड़ा हो गया है. अखिलेश की मौत से उसके परिजन काफी व्यथित हैं. 

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12 दिनों के भीतर दूसरी घटना

नवादा जिले में 12 दिनों के भीतर यह दूसरी घटना है. 7 दिसंबर  की रात्रि में नवादा जिले के अकबरपुर बाजार के मेन रोड निवासी राजेश साव की मां केसरी देवी की तबीयत अचानक खराब हो गई थी. परिजन उन्‍हें अस्पताल लेकर गए, जहां उनकी मौत हो गई. रात में मां के शव को घर ले जाने के लिए कोई साधन नहीं मिल रहा था. एंबुलेंस के लिए बहुत आग्रह किया, लेकिन नहीं मिली. इसके बाद स्ट्रेचर के लिए आग्रह किया. काफी मिन्नत के बाद स्ट्रेचर दिया गया. लेकिन इसके बदले में मृतक बुजुर्ग महिला के पोते और बहू को अस्पताल में तब तक रुकने को कहा गया, जब तक स्ट्रेचर वापस नहीं पहुंचाया जाता है. हालांकि इस मामले में अकबरपुर के मैनेजर, चिकित्सा प्रभारी समेत चार स्वास्थ्यकर्मियों को निलंबित कर दिया गया था. लेकिन इसके बाद भी स्वास्थ विभाग में सुधार नहीं दिख रहा है.

एंबुलेंस की नहीं की गई थी मांग : सिविल सर्जन

सिविल सर्जन डॉ विनोद कुमार चौधरी ने कहा कि एंबुलेंस की मांग नहीं की गई थी. इसलिए अस्पताल के जरिए एम्बुलेंस नहीं उपलब्ध कराया गया. उन्होंने कहा कि नवादा में दो शव वाहन है, जबकि पर्याप्त एंबुलेंस है. शव वाहन लोगों की डिमांड पर उपलब्ध कराए जाते हैं. 

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