बिहार में सीमांचल की सीटों पर सबकी नजरें.. असदुद्दीन ओवैसी किसका बिगाड़ेंगे खेल?

बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार सीमांचल पर सबकी नजरें हैं. यहां से ओवैसी फैक्टर काफी अहम रहने वाला है. 2020 के विधानसभा चुनाव में ओवैसी ने यहां महागठबंधन को काफी नुकसान पहुंचाया था.

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सीमांचल में ओवैसी पर सबकी नजरें
नई दिल्ली:

बिहार में हो रहे विधानसभा चुनाव में फर्स्ट फेज के बंपर वोटिंग के बाद होने वाले सेकंड फेज के 122  सीटों के लिए सभी पार्टी गठबंधनों ने ताकत झोंक दी हैं. सेकंड फेज में सबसे अधिक जिस क्षेत्र की सबसे अधिक चर्चा हो रही है वह हैं सीमांचल...सीमांचल वही पॉलिटिकल पॉकेट है जाने 2020 विधानसभा की पूरी पटकथा लिखी थी. सीमांचल ही वह क्षेत्र है जिसने एक तरह से NDA की सत्ता में फिर से वापसी करवाई थी और दूसरी तरफ तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनते बनते रहा गए थे.पिछले चुनाव में AIMIM ने कैसे राजद के वोटो में सेंध लगाकर पांच सीटें जीती थी और करीब एक दर्जन सीटों पर महागठबंधन को हराने में अहम भूमिका निभाई थी. बिहार का सीमांचल चुनावी चर्चा का सेंटर पॉइंट बन गया है. पीएम मोदी के कार्यक्रम से एनडीए ने शक्ति प्रदर्शन किया, तो चर्चा इस इलाके के अन्य नेताओं की भी होने लगी. सीमांचल की सियासत के कौन सूरमा बिहार चुनाव में एक्स फैक्टर साबित हो सकते हैं?

सीमांचल का डेमोग्राफी

असम और पश्चिम बंगाल से सटे बिहार के सीमांचल का इलाका मुस्लिम और अतिपिछड़ा बहुल माना जाता है. सीमांचल के सभी जिलों में मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में है, 2020 में ओवैसी फैक्टर में बीजेपी सबसे ज्यादा सीटें जीतने में सफल रही थी, लेकिन इस बार का सीन बदला हुआ दिख रहा है. सीमांचल क्षेत्र के  अंतर्गत 4 जिलों और 24 विधानसभा सीटें आती हैं. कटिहार, किशनगंज, पूर्णिया और अररिया के इन इलाकों में 40 से 70% तक मुस्लिम वोटर हैं. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दूसरे और अंतिम चरण का मतदान सीमांचल क्षेत्र में होने जा रहा है. इस फेज की वोटर ही बिहार की सत्ता का भविष्य तय करेगा. एआईएमआईएम ने इन सीटों पर पूरी ताकत झोंक दी है. मुस्लिम वोटों का बंटवारा पर ही  NDA का भविष्य तय करेगा. यदि मुस्लिमों का बंटवारा नहीं होता है तो फिर महागठबंधन को बढ़त मिल सकती है. 

महागठबंधन का गढ़

सीमांचल की ये 24 सीटें पारंपरिक रूप से आरजेडी-कांग्रेस के नेतृत्व वाले महागठबंधन के लिए एक मजबूत गढ़ रही हैं, क्योंकि उनका आधार मुस्लिम-यादव समीकरण पर टिका है. लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में ओवैसी की एआईएमआईएम ने यहां 5 सीटें जीतकर महागठबंधन के समीकरण को ध्वस्त कर दिया था. इस बार भी एआईएमआईएम 15 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ रही है और उसका पूरा दमखम दिखाई दे रहा है।

क्या AIMIM महागठबंधन के गढ़ में फिर से सेंध लगा पाएगी

सीमांचल के क्षेत्र में असदुद्दीन ओवैसी का एक खास प्रभाव रहा हैं. पूरे बिहार में सीमांचल ही वह क्षेत्र जहां AIMIM पूरे ताकता लगाकर चुनाव लड़ती हैं. पूरे बिहार में ओवैसी कुल 25 सीटों पर चुनाव लड़ रही है जिसमें 15 सिर्फ सीमांचल से हैं. ओवैसी की पार्टी का पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ने के कारण ही सीधे तौर पर मुस्लिम वोटों में बंटवारा होते दिख रहा हैं. इससे महागठबंधन के उम्मीदवारों को सीधे नुकसान उठाना पड़ सकता हैं खासकर किशनगंज, जोकीहाट, अमौर और बायसी जैसी सीटों पर. मुस्लिम वोट बंटने से एनडीए के बहुसंख्यक वोट एकजुट होकर जीत दिला सकते हैं, भले ही उनका वोट शेयर कम ही क्यों न हो. जमीन पर सुरजापुरी और शेरशाहवादी मुसलमानों के बीच स्थानीय रुझान अलग-अलग हैं, जिससे वोट एकजुट नहीं हो पा रहा है. एनडीए इस आंतरिक मतभेद को ‘लोकल बनाम बाहरी' जैसे मुद्दों से और तेज कर रहा है.

सीमांचल में कई सीटों पर रोचक मुकाबला

आरजेडी का गढ़ कहा जाना वाला है ‘सीमांचल' इन दिनों तेजस्वी और महागठबंधन के लिए सिर दर्द बना हुआ है. और इस परेशानी की वजह बने हुए है असदुद्दीन ओवैसी. इस बार सीमांचल कई सीटों पर ओवैसी की पार्टी की AIMIM को जनसमर्थन मिल रहा है जिसने महागठबंधन की नींद उड़ा दी है।वैसे तो सीमांचल की सभी 24 सीटों पर मुकाबला जटिल बना हुआ है लेकिन इनमें से मुस्लिम बहुल सीटों पर बन रहा समीकरण काफी पेचीदा हो गया है. क्योंकि यहां असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ रही है. 2020 के विधानसभा चुनाव में AIMIM ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 5 सीटों पर जीत हासिल की थी. उस समय AIMIM ने 14 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 5 में कामयाबी मिली थी लेकिन इस बार उन्होंने करीब 25 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं और उन्होंने चंद्रशेखर की आजाद पार्टी और स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ मिलकर एक ग्रैंड डेमोक्रेटिक गठबंधन GDA बनाया है.

एआईएमआईएम अध्यक्ष अख्तरुल इमान की अमौर सीट

इस सीट पर AIMIM की पकड़ काफी मजबूत मानी जा रही है. यहां से कांग्रेस के अब्दुल जलील मस्तान और जेडीयू से सबा जफर हैं. इस सीट पर लगभग 70% मुस्लिम आबादी है. 2020 चुनाव में यहां से अख्तरुल इमान 51.17% वोट हासिल कर 52,515 वोट से एकतरफा जीत हासिल की थी. वहीं सबा जफर दूसरे और अब्दुल जलील मस्तान तीसरे नंबर पर थे. इस बार भी यह सीट AIMIM के खाते में जा सकती है. कोचाधामन विधानसभा सीट पर भी काफी रोचक मुकाबला होने जा रहा है. यहां से 2020 में AIMIM के टिकट पर इजहार असफी ने जीत हासिल की थी. जिसके बाद वह AIMIM छोड़कर राजद में शामिल हो गए थे. इस बार इजहार असफी का टिकट काटकर राजद ने जदयू से आए मुजाहिद आलम को उतारा है, जबकि एआईएमआईएम ने सरवर आलम पर भरोसा जताया.

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जोकीहाट सीट पर भी मुकाबला सबसे ज्यादा दिलचस्प है

यहां तस्लीमुद्दीन के दोनों बेटे आमने-सामने हैं. AIMIM से जीतने के बाद राजद में शामिल हुए शाहनवाज आलम और जनसुराज से सरफराज आलम मैदान में हैं. इनके साथ ओवसी की पार्टी ने मुर्शीद आलम को उतारा है और जदयू के मंजर आलम हैं. जिससे लड़ाई चौतरफा हो गई है. इस सीट पर मुस्लिम मतदाता लगभग 70 प्रतिशत हैं. ओवैसी ने बलरामपुर, गोपालगंज, किशनगंज, कस्बा, बरारी और कदवा में भी उम्मीदवार उतारे हैं. अररिया जिले की दोनों मुस्लिम बहुल सीटें अररिया और जोकीहाट AIMIM के केंद्र में हैं. अररिया से मंजूर आलम AIMIM पार्टी के उम्मीदवार हैं. वहीं बलरामपुर से आदिल हसन चुनाव लड़ रहे हैं. इन सीटों पर भी ओवैसी अच्छी पकड़ माना जा रही है. इसके अलावा भी उन्होंने कई सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं.

दिग्गजों के सहारे पार्टी

डॉक्टर दिलीप जायसवाल भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की बिहार इकाई के प्रदेश अध्यक्ष हैं. डॉक्टर जायसवाल किशनगंज जिले से आते हैं, जो सीमांचल क्षेत्र में ही आता है. तीन बार के एमएलसी दिलीप जायसवाल किशनगंज सीट से बीजेपी के टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं.

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2020 में किसके खाते में कितनी सीटें

बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव में सीमांचल में एआईएमआईएम (AIMIM) ने पांच सीटें जीतकर एक तरह से महागठबंधन की नैया डुबो दी थी. एआईएमआईएम की इस जीत को महागठबंधन को सत्ता में आते-आते रोक दिया था.

एआईएमआईएम ने अमौर, बहादुरगंज, बायसी, जोकीहाट और कोचाधामन सीटें जीती थी. इनमें से तीन सीटों पर महागठबंधन के उस समय के विधायक तीसरे नंबर पर रहे थे. ये सीटें थीं अमौर, बहादुरगंज और बायसी. AIMIM ने साल 2020 में जो सीटें जीतीं, उनमें तीन पर आरजेडी और दो पर कांग्रेस के विधायक थे।2020 के चुनाव में सीमांचल की 24 सीटों में एनडीए को 12, महागठबंधन को 7, और ओवैसी की AIMIM को 5 सीटें मिली थीं. शेरशाहवादी–सुरजापुरी समीकरणबिहार चुनाव के दूसरे चरण में सीमांचल एक बार फिर सियासत का केंद्र बना है. यहां मुस्लिम वोटों में बिखराव का असर निर्णायक हो सकता है. सुरजापुरी और शेरशाहवादी मुसलमानों के अलग-अलग रुझान ने समीकरण उलझा दिए हैं. ओवैसी, प्रशांत किशोर और महागठबंधन सभी इस वर्ग को साधने में जुटे हैं, जबकि एनडीए इसे अवसर मान रहा है.

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दिलीप जायसवाल

दिलीप जायसवाल को साल 2024 में ही बीजेपी ने बिहार में संगठन की कमान सौंपी थी. बीजेपी को डॉक्टर जायसवाल के सीमांचली होने के कारण विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन, सीटों की संख्या बढ़ने की उम्मीद है. इस उम्मीद के पीछे एक कारण यह भी है कि दिलीप जायसवाल खुद वैश्य वर्ग से आते हैं, जो सीमांचल में प्रभावी संख्या में है।

उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह

उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह पूर्णिया लोकसभा सीट से सांसद रहे हैं. वह 2004 और 2009 में बीजेपी के टिकट पर पूर्णिया से लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए थे. उदय सिंह फिलहाल चुनाव रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. उदय सिंह की मां माधुरी सिंह भी कांग्रेस की कद्दावर नेता और पूर्णिया सीट से दो बार सांसद रह चुकी हैं. उदय सिंह खुद बीजेपी के अलावा कांग्रेस में भी रह चुके हैं. वह राजपूत समाज से आते हैं और सवर्ण मतदाताओं के बीच उनकी पकड़ मजबूत मानी जाती है.

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पप्पू यादव

पप्पू यादव पूर्णिया जिले की सभी विधानसभा सीटों के साथ ही कोसी-सीमांचल के अन्य जिलों में भी समान लोकप्रियता रखते हैं. यादव और मुस्लिम वोट पर मजबूत पकड़ रखने वाले पप्पू यादव की इमेज पिछले कुछ वर्षों में एक जुझारू नेता की बनी है, जो आगामी चुनाव में कांग्रेस के काम आ सकती है. शायद यही वजह है कि निर्दलीय सांसद होने के बावजूद पप्पू को दिल्ली में शीर्ष नेतृत्व के साथ बिहार कांग्रेस के नेताओं की बैठक में भी बुलाया गया था.

अख्तरुल ईमान

अख्तरुल ईमान किशनगंज जिले की अमौर विधानसभा सीट से विधायक हैं. वह असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के प्रदेश अध्यक्ष हैं. 2005 और 2010 में वह कोचाधामन सीट से आरजेडी के टिकट पर विधायक निर्वाचित हुए थे. साल 2015 में अख्तरुल ने जेडीयू भी छोड़ दी और वह एआईएमआईएम में शामिल हो गए थे. अख्तरुल ने पिछले चुनाव में एआईएमआईएम को पांच सीटों पर जीत दिलाकर अपनी संगठन शक्ति साबित की थी. उनका मुस्लिम मतदाताओं के बीच अच्छा प्रभाव  है.

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