Sasaram Result: उपेंद्र कुशवाहा की पत्नी स्नेहलता जीतीं, RJD का हैट्रिक का सपना तोड़ बनीं पहली महिला विधायक

2000 से यह सीट बीजेपी और राजद के बीच कड़ा मुकाबले का केंद्र रही है. भाजपा ने लगातार तीन बार जीत दर्ज की, लेकिन उसके बाद राजद ने 2015 और 2020 में यहां विजय हासिल की है.

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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सासाराम की सीट इस बार हॉट सीट रही. यहां से रालोमो के नेता उपेंद्र कुशवाहा की पत्नी स्नेहलता एनडीए उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरीं और जीत हासिल की. उन्होंने करीब 25 हजार वोटों से आरजेडी के सत्येंद्र साह को मात दी है.  

आरजेडी प्रत्याशी सत्येंद्र साह पर्चा भरने के तुरंत बाद जेल चले गए. उनके खिलाफ कई मुकदमे दर्ज हैं. 6 नवंबर को बेल पर बाहर आने के बाद उन्होंने चुनाव प्रचार शुरू किया, लेकिन जीत का मुंह नहीं देख सके. यह विधानसभा सीट सासाराम लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है, जो अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित है. यह लोकसभा क्षेत्र कुल 6 विधानसभा क्षेत्रों से मिलकर बना है, जिनमें 3 सासाराम जिले और 3 कैमूर जिले में स्थित हैं.

प्रत्याशीपार्टीवोट मिले
स्नेहलताराष्ट्रीय लोक मोर्चा105006 
सतेंद्र साहआरजेडी79563 
अशोक कुमार बसपा10261 
बिनय कुमार सिंहजन सुराज6495 
नोटा-961 

सासाराम विधानसभा सीट 1957 में बनी थी और अब तक यहां 17 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. समाजवादी धारा से जुड़े दलों (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, जनता दल, जदयू आदि) ने 10 बार जीत दर्ज की. इसके अलावा भाजपा ने 5 बार, तो कांग्रेस ने 2 बार जीत दर्ज की है. इस क्षेत्र में कांग्रेस अपना स्थायी जनाधार बनाने में नाकाम रही.

2000 से यह सीट बीजेपी और राजद के बीच कड़ा मुकाबले का केंद्र रही है. भाजपा ने लगातार तीन बार जीत दर्ज की, लेकिन राजद ने 2015 और 2020 दोनों चुनावों में विजय हासिल की. 2020 में राजद के उम्मीदवार राजेश कुमार गुप्ता ने जदयू के अशोक कुमार को हराकर राजद के वर्चस्व की पुष्टि की. हालांकि 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इसी विधानसभा क्षेत्र में बढ़त हासिल की थी.

सासाराम विधानसभा क्षेत्र पूरी तरह से सामान्य श्रेणी का है, लेकिन राजनीतिक रूप से यहां कुशवाहा (कोइरी) समुदाय का प्रभाव सबसे ज्यादा रहा है. 1980 से लेकर 2015 तक यानी लगभग 35 वर्षों के दौरान, इस सीट से जितने भी विधायक चुने गए या उपविजेता बने, वे लगभग सभी इसी समुदाय से थे.

चुनावी इतिहास यह बताते हैं कि सासाराम में मतदाता दल या विचारधारा से ज्यादा जातीय पहचान को प्राथमिकता देते हैं. इसके अलावा, भूमिहार, यादव, दलित और मुस्लिम मतदाताओं की भी महत्वपूर्ण हिस्सेदारी है, जो हर चुनाव में समीकरण को नया मोड़ देती है.

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बिहार का सासाराम जो कभी शेरशाह सूरी की राजधानी हुआ करता था, इस वक्त प्रदेश की राजनीति में अपनी अलग पहचान रखता है. 16वीं शताब्दी में शेरशाह सूरी ने मुगल सम्राट हुमायूं को हराकर सत्ता संभाली थी और सासाराम को सूर वंश की राजधानी बनाया था. उनके शासनकाल को भारतीय प्रशासनिक इतिहास का एक गौरवशाली युग माना जाता है. टैक्स प्रणाली, डाक सेवाओं और ग्रैंड ट्रंक रोड (जीटी रोड) जैसी ऐतिहासिक परियोजनाओं की नींव इसी भूमि पर पड़ी थी.

सासाराम को 1972 में रोहतास जिले का मुख्यालय बनाया गया था. इसे 1972 में पुराने शाहाबाद जिले से अलग कर बनाया गया. ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध यह क्षेत्र आज भी बिहार की राजनीति, शिक्षा और सामाजिक चेतना का केंद्र माना जाता है. यहां उच्च साक्षरता दर है, लेकिन इसके बावजूद यह विधानसभा क्षेत्र अब भी जातिगत मतदान प्रवृत्तियों से अछूता नहीं है.

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ऐतिहासिक और प्रशासनिक दृष्टि से समृद्ध सासाराम आज भी कई चुनौतियों से जूझ रहा है. सड़क और सिंचाई सुविधाओं की स्थिति कमजोर है. शिक्षा और स्वास्थ्य ढांचे को लेकर ग्रामीण इलाकों में असंतोष बना हुआ है. रोजगार और पलायन के मुद्दे लगातार बने हुए हैं. शहर के आसपास जलजमाव और सफाई की समस्या भी स्थानीय चुनावी मुद्दों में शामिल है.

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