श्मशान में जलती चिताओं के पास पढ़ रहे बच्चे, बिहार का ये स्कूल गजब है

Bihar News: इस पाठशाला में पढ़ रहे बच्चे में से कोई आईपीएस तो कोई जज तो कोई इंजीनियर बनना चाहता है. वहीं कोई डॉक्टर बनने का सपना देख रहा है. बच्चों को आत्मरक्षा के लिए वुशु( मार्शल आर्ट ) का भी प्रशिक्षण दिया जाता है.

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बिहार में जलती चिताओं के पास पढ़ रहे बच्चे.
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  • बिहार के मुजफ्फरपुर के एक श्मशान घाट में बच्चों के लिए एक पाठशाला मार्च 2017 में चल रही है.
  • श्मशान घाट की इस पाठशाला में आज कुल 140 बच्चे कक्षा एक से ग्यारहवीं तक पढ़ाई करते हैं.
  • बच्चों को ड्रेस, बैग, किताबें, पेंसिल, कॉपी, बैठने का आसन और सर्दी में स्वेटर कंबल मुफ्त प्रदान किए जाते हैं.
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मुजफ्फरपुुर:

बिहार के मुजफ्फरपुर से एक अजीबोगरीब घटना सामने आई है. पढ़ाई के लिए तो स्कूल बनाए गए हैं लेकिन यहां पर एक श्मशान (मुक्तिधाम) में बच्चे शिक्षा का ज्ञान ले रहे हैं. वही श्मशान, जहां इंसान को इस संसार से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. वहां बच्चों के पढ़ने की घटना हैरान करने वाली है.

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जलती चिताओं के पास पढ़ रहे बच्चे

यह श्मशान घाट मुजफ्फरपुर के सिकंदरपुर ओपी थाना क्षेत्र में है. एक तरफ चिताएं जलती हैं, तो दूसरी तरफ बैठकर बच्चे पढ़ाई करते हैं. सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि बच्चों को यहां पर बिल्कुल भी डर नहीं लगता है. इन बच्चों ने खुद ये बात कही है. उनका कहना है कि वे यहां आराम से बैठ कर पढ़ाई करते हैं.

बता दें कि इस श्मशान घाट में पाठशाला की शुरुआत मार्च 2017 में हुई थी. जब सुमित कुमार एक व्यक्ति के अंतिम संस्कार में यहां पहुंचे और देखा कि गरीब तबके के बच्चे श्मशान घाट के आस पास घूम रहे है. तभी उनके मन में जिज्ञासा उठी कि क्यों ना गरीब और असहाय बच्चों में शिक्षा का ज्ञान भरा जाए. काफी कोशिश के बाद इस मुक्तिधाम श्मशान घाट में एक पाठशाला खोली गई.

श्मशान घाट की पाठशाला में पढ़ते हैं 140 बच्चे

हालांकि पहले उस पाठशाला में बच्चे जाने से परहेज करते थे. लेकिन काफी मेहनत के बाद धीरे-धीरे सुमित कुमार ने पाठशाला के माध्यम से सैकड़ों बच्चे को जोड़ा और आज श्मशान घाट की पाठशाला में कुल 140 बच्चे हर दिन पढ़ने आते हैं. यहां 1 से लेकर 11वीं तक के छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं. वही इन सभी बच्चों के लिए ड्रेस, बैग ,कॉपी ,किताब ,पेंसिल ,रबर कटर, बैठने के लिए आसन और ठंड में स्वेटर कंबल की व्यवस्था भी पाठशाला की तरफ से की जाती है. इस पाठशाला में पढ़ रहे बच्चे मलिन बस्ती से निकलकर रेड कार्पेट पर चलेंगे ऐसा अब इनका सपना है.

पटरी पर आ रही बच्‍चों की जिंदगी

इस पाठशाला में पढ़ रहे बच्चे में से कोई आईपीएस तो कोई जज तो कोई इंजीनियर बनना चाहता है. वहीं कोई डॉक्टर बनने का सपना देख रहा है. बच्चों को आत्मरक्षा के लिए वुशु( मार्शल आर्ट ) का भी प्रशिक्षण दिया जाता है.

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बच्चों को सिखाई जा रही मार्शल आर्ट

महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों को ध्यान में रखते हुए बच्चों को मार्शल आर्ट सिखाई जा रही है. ताकि वे खुद की रक्षा कर सकें. वे शारीरिक और मानसिक रूप से सशक्त बनें और दूसरे को जागरूक करें और सिखाएं. इस प्रशिक्षण में कुल 130 छात्र-छात्राएं शामिल हैं, जिनको दो भागों में बांटा गया है. सीनियर सेक्शन में कुल 70 छात्र-छात्राएं शामिल है, जिसमें 50 लड़कियां 20 लड़के हैं. प्रशिक्षण पूर्ण होने के बाद इसमें से बेहतर प्रदर्शन करने वाले 10 बच्चे का चयन किया जाता है. इन बच्चों की जिम्मेदारी अपने घर के आस-पास कम से कम 10-10 बच्चों को सिखाने की होगी. यह प्रक्रिया लगातार चलती रहेगी.

वहीं जूनियर सेक्शन के 60 छोटे बच्चों को अलग प्रशिक्षण दिया जाता है. जिससे उनमें आत्म बल बौद्धिक और शारीरिक क्षमता का विकास हो सके. यह प्रशिक्षण सप्ताह में दो दिन (शनिवार और रविवार) को पाठशाला में होता है. इसका नियमित अभ्यास सुबह में बच्चे अपने घर पर 1 घंटे करते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि एक तरफ जहां शिक्षा के नाम पर लूट मची हुई है. वहीं दूसरी तरफ गरीब और असहाय परिवार के बच्चों को पाठशाला की तरफ से तमाम पठन-पाठन की व्यवस्था की जा रही है. वहीं मुफ्त शिक्षा का ज्ञान दिया जा रहा है.

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