बिहार के कई जिलों में इन दिनों नीलगायों को मारने का अभियान चलाया जा रहा है.नवादा जिले में केवल दो दिनों में दर्जन भर से अधिक नीलगायें मारी जा चुकी हैं. इससे विवाद भी बढ़ा है और किसानों की चिंताएं भी सामने आ रही हैं.
नीलगाय एक बड़ा जंगली जानवर है. यह भारत के कई राज्यों के ग्रामीण इलाकों में पाया जाता है. यह जानवर खेतों में फसल खा-पी कर भारी नुकसान पहुंचाता है. किसान बताते हैं कि ये जानवर रात में अपने झुंड के साथ खेतों में घुसते हैं और गेंहू, मक्का, धान, सब्जियां आदि को बुरी तरह से नष्ट कर देते हैं.किसानों का कहना है कि वे कई बार रातभर जागकर इन जानवरों को भगाने की कोशिश करते हैं, लेकिन परिणाम संतोषजनक नहीं होता. हर साल इस समस्या से इलाके के किसानों को लाखों रुपये तक का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है.
बिहार सरकार ने दिया है आदेश
इस समस्या के समाधान के लिए बिहार सरकार ने शूटरों को गोलियां चलाने और नीलगायों का शिकार करने की अनुमति देना शुरू कर दिया है. कई जिलों में वन विभाग, पंचायत और जिला प्रशासन के निर्देश पर अधिकृत शूटरों को बुलाया जा रहा है, जो किसानों की फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले नीलगायों को मार रहे हैं. नवादा में हाल ही में 26 नीलगायों को गोली मार दी गई . यह कार्रवाई प्रशासन के आदेश के तहत की गई थी.
नीलगाय का संरक्षण भारत के Wildlife Protection Act, 1972 के तहत होता है. लेकिन कुछ परिस्थितियों में यह जानवर उपद्रवी घोषित किया जाता है, यानी वह खेतों को नुकसान पहुंचाने वाला समझा जाता है. कुछ राज्यों ने केंद्र से इजाजत लेकर नीलगाय को इस श्रेणी में रखा है, जिससे उनके कंट्रोल की प्रक्रिया आसान हो जाती है.
नवादा के खेतों में नील गायों की तलाश करते प्रशिक्षित शिकारी.
Photo Credit: Ashok Priyadarshi
बिहार सरकार ने इसी कानून के तहत, किसानों की भारी शिकायतों के कारण, नीलगाय को मारने के लिए शूटरों को अधिकृत करने का निर्णय लिया है.इससे वन विभाग और जिला प्रशासन को अधिक शक्ति मिलती है कि वे खेतों में बड़े जानवरों को नियंत्रित कर सकें. शूटरों को नीलगाय को मारने के लिए वित्तीय भुगतान मिलता है.एक नीलगाय को मारने पर शूटर को करीब 750 रुपये देने का प्रावधान है. उसके दफनाने के लिए अलग से राशि भी निर्धारित की जाती है. इसका भुगतान पंचायत द्वारा किया जाता है.
कौन से जानवर फसलों को अधिक नुकसान पहुंचाते हैं
सरकार का मानना है कि नीलगाय और जंगली सूअरों जैसे जानवरों के कारण बहुत से किसान अपनी फसल के नुकसान से बेसहारा हो रहे हैं.वे फसल रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं और इससे उनकी आजीविका प्रभावित हो रही है. इस तरह के नुकसान के बाद, सरकार किसानों की पीड़ा को समझते हुए 'ऑन-डिमांड शिकार' की अनुमति दे रही है ताकि क्षति को रोका जा सके.हालांकि किसानों की समस्या गंभीर है, इस कार्रवाई की बहुत आलोचना भी हो रही है. पर्यावरणविद और पशु प्रेमी समूह इसका विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि जानवरों को मारना कोई स्थायी समाधान नहीं है.वहीं किसान चाहते हैं कि उनकी फसल सुरक्षित रहे और वे आर्थिक रूप से सुरक्षित महसूस करें.
ये भी पढे़ं: बिहार से नेपाल को खाद की तस्करी बढ़ी, SSB ने पकड़ी यूरिया की बड़ी खेप














