एनडीए में दलित वोटों के लिए मचा संग्राम, बिहार में 20 फीसदी आबादी पर पासवान-मांझी की नजर

जीतन राम मांझी और चिराग पासवान के बीच अपने आप को दलितों का सबसे बड़ा हितैषी साबित करने के लिए होड़ मची है और हो भी क्यों ना बिहार में दलित वोटों की संख्या 20 फीसदी के आसपास है, जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा रविदास और पासवान समाज का है. 

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एनडीए के दो बड़े दलित नेता जीतन राम मांझी और चिराग पासवान लगातार आपस में बयानबाजी कर रहे हैं. 
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  • जीतन राम मांझी और चिराग पासवान के बीच जुबानी तकरार तेज है.
  • बिहार में दलित वोटों का हिस्सा लगभग 20 फीसदी है, जिसमें रविदास और पासवान का बड़ा योगदान है.
  • एनडीए के पास 21 और महागठबंधन के पास 17 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटें हैं
  • मांझी और पासवान में दलितों का सबसे बड़ा हितैषी होने की होड़ मची है.
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नई दिल्‍ली :

बिहार में दलित वोटों के लिए जंग छिड़ी है. एनडीए और महागठबंधन सबने अपना पूरा जोर लगा रखा है. एनडीए में तो जीतन राम मांझी और चिराग पासवान की पार्टी में जुबानी जंग तेज है. जीतन राम मांझी ने चिराग पासवान की पार्टी के सांसद और उनके बहनोई अरूण भारती के एक बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कह दिया कि चिराग के चट्टे बट्टे क्या बोलते हैं, उस पर मैं ध्यान नहीं देता. जवाब में अरूण भारती ने कहा कि हां, हम चिराग के चट्टे बट्टे हैं, मगर बड़े वाले हैं. हमारे नेता मांझी के तरह किसी की कृपा पर मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे. वहीं मांझी ने अपने एक बयान में कहा है कि चिराग में समझदारी की कमी है. हालांकि चिराग ने बाद में कहा कि मांझी जी मुझसे बहुत बड़े हैं और वो जो कहें वही सही. हालांकि सच्चाई यही है कि दोनों दलों में अपने आप को दलितों का सबसे बड़ा हितैषी साबित करने के लिए होड़ मची हुई है और हो भी क्यों ना बिहार में दलित वोटों की संख्या 20 फीसदी के आसपास है, जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा रविदास और पासवान समाज का है. 

बिहार के पूरे दलित वोट में 31 फीसदी रविदास हैं तो 30 फीसदी पासवान या दुसाध और मुसहर या मांझी 14 फीसदी के आसपास हैं. बिहार में अनुसूचित जाति के लिए 38 सीट आरक्षित है, जिसमें एनडीए के पास 21 और महागठबंधन के पास 17 सीटें हैं. 

मांझी बनाम पासवान: कौन कितना मजबूत

पिछले विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान की पार्टी का एक भी विधायक जीत नहीं पाया था, लेकिन 2024 की लोकसभा में उनके 5 सांसद हैं, वहीं जीतन राम मांझी के पास बिहार में 4 विधायक हैं और लोकसभा में एक सांसद है, जो वे खुद हैं.

इसका मतलब है कि बीजेपी और जेडीयू के पास ही सबसे अधिक दलित विधायक हैं. बीजेपी के पास 9 तो जेडीयू के पास 8 दलित विधायक हैं. 

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सामान्‍य सीटों पर भी उम्‍मीदवार उतारेंगे चिराग?

अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि आरक्षित 38 सीटों में से 17 ही ऐसी सीटें हैं, जहां एनडीए का विधायक नहीं है तो क्या इन सीटों पर चिराग पासवान लड़ेंगे या फिर बीजेपी और जेडीयू अपनी सीटों में से कुछ सीट चिराग पासवान को देगी. क्या चिराग पासवान आरक्षित सीटों के अलावा सामान्य सीटों पर भी अपने उम्मीदवार उतारेंगे. ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिस पर एनडीए में काफी माथापच्ची होनी बाकी है.

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यही वजह है कि एनडीए घटक दल के दो बड़े दलित नेता जीतन राम मांझी और चिराग पासवान लगातार आपस में बयानबाजी कर रहे हैं. चिराग पासवान ने कहा है कि वो बिहार की सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारने के लिए तैयारी कर रहे हैं.

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बिहार का दलित एक पार्टी के साथ नहीं

हालांकि बिहार में पासवान और मांझी के जाति के वोट एक साथ किसी एक पार्टी को नहीं मिलते हैं. गांवों में पासवान और मांझी के बीच भी सत्ता संघर्ष के लिए झगड़े होते रहते हैं. स्थानीय निकाय के चुनाव हों या फिर विधानसभा और लोकसभा चुनाव, रविदास, पासवान और मांझी समुदायों के बीच झगड़े के मामले सामने आते रहे हैं.

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वहीं कांग्रेस ने दलितों के सबसे बड़े हिस्से यानी रविदास समुदाय से प्रदेश अध्यक्ष बना कर एक अलग ही दांव खेला है.

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