एनडीए में सीट बंटवारे से BJP ने ली बिहार चुनाव की कमान! चिराग की भूमिका तय, जानें अंदर की बात

बीजेपी अपने वोट शेयर और परफॉरमेंस के आधार पर इस बार जेडीयू से ज्‍यादा नहीं तो कम पर भी चुनावी मैदान में नहीं है. वहीं बीजेपी की सबसे करीबी पार्टी एलजेपी-आर को भारी विरोध के बावजूद 29 सीटें मिली हैं. ऐसे में भाजपा गठबंधन में नेतृत्व की भूमिका निभाएगी.

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  • बिहार चुनाव के लिए एनडीए के सीट बंटवारे से साफ है कि इस बार भाजपा गठबंधन में नेतृत्व की भूमिका निभाएगी.
  • लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को गठबंधन में 29 सीटें मिली हैं जो नए राजनीतिक समीकरण का संकेत देती हैं.
  • इस बार कई ऐसी सीटों पर चिराग अपने उम्मीदवार उतारेंगे, जिन पर पहले जेडीयू चुनाव लड़ा करती थी.
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बिहार विधानसभा चुनाव के लिए एनडीए के सीट बंटवारे से यह साफ हो गया है कि इस बार भाजपा गठबंधन में नेतृत्व की भूमिका निभाएगी और अपने दम पर चुनावी मैदान में उतरेगी. सीटों के बंटवारे में बीजेपी और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) को बराबर-बराबर 101-101 सीटें दी गई हैं, जबकि हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोक मोर्चा के हिस्‍से में 6-6 सीटें आई हैं. हालांकि इस लिस्‍ट में सबसे चौंकाने वाली बात चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को मिली 29 सीटें हैं, जिन्‍होंने एक नई समीकरण की जमीन को तैयार कर दिया है. 

2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 110 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे 74 सीटें जीती थीं, जबकि जेडीयू ने 115 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसके खाते में 43 सीटें आई थीं. विकासशील इंसान पार्टी को 4 और हम को भी 4 सीटें मिली थीं. कुल मिलाकर एनडीए को 125 सीटों पर जीत मिली थी. इस चुनाव में बीजेपी को 19.46% और जेडीयू को 15.39% वोट मिले थे, जबकि जेडीयू ने बीजेपी से ज्‍यादा सीटों पर चुनाव लड़ा था. इस बार सीटों की बराबरी से यह संकेत मिलता है कि बीजेपी ने गठबंधन में अपनी स्थिति को और मजबूत किया है. 

उस समय चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने एनडीए से अलग 134 सीटों पर चुनाव लड़ा था. हालांकि अब उनकी नई पार्टी एलजेपी (रामविलास) एनडीए का हिस्सा है और उसे 29 सीटें दी गई हैं.  

पीएम मोदी को क्यों है चिराग पासवान पर भरोसा

  • पिछली बार 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग ने सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और इसके कारण जेडीयू 43 सीटों पर ही सिमट कर रह गई थी. माना जाता है कि बीजेपी को इसका कई सीटों पर फायदा मिला था. यहां एक तरीके से चिराग ने बीजेपी को मजबूत करने का काम किया. चुनाव परिणामों के बाद चिराग ने ट्वीट किया, “यह प्रधानमंत्री मोदी जी की जीत है.  बिहार की जनता ने उन पर भरोसा जताया है.”
  • चिराग के पिता राम विलास पासवान लंबे समय से BJP के सहयोगी रहे. चिराग ने हमेशा मोदी को अपना “नेता” बताया और कहा, “पीएम मोदी के रहते किसी दूसरे गठबंधन का सवाल ही नहीं उठता.” 2020 में भी उन्होंने कहा कि वे अमित शाह से मिले थे और बिहार में “बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट” एजेंडे पर काम करने के लिए अलग चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन BJP के प्रति वफादार रहे. 
  • LJP का मुख्य वोट बैंक पासवान समुदाय (लगभग 6% आबादी) है, जो पूर्वी बिहार में मजबूत है. चिराग की युवा अपील और मोदी की छवि से यह वोट NDA की ओर मोड़ा गया. 2020 के बाद चिराग को केंद्रीय मंत्री बनाया गया, जो भरोसे का प्रमाण था. हाल के बयानों में भी चिराग ने कहा, “पीएम मोदी ने बिहार के युवाओं पर भरोसा दिखाया है, जो इस चुनाव में उनकी ताकत बनेंगे.”
  • इस बार कई ऐसी सीटों पर चिराग अपने उम्मीदवार उतारेंगे, जिन पर पहले जेडीयू चुनाव लड़ा करती थी. 2020 के एलजेपी के परफार्मेंस को देखते हुए जिन सीटों पर चिराग ने मजबूत और बढ़त बनाई और जेडीयू को चिराग की वजह से नुकसान हुआ था, उन सीटों पर उस बार चिराग के उम्मीदवार लड़ सकते हैं.  

कुल मिलाकर प्रधानमंत्री का भरोसा चिराग की वफादारी, वोट-मोबिलाइजेशन क्षमता और NDA को मजबूत करने वाली रणनीति पर आधारित है, जो 2024 के लोकसभा चुनाव में साफ-साफ दिखी.  

एनडीए का बिहार चुनाव में ये हैं सीट समीकरण

बिहार चुनाव में बीजेपी और चिराग पासवान एक तरफ हैं तो और जेडीयू, मांझी और कुशवाहा एक तरफ. बीजेपी 101 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और चिराग 29 सीटों पर. कुल मिलाकर दोनों 130 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. 

वहीं जेडीयू 101, जीतन राम मांझी 6 और उपेंद्र कुशवाहा 6 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं जो कि कुल 113 होता है. अगर ये तीन पार्टियां सारी सीटें भी जीत जाती हैं तो भी इन्हें सरकार बनाने के लिए बीजेपी या चिराग की जरूरत पड़ेगी.  

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हालांकि बीजेपी और चिराग मिलकर यदि सात सीटें गंवाकर भी बहुमत के आंकड़े 123 तक पहुंच जाते हैं तो सरकार बनाने के लिए जेडीयू, मांझी और कुशवाहा की जरूरत नहीं पड़ेगी. ऐसे में सरकार में बने रहना उनकी मजबूरी होगी ना की जरूरत. 

अगर इस प्रकरण को 2020 के विधानसभा चुनाव को मद्देनजर रखकर देखा जाए तो ये साफ दिखता है कि बीजेपी अपने वोट शेयर और परफॉरमेंस के आधार पर इस बार जेडीयू से ज्‍यादा नहीं तो कम पर भी चुनावी मैदान में नहीं है. वहीं बीजेपी की सबसे करीबी पार्टी एलजेपी-आर को भारी विरोध के बावजूद 29 सीटें मिली हैं और यह भी 2020 के चुनाव परफॉर्मेंस को देखते हुए ही है. बीजेपी ने काफी माथापच्ची और इंटरनल सर्वे के आधार ये फैसला किया है. 

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