- महागठबंधन के भीतर आरजेडी और सीपीआई(एमएल) के बीच सीट बंटवारे को लेकर गंभीर विवाद उत्पन्न हो गया है
- चिराग पासवान एनडीए में समझौता नहीं होने पर पीके के साथ नया गठबंधन बना सकते हैं: सूत्र
- जीतन राम मांझी अपनी पार्टी के लिए सम्मानजनक सीट और मंत्री पद की मांग करते रहे हैं
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तारीख़ों के ऐलान के बाद सियासत अब अपने सबसे पेचीदा मोड़ पर पहुंच चुकी है. चुनाव की घोषणा के साथ ही पांच ऐसे बड़े ‘पेच' हैं जिन्होंने बिहार की राजनीति को पूरी तरह उलझा दिया है. एक ओर जहां एनडीए अपने भीतर सीट बंटवारे को लेकर अंतिम चरण में है हालांकि अंतिम सहमति नहीं बन पाई है. वहीं दूसरी ओर महागठबंधन में सीटों को लेकर गहरी खींचतान चल रही है.
आरजेडी और सीपीआई(एमएल) के बीच सीट शेयरिंग पर विवाद अब खुलकर सामने आ गया है. वहीं, दूसरी तरफ़ चिराग पासवान की पीके से बातचीत ने नए समीकरणों की सुगबुगाहट तेज़ कर दी है. जीतन राम मांझी, मुकेश सहनी और उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेता अब इस चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाने की स्थिति में हैं. पांचों के अलग-अलग दांव ने बिहार की सियासत को पहले से कहीं ज़्यादा दिलचस्प बना दिया है.
पेच नंबर 1: महागठबंधन का ‘सीट संकट' - RJD बनाम CPI(ML)
विपक्षी गठबंधन इंडिया (महागठबंधन) में सीट बंटवारे को लेकर तकरार चरम पर है. सूत्रों के मुताबिक, आरजेडी द्वारा दिए गए प्रस्ताव को सीपीआई(एमएल) ने ठुकरा दिया है. पार्टी ने इसे “सम्मानजनक नहीं” बताया है और आज करीब 30 सीटों की नई सूची आरजेडी को सौंपने की तैयारी में है.
सीपीआई(एमएल) का कहना है कि उसने 2020 विधानसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन किया था. 19 सीटों में से 12 पर जीत और तीन सीटों पर बेहद कम अंतर से हार. यही नहीं, 2024 लोकसभा चुनाव में भी पार्टी को तीन में से दो सीटों पर जीत मिली थी. ऐसे में पार्टी इस बार 40 सीटों पर दावा ठोक रही है.
आरजेडी ने 19 सीटों का ऑफर दिया, जिसे एमएल ने सिरे से खारिज कर दिया. एमएल का कहना है कि “यह सिर्फ़ सम्मान की बात नहीं, हमारे जनाधार की मान्यता की बात है.” पार्टी के नेताओं ने संकेत दिए हैं कि अगर गठबंधन में उन्हें बराबरी का सम्मान नहीं मिला, तो “सभी विकल्प खुले हैं.”
पेच नंबर 2: चिराग और PK क्या बनाएंगे ‘मिशन एलायंस'?
एनडीए के भीतर भी सियासी शतरंज नई दिशा में बढ़ रही है. लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान सीट के मुद्दे पर कोई समझौता नहीं करना चाहते हैं. चिराग पासवान की बात अगर एनडीए में नहीं बनी तो वो प्रशांत किशोर के साथ मिलकर नया समीकरण बना सकते हैं.
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि पीके के साथ संभावित गठबंधन या समझौता बिहार की राजनीति में “तीसरा फ्रंट” तैयार कर सकता है. जो युवा मतदाताओं और शहरी वर्ग पर असर डाल सकता है. भाजपा भी चिराग को एनडीए के भीतर बनाए रखने की पूरी कोशिश में है, क्योंकि पासवान वोट बैंक अब भी एनडीए के लिए निर्णायक है.
पेच नंबर 3: मांझी क्यों हैं ‘मौन'
हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) के प्रमुख जीतन राम मांझी चुप हैं हालांकि उन्होंने पहले ही पार्टी को सम्मानजनक सीट मिले इसकी मांग कर दी थी. मांझी का राजनीतिक इतिहास यही बताता है कि वह हर चुनाव से पहले ‘नाराज़ लेकिन ज़रूरी' नेता बन जाते हैं. उनकी पार्टी का वोट शेयर भले छोटा हो, लेकिन दलित समुदाय पर उनका असर कई सीटों पर निर्णायक है. सत्ता के गलियारे में चर्चा है कि मांझी कुछ खास सीटों की गारंटी और मंत्री पद की स्पष्ट प्रतिबद्धता चाहते हैं. भाजपा ने संकेत दिए हैं कि वह मांझी को एनडीए में बनाए रखेगी, लेकिन मांझी के मौन ने अटकलों को और बढ़ा दिया है.
पेच नंबर 4: मुकेश सहनी: ‘सन ऑफ मल्लाह' क्या करेंगे?
मुकेश सहनी, यानी ‘सन ऑफ मल्लाह', एक बार फिर सियासी गणित के केंद्र में हैं. सहनी अब तक महागठबंधन के साथ खड़े रहे हैं, लेकिन इस बार उनकी पार्टी विकासशील इंसान पार्टी (VIP) खुले तौर पर उपमुख्यमंत्री पद की दावेदारी कर रही है. हाल ही में उन्होंने कहा था “हमारी सरकार बनेगी और मैं डिप्टी सीएम बनूंगा.” लेकिन आरजेडी समेत अन्य दलों ने उनकी दावेदारी पर कोई आधिकारिक समर्थन नहीं दिया है.
सहनी की पार्टी ने कई पिछली सीटों पर अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन 2020 के बाद उन्हें लगातार राजनीतिक झटके लगे. मंत्री पद से हटाए जाने से लेकर कई विधायकों के एनडीए में शामिल होने तक. अब वह 2025 में अपने लिए “सम्मानजनक वापसी” चाहते हैं. उनकी अगली चाल पर सबकी नज़र है. क्या वे इंडिया गठबंधन में बने रहेंगे या फिर एनडीए में वापसी करेंगे?
पेच नंबर 5: उपेंद्र कुशवाहा -पवन सिंह की एंट्री के बाद चुप हैं
राजनीति के अनुभवी खिलाड़ी उपेंद्र कुशवाहा फिलहाल चुप हैं, लेकिन उनका मौन भी एक संकेत है. एनडीए और जेडीयू दोनों से दूरी बनाए रखने के बाद वह अपने संगठन राष्ट्रीय लोक मोर्चा को तैयार करने में लगे हैं. सूत्रों के मुताबिक, कुशवाहा ने हाल ही में भाजपा के बिहार प्रभारी विनोद तावड़े और राष्ट्रीय सचिव ऋतुराज सिन्हा से मुलाकात की थी. यह मुलाकात “औपचारिक” कही गई, लेकिन सियासी गलियारों में इसे संभावित “री-एंट्री सिग्नल” के तौर पर देखा जा रहा है.
कुशवाहा का वोट बैंक सीमित होते हुए भी कई सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाता है. खासकर रोहतास, काराकाट के इलाके में वो बेहद अहम हो जाते हैं. हालांकि लोकसभा चुनाव में पवन सिंह के कारण मिली हार के बाद यह देखना रोचक होगा कि वो पवन सिंह को कितना पचा पाते हैं.
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