फेस चेंज फॉर्मूला, जाति-उम्र-सर्वे सब पर नजर... बिहार में जीत के लिए क्या है भाजपा का टिकट बंटवारे का गणित?

भाजपा जानती है कि उम्मीदवारों का चयन न सिर्फ विजयी चेहरे चुनने का विषय है, बल्कि गठबंधन की राजनीति, जातीय समीकरण, संगठनात्मक मजबूती और सत्ता विरोधी लहर को तोड़ने का भी हथियार है. ऐसे में सवाल है कि भाजपा बिहार में टिकट बंटवारे के मामले में किस तरह की रणनीति अपना रही है?

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  • बिहार में भाजपा इस बार पुराने और कमजोर प्रदर्शन करने वालों को विदा कर नए, युवा और सक्रिय चेहरे लाना चाहती है.
  • सूत्रों के मुताबिक, 20 मौजूदा विधायकों और 70 साल से ज्‍यादा उम्र के नेताओं का टिकट कट सकता है.
  • पार्टी संदेश देना चाहती है कि विकास की गाड़ी में बदलाव वाले, एनर्जी वाले लोग आगे हों और नया चेहरा भरोसा जगाए.
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पटना :

बिहार विधानसभा चुनाव करीब आते ही राजनीतिक हलचल तेज हो गई है. हर दल अपने उम्मीदवारों की सूची बनाने और सीट बंटवारे की कोशिशों में जुट गया है. इस बीच, भाजपा की टिकट बंटवारे की रणनीति पर विशेष निगाहें टिकी हैं. भाजपा जानती है कि उम्मीदवारों का चयन न सिर्फ विजयी चेहरे चुनने का विषय है, बल्कि गठबंधन की राजनीति, जातीय समीकरण, संगठनात्मक मजबूती और सत्ता विरोधी लहर को तोड़ने का भी हथियार है. इसी क्रम में शुक्रवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के बिहार प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान पटना पहुंचे और केंद्रीय समिति के सदस्यों के साथ मैराथन बैठक की. मुद्दा था टिकट बंटवारा और उम्मीदवारों का चयन. सनद रहे कि पिछले कुछ दिनों से इसी मुद्दे पर बिहार भाजपा के बड़े नेता लगातार पार्टी के जिला स्तर के सभी लोगों से राय-मशवरा कर रहे हैं. इसे अंतिम रूप देने ही अमित शाह और धर्मेंद्र प्रधान पहुंचे. ऐसे में सवाल है कि भाजपा बिहार में टिकट बंटवारे के मामले में किस तरह की रणनीति अपना रही है ? उसके पीछे का गणित क्या है? और यह रणनीति उसके चुनावी दांव पर किस हद तक असर डाल सकती है.

इस मुद्दे पर जब NDTV ने भाजपा के कुछ शीर्ष नेताओं से बात की तो उन्होंने बताया कि भाजपा इस बार पुराने और कमजोर प्रदर्शन करने वालों को विदा कर नए, युवा और सक्रिय चेहरे लेकर मैदान में जाना चाहती है. अगर सूत्रों की मानें तो करीब 20 मौजूदा विधायकों के टिकट कटने की संभावना है. इससे पार्टी यह संदेश देना चाहती है कि विकास की गाड़ी में बदलाव वाले, एनर्जी वाले लोग आगे हों और 'नया चेहरा' भरोसा जगाए.

70 साल से अधिक उम्र वालों का कटेगा टिकट!

दूसरा पैमाना होगा उम्र. जानकार बताते है कि भाजपा–जदयू गठबंधन में '70 वर्ष आयु से ऊपर' वालों को टिकट मिलने की संभावना कम है , हालांकि इसमें अपवाद भी होंगे. इससे एक ओर पार्टी को 'ताजा' दिखने का लाभ मिलेगा तो वहीं दूसरी ओर वरिष्ठ नेताओं में नाराजगी का जोखिम भी है.

कई मौजूदा विधायक जिन्हें पिछली बार हार मिली थी या जिनका जनसमर्थन घटा है, उन सीटों पर बदलाव की योजना है. सूत्रों के मुताबिक, 30–35% सीटों पर नए चेहरे लाए जाने की संभावना है.

भाजपा के राज्य अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने बताया कि पटना में दो दिवसीय बैठक का मुख्य उद्देश्य जिलावार समीक्षा, उम्मीदवार चयन और रणनीति को अंतिम रूप देना है यानी स्थानीय नेताओं और जिलाध्यक्षों की राय लेने की रणनीति है, जिससे टिकट बंटवारा 'ऊपर से थोपे जाने' की बजाय जमीनी गणना के अनुरूप लगे.

'हर जिले, हर जाति' के उम्मीदवारों की सूची

पार्टी की ओर से यह संकेत भी दिया गया है कि इस बार टिकट वितरण में भाजपा 'हर जिले, हर जाति' के लिए उम्मीदवारों की सूची बनाने की तैयारी में है. यह संदेश यह देने का प्रयास है कि भाजपा केवल किसी विशेष जाति दल के लिए नहीं, बिहार के विविध समूहों के लिए विकल्प बन सकती है, लेकिन इन सबके बीच एक चुनौती है, गठबंधन में सामंजस्‍य बैठाने की.

भाजपा चुनाव अकेले नहीं लड़ रही और उसे अन्य दलों जैसे की जदयू के साथ तालमेल बनाना है. इसलिए सीट बंटवारे में 'समझौता' की भूमिका अहम है. पार्टी के बड़े नेता बताते है कि गठबंधन को और सघन करने के लिए उम्मीदवार चयन में साझा निर्णय लेने की योजना है.

3 एजेंसियों से सर्वे, 5-7 संभावित नाम सूचीबद्ध

भाजपा ने बिहार की हर सीट पर तीन अलग-अलग एजेंसियों से सर्वे करवाया है और उम्मीदवारों के चयन में इन सर्वे रिपोर्टों की अहम भूमिका होगी. भाजपा इस बार हर विधानसभा सीट पर 5–7 संभावित नाम सूचीबद्ध कर रही है. इन नामों में से 2–3 को राज्य या राष्ट्रीय नेतृत्व को भेजा जाएगा और फाइनल फैसला शीर्ष नेतृत्व करेगा. 

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नाराजगी से लाभ उठाने की तैयारी में भाजपा!

भाजपा मानती है कि नए चेहरे व युवा उम्मीदवारों को जगह देकर भाजपा 'कुछ नया' होने का संदेश दे सकती है, जो मतदाता को प्रेरित कर सकता है. यदि कुछ कमजोर विधायक बदल दिए जाएं, तो जनता की नाराजगी से लाभ उठाया जा सकता है.

'हर जाति को टिकट' जैसे संदेश से भाजपा को सामुदायिक संतुलन का लाभ हो सकता है, विशेषकर पिछड़ी जातियों और अल्पसंख्यकों में उनकी स्वीकार्यता बढ़ाने का प्रयास. चुनाव बहुत करीब है, ऐसे में यदि टिकट बंटवारे की प्रक्रिया बहुत देर से शुरू होगी या अंतिम निर्णय देर से होंगे तो प्रचार, संगठन और जनसंपर्क में बाधा आएगी.

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