- बिहार महागठबंधन ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री और मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया.
- मुकेश सहनी ने उपमुख्यमंत्री पद की मांग प्रेस कॉन्फ्रेंस से पहले बैठक में कर माहौल को गर्म कर दिया था
- सहनी ने अपने वोट बैंक की अनदेखी को लेकर पद में हिस्सेदारी की स्पष्ट मांग की थी
बिहार में गुरुवार को महागठबंधन ने आखिरकार साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में तेजस्वी को मुख्यमंत्री तो मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री चेहरे के तौर पर पेश कर दिया. सूत्रों के मुताबिक- प्रेस कॉन्फ्रेंस से ऐन पहले मुकेश सहनी ने ऐसा दांव लगाया कि महागठबंधन के नेता भी हैरान रहे गए. जानकारी के मुताबिक- ऑल इंडिया ब्लॉक नेताओं की बैठक के दौरान विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) प्रमुख मुखेश सहनी ने खुद को उपमुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित करने की मांग रख दी, जिससे पूरा माहौल गर्म हो गया. सहनी के इस कदम से न केवल बैठक में मौजूद अन्य दलों के नेता चौंक गए, बल्कि प्रेस कॉन्फ्रेंस भी देरी से शुरू हो पाई.
होटल के बंद कमरे की कहानी
जिस होटल में प्रेस कॉन्फ्रेंस होने वाली थी यानी मौर्य होटल उसके ही एक सूइट में सहनी भी रुके हुए थे. जब अशोक गहलोत के सूइट में तेजस्वी यादव पहुंचे तो उस वक्त वहां सहनी नदारद थे. वो न तो प्रेस कॉन्फ्रेंस में जाने की हामी भर रहे थे न ही गहलोत के कमरे में जाने की. उनकी शर्त थी कि अगर तेजस्वी को CM चेहरा घोषित किया जाएगा तो वो भी उपमुख्यमंत्री पद की घोषणा अपने लिए चाहते हैं और उसी वक्त चाहते हैं जब तेजस्वी की घोषणा हो. यही वजह थी कि 11.30 पर होने वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस लेट हुई. इस बीच तेजस्वी के गहलोत के सूइट में आने के बाद सहनी को गहलोत ने बुलावा भेजा. सहनी ने कहा था कि मैने 25 सीटों से कम पर इसलिए हामी भरी कि मुझे उपमुख्यमंत्री का पद दिया जाएगा. अगर ये नहीं होता है तो मैं अपने लोगों के बीच क्या मुझ लेकर जाऊंगा? मैंने सार्वजनिक रूप से कहा है कि मैं उपमुख्यमंत्री पद से कम पर नहीं मानूंगा. मल्लाह वोटरों के बीच क्या मुंह लेकर वोट मांगने जाऊंगा. वह लगातार प्रेस कॉन्फ्रेंस में जाने से इनकार करते रहे.
आरजेडी नेताओं ने स्थिति को संभाला
सूत्रों के मुताबिक- मुकेश सहनी ने बैठक में कहा कि उन्होंने बिहार में पिछड़ों, मल्लाह समाज और मछुआरों के हक की लड़ाई सबसे पहले उठाई है. इसलिए महागठबंधन में उन्हें 'सम्मानजनक स्थान' मिलना चाहिए. सहनी ने दो टूक कहा, 'अगर महागठबंधन सामाजिक न्याय की बात करता है, तो हमें सिर्फ सीट नहीं, पद में भी हिस्सेदारी चाहिए.' उनके इस बयान ने माहौल को गर्म कर दिया. कई नेता आपस में चर्चा में जुट गए, जबकि आरजेडी नेताओं ने स्थिति को संभालने की कोशिश की.
तेजस्वी मनाते रहे, अड़े रहे सहनी
मौजूद सूत्र बताते हैं कि तेजस्वी यादव ने तत्काल दखल देते हुए सभी नेताओं को शांत किया. तेजस्वी ने कहा कि गठबंधन की ताकत एकता में है और इस वक्त किसी तरह का पद की मांग या बहस गलत संदेश देगा. उन्होंने सहनी को भरोसा दिलाया कि चुनाव के बाद सत्ता आने पर हर दल की भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी.
सूत्रों के मुताबिक- सहनी इस जवाब से पूरी तरह संतुष्ट नहीं दिखे और उन्होंने दोहराया कि 'मेरे वोट बैंक को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.' सहनी के इस बयान से कांग्रेस और वाम दलों के नेता भी असहज हो गए. कांग्रेस और वामदलों ने संकेत दिया कि उपमुख्यमंत्री पद का सवाल अभी पूर्व-निर्धारित एजेंडा नहीं है, इसलिए इस पर कोई फैसला चुनाव से पहले संभव नहीं.
...और दिल्ली गया फोन
निर्धारित समय पर शुरू होने वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस लगभग एक घंटे तक टल गई. अंदर की खबरें बाहर आने लगीं कि सहनी डिप्टी सीएम पद की घोषणा पर अड़े हैं. इसके बाद गहलोत ने कृष्णा अलावरू से बात की. उन्होंने दिल्ली बात की उसके बाद सहनी के गठबंधन छोड़ने की आशंका के बीच कांग्रेस आलाकमान ने गहलोत को संदेश दिया कि सहनी की मांग मान लीजिए. इस बीच गहलोत ने लेफ्ट नेता दीपांकर भट्टाचार्य को भी अपने सूइट में बुलाया जो नीचे प्रेस कॉन्फ्रेंस हाल में लगभग एक घंटे पहले से बैठे हुए थे. उनको भी ये सूचना दी गई, भट्टाचार्य ने सहनी की उम्मीदवारी का कोई विरोध नहीं किया और बात बन गई. उसके बाद तेजस्वी और गहलोत ने साहनी को उपमुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने का वादा कर दिया जिसके बाद ही वो मंच पर आए.
सहनी क्यों हैं जरूरी
मुकेश सहनी ने पिछली बार एनडीए से अलग होकर महागठबंधन का दामन थामा था, लेकिन उन्हें अपेक्षित परिणाम नहीं मिले. इसके बावजूद, उन्होंने लगातार अपनी सामाजिक पकड़ बनाए रखी. सहनी का मल्लाह वोट बैंक सीमांचल से लेकर कोसी और मिथिलांचल तक असर रखता है. उनकी यह रणनीति साफ है- सामाजिक न्याय की राजनीति में अपने अस्तित्व और प्रासंगिकता को संस्थागत दर्जा दिलाना.
महागठबंधन के भीतर यह पहली बार नहीं जब चेहरे और पद को लेकर विवाद उठा हो. लेकिन तेजस्वी यादव अब तक ऐसे हर मौके पर संतुलन साधते रहे हैं. हालांकि राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यदि सहनी की नाराजगी बनी रहती है, तो इसका असर सीमांचल और मल्लाह बहुल सीटों पर दिख सकता है. फिलहाल सहनी के नाम का ऐलान हो चुका है. महागठबंधन का यह डिप्टी सीएम विवाद आने वाले दिनों में बड़ा सियासी इशारा बन सकता है. क्या यह ‘समान हिस्सेदारी' की मांग है या नई शक्ति संतुलन की शुरुआत?