बिहार चुनाव 2025: NDA ने मैदान में उतारे 5 मुस्लिम उम्मीदवार, जानिए कौन हैं ये चेहरे और कहां से लड़ रहे हैं

एनडीए की सूची में मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या भले ही सिर्फ पांच है, लेकिन इन पांचों का चुनावी प्रभाव अपने-अपने इलाकों में अहम हैं.

विज्ञापन
Read Time: 5 mins
पटना:

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का सियासी बिगुल बज चुका है. राज्य की 243 विधानसभा सीटों पर राजनीतिक दलों ने अपने उम्मीदवारों की पूरी फौज मैदान में उतार दी है, लेकिन अगर एनडीए (NDA) की बात करें तो इस बार की उम्मीदवार सूची में एक दिलचस्प बात देखने को मिली है. एनडीए ने अपने 243 उम्मीदवारों में सिर्फ 5 मुस्लिम चेहरों को टिकट दिया है. इनमें से 4 उम्मीदवार जनता दल यूनाइटेड (JDU) से और 1 उम्मीदवार लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) से चुनावी मैदान में उतर रहे हैं. भले ही इनकी संख्या कम हो, लेकिन ये पांच सीटें और उम्मीदवार राज्य के राजनीतिक समीकरणों में खास महत्व रखते हैं.

आइए जानते हैं एक-एक कर कि कौन हैं ये पांच मुस्लिम उम्मीदवार 

सबा जफर – अमौर विधानसभा (पूर्णिया), उम्मीदवार: JDU

पूर्णिया जिले के अमौर विधानसभा क्षेत्र से सबा जफर एक बार फिर से चुनावी मैदान में हैं। सबा जफर बिहार की राजनीति का जाना-पहचाना नाम हैं. सबा जफर ने पटना विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की है। वे 2010 में पहली बार जेडीयू के टिकट पर विधायक बने थे, और उस वक्त उन्होंने अपनी साफ-सुथरी छवि और जनसंपर्क के बूते पर जीत दर्ज की थी.

2015 में उन्होंने बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन इस बार किस्मत ने साथ नहीं दिया और वे हार गए. इसके बाद 2020 के विधानसभा चुनाव से पहले वे दोबारा जेडीयू में लौट आईं, लेकिन जीत हासिल नहीं कर पाईं। अब 2025 में नीतीश कुमार ने एक बार फिर उन पर भरोसा जताया है.

जमा खान – चैनपुर विधानसभा (कैमूर), उम्मीदवार: JDU

कैमूर जिले के चैनपुर विधानसभा क्षेत्र से इस बार जेडीयू ने जमा खान को उम्मीदवार बनाया है. जमा खान इस समय बिहार सरकार में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हैं. उनकी राजनीतिक यात्रा संघर्ष और बदलाव की मिसाल रही है. 2005 में उन्होंने बहुजन समाज पार्टी (BSP) से चुनाव लड़ा लेकिन हार गए. 2010 में उन्होंने कांग्रेस से किस्मत आजमाई, लेकिन सफलता नहीं मिली. 2015 में फिर BSP से चुनाव लड़ा और बेहद करीबी अंतर (लगभग 600 वोटों से) हार गए.

2020 में उन्होंने BSP के टिकट पर जीत दर्ज की, और भाजपा के बृज किशोर बिन्द को हराया. इसके बाद जमा खान जेडीयू में शामिल हो गए, और मंत्री पद भी मिला. अब 2025 में वे जेडीयू के टिकट से चैनपुर से चुनाव लड़ रहे हैं, जहां मुकाबला दिलचस्प हो गया है क्योंकि बृज किशोर बिन्द अब राजद (RJD) के टिकट से मैदान में हैं. जमा खान को इलाके में ग्राउंड कनेक्ट वाले नेता के तौर पर जाना जाता है, जिनकी पकड़ खासकर पिछड़े और अल्पसंख्यक वोटरों में मजबूत मानी जाती है.

मोहम्मद कलीमुद्दीन – बहादुरगंज विधानसभा (किशनगंज), उम्मीदवार: LJP (रामविलास)

किशनगंज जिले के बहादुरगंज विधानसभा क्षेत्र से लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने मोहम्मद कलीमुद्दीन को उम्मीदवार बनाया है. कलीमुद्दीन किशनगंज शहर के निवासी हैं और इस इलाके में लंबे समय से सक्रिय राजनीति कर रहे हैं. उनकी उम्र 52 वर्ष है और उन्होंने स्नातक की डिग्री प्राप्त की है.

Advertisement

कलीमुद्दीन पहले किशनगंज नगर परिषद के उपाध्यक्ष रह चुके हैं, और लोजपा (रामविलास) के प्रदेश महासचिव के रूप में भी पार्टी संगठन में सक्रिय भूमिका निभा चुके हैं. उनकी पत्नी निखत परवीन, किशनगंज नगर परिषद की उपाध्यक्ष हैं, यानी परिवार पूरी तरह से सामाजिक और राजनीतिक रूप से सक्रिय है. मोहम्मद कलीमुद्दीन ने 2020 में ठाकुरगंज से लोजपा टिकट पर चुनाव लड़ा था, जिसमें उन्हें 2490 वोट मिले और वे सातवें स्थान पर रहे. 2005 में किशनगंज (अब कोचाधामन) से लड़े थे और पांचवें स्थान पर रहे थे. हालांकि, इस बार उनकी उम्मीदें कुछ और हैं, बहादुरगंज सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है, जहां लोजपा (रामविलास), राजद और AIMIM के बीच दिलचस्प टक्कर की संभावना है.

मंजर आलम – जोकिहाट विधानसभा (अररिया), उम्मीदवार: JDU

अररिया जिले के जोकिहाट विधानसभा क्षेत्र से मंजर आलम को जेडीयू ने टिकट दिया है. मंजर आलम का राजनीतिक करियर काफी पुराना है. वे 2005 के फरवरी चुनाव में जेडीयू के टिकट पर पहली बार विधायक बने, फिर नवंबर 2005 में दोबारा चुनाव जीते. इसके बाद वे बिहार सरकार में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री भी बने थे. नीतीश कुमार ने उन्हें एमएलसी (विधान परिषद सदस्य) भी बनाया था. 

Advertisement

अब एक लंबे अंतराल के बाद मंजर आलम दोबारा जोकिहाट से चुनाव मैदान में हैं. जोकिहाट सीट पर हमेशा से मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में रहे हैं, और मंजर आलम इस समुदाय में नीतीश कुमार की सॉफ्ट अपील को आगे बढ़ाने वाले चेहरों में से एक हैं. 

शगुफ्ता अजीम – अररिया विधानसभा (अररिया), उम्मीदवार: JDU

अररिया विधानसभा सीट पर जेडीयू ने शगुफ्ता अजीम पर भरोसा जताया है. शगुफ्ता अजीम ने पहले सिकटी सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन बाद में जेडीयू में शामिल हो गईं. उनके ससुर अजीमुद्दीन, बिहार की राजनीति में एक जाना-पहचाना नाम रहे हैं, वे पांच बार विधायक रह चुके हैं. 2020 में अररिया सीट पर तीन मुस्लिम उम्मीदवारों के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिला था. कांग्रेस के अबिदुर रहमान ने 1,03,054 वोट पाकर जीत हासिल की थी, जबकि शगुफ्ता अजीम को 55,118 वोट मिले थे. हालांकि उस चुनाव में जीत और हार के बीच बड़ा अंतर था, लेकिन शगुफ्ता ने अपनी राजनीतिक उपस्थिति दर्ज कराई थी. इस बार वे बेहतर रणनीति और जेडीयू के मजबूत संगठन के साथ मैदान में हैं.

Advertisement

एनडीए की सूची में मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या भले ही सिर्फ पांच है, लेकिन इन पांचों का चुनावी प्रभाव अपने-अपने इलाकों में अहम है. पूर्णिया, कैमूर, किशनगंज और अररिया ये सभी सीटें सीमांचल और दक्षिण बिहार के अल्पसंख्यक बहुल इलाके हैं, जहां मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं.

नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने यहां ‘समावेशी राजनीति' का संदेश देने की कोशिश की है, जबकि लोजपा (रामविलास) ने भी अपने सीमित दायरे में मुस्लिम चेहरा उतारकर गठबंधन की विविधता दिखाने की पहल की है. बिहार की राजनीति में ये पांच उम्मीदवार सिर्फ टिकटधारी नहीं, बल्कि एनडीए के अल्पसंख्यक संदेशवाहक हैं. अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या ये पांच चेहरे वोटों के गणित को अपने पक्ष में मोड़ पाते हैं या नहीं. 

Advertisement
Featured Video Of The Day
NDTV World Summit 2025: नक्सलवाद से मुक्त भारत, मोदी की गारंटी! | Khabron Ki Khabar
Topics mentioned in this article