बिहार में महिला वोटों पर महाभारत, पीएम मोदी-नीतीश कुमार Vs प्रियंका गांधी

बिहार चुनाव में महिला मतों पर महाभारत छिड़ी है. एक तरफ पीएम मोदी-नीतीश कुमार ने 75 लाख महिलाओं को 10-10 हजार का तोहफा दिया, वहीं प्रियंका गांधी ने भूमिहीन महिलाओं को 3 से 5 डिसमिल जमीन देने का वादा किया. सवाल ये कि आधी आबादी के वोट किसके खाते में आएंगे?

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बिहार का आगामी चुनाव न सिर्फ दलों की सियासी लड़ाई बल्कि विचारधाराओं के टकराव का भी गवाह बनने वाला है, खासकर महिलाओं के सशक्तिकरण और कल्याण को लेकर. ऐसे में इसे बिहार में महिला मतों की महाभारत कहा जाए, तो गलत नहीं होगा. इसे इत्तफाक कहें या सियासी जरूरत, जिस दिन प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बिहार में मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना की शुरुआत की, उसी दिन कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी पटना के सदाकत आश्रम और मोतिहारी पहुंचीं. नवरात्र में 26 सितंबर को अचानक से बिहार में महिलाओं के लिए घोषणाओं और वादों की बरसात हुई. इसमें एक तरफ प्रियंका गांधी तो दूसरी तरफ पीएम मोदी-सीएम नीतीश कुमार की जोड़ी रही. लेकिन मूल सवाल ये है कि बिहार जैसे पुरुषवादी समाज में महिला सशक्तिकरण का असल प्रतिनिधि कौन है? आगामी चुनावों में आधी आबादी के वोट किसे निर्णायक बढ़त दिलाएंगे?

पीएम मोदी का 10 हजारी दांव

प्रधानमंत्री मोदी बिहार की महिलाओं के लिए खाते में सीधे पैसे देने का नया संकल्प लेकर आए. मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना, जो कि नीतीश कुमार के विचारों की उपज है, कई मायनों में अनोखी है. इसमें पैसा देना का वादा नहीं था बल्कि 75 लाख महिलाओं के खाते में तुरंत 10-10 हजार रुपये ट्रांसफर कर दिए गए. बिहार जैसे आर्थिक रूप से कमजोर प्रदेश की महिलाओं के लिए यह एक बड़ी बात है. कई जानकार इसे गेमचेंजर मान रहे हैं. इसकी तुलना मध्य प्रदेश की लाड़ली बहना योजना और महाराष्ट्र की माझी लाडकी बहिन योजना से हो रही है.

पीएम मोदी-नीतीश की 'भाई-बंदी'

पीएम मोदी ने इस दौरान अपने खास अंदाज में कहा, “मैं और नीतीश कुमार बिहार की महिलाओं के दो भाई हैं. महिलाओं की सेवा, समृद्धि और गरिमा के लिए हम दोनों मिलकर काम कर रहे हैं.” प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना को आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा कदम बताया और उनकी उम्मीदों की पूर्ति का प्रभावशाली साधन करार दिया. इसका इस्तेमाल छोटी दुकानों, स्वरोजगार और कृषि, पशुपालन, हस्तशिल्प, सिलाई, बुनाई जैसे कामों में करने को कहा. साथ ही ये भी कहा कि अगर इस रकम का सही उपयोग हुआ तो आगे 2 लाख तक की सहायता और दी जा सकती है. पीएम ने यह भी कहा कि इसी महीने उन्होंने जीविका निधि साख सहकारी संघ की शुरुआत की थी. ये दोनों योजनाएं महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए हैं. 

नीतीश पर रहा है महिलाओं का भरोसा

नीतीश कुमार राजनीतिक रंगमंच के अनुभवी खिलाड़ी हैं. लंबे समय से महिला अपने मतों के लिए उन पर भरोसा करती रही हैं. उन्होंने छोटी-छोटी योजनाओं से महिलाओं का भरोसा जीता है. छात्राओं को साइकिलें दीं. महिलाओं के लिए 50 पर्संट सीटें रिजर्व कीं. पूरे राज्य में शराब पर पाबंदी लगाई. शराबबंदी की भले ही आर्थिक नुकसान के लिए आलोचना हुई हो, लेकिन कई घरों की चारदीवारी के अंदर इसका जश्न मनाया गया क्योंकि ये उनमें रहने वाली महिलाओं के लिए घरेलू दुर्व्यवहार और पैसों की बर्बादी का अंत था. 

'महिला वोटरों पर 32% की बढ़त'

नीतीश कुमार ने दो दशकों में इसी तरह की नीतियों ने महिला वोटरों के मन में जगह बनाई है. एक हालिया सर्वे में दावा किया गया है कि महिला वोटरों के बीच नीतीश को अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी राजद के तेजस्वी यादव से 32 प्रतिशत की बढ़त हासिल है. 20 साल सत्ता में रहने के बाद ऐसा समर्थन भारतीय राजनीति में अद्भुत है. मोदी-नीतीश की जुगलबंदी का ही नतीजा था कि विधानसभा चुनाव हों या लोकसभा के, महिलाएं बड़ी संख्या में निकलीं और एनडीए को जीत मिली. सिर्फ 2015 का चुनाव अपवाद रहा, जब नीतीश ने लालू यादव से गठबंधन किया था.

प्रियंका गांधी की 'मौन क्रांति'

दूसरी तरफ, कांग्रेस की नेता प्रियंका गांधी ने बिहार में अपनी पिछली बड़ी रैलियों में पारंपरिक चुनावी वादों से हटकर, एक मौन क्रांति का आगाज किया है. पटना के सदाकत आश्रम से प्रियंका ने भूमिहीन परिवारों को 3 से 5 डिसमिल जमीन देने और उसका मालिकाना हक परिवार की महिला के नाम पर करने का वादा किया है. वह जब मोतिहारी गईं, तो भोजपुरी में 'का हाल बा' कहकर शुरुआत की. तालियां बजीं तो प्रियंका ने तुरंत चुटकी लेते हुए कहा- अब हाल बदलने का वक्त आ गया है. महिलाओं के नाम जमीन के मालिकाना हक का कांग्रेस का यह वादा संपत्ति और विरासत के मौलिक अधिकारों में निहित एक गहरे सशक्तीकरण को दिखाता है. यह महिलाओं को सिर्फ आर्थिक भागीदार नहीं, बल्कि उस जमीन की मालकिन के रूप में देखता है, जिस पर वह खड़ी हैं. वह भी ऐसे राज्य में जहां जमीन ही सामाजिक प्रतिष्ठा की गारंटी मानी जाती है. 

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प्रियंका का पीएम मोदी पर निशाना 

प्रियंका गांधी ने पटना में अपने भाषण के दौरान पीएम मोदी पर तीखा हमला किया और मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना की टाइमिंग पर सवाल उठाए. उन्होंने पूछा, "चुनाव नजदीक हैं, मुश्किल से एक महीना बचा है. तब इन्होंने आपको 10 हजार रुपये देने की घोषणा की है. लेकिन पिछले 20 साल से सत्ता में कौन है? 20 साल तक आपको 10 हजार रुपये क्यों नहीं दिए गए? क्या यह पैसा हर महीने मिलेगा? गौर करने की बात है कि जब प्रियंका ने पूछा कि "पिछले 20 साल से बिहार की सत्ता में कौन है" तो भीड़ से आवाज गूंजी- "जो वोट चोरी करते हैं". 

प्रियंका ने एनडीए पर आरोप लगाया कि उसका एकमात्र सरोकार किसी भी तरह चुनाव जीतना और सत्ता में बने रहना है. पुराने तरीके (जाति-धर्म का विभाजन और घुसपैठिए का डर) अब काम नहीं कर रहे तो 'वोट चोरी' का सहारा ले रहे हैं. प्रियंका ने महिला वोटरों को चतुर सलाह देते हुए ये भी कहा कि हमारी माताएं-बहनें बहुत होशियार हैं. सरकार ने जो तिजोरी खोली है, आप वह सारा पैसा ले लो. लेकिन वोट उन्हें ही देना जो वाकई आपकी जिंदगी सुधारने की सोचते हैं. 

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बिहार चुनाव में महिला वोटरों की जंग 

बिहार में जहां गंगा की रेत और पानी जाति और खेती को लंबे समय से सींचते रहे हैं, वहां अब एक नई राजनीतिक लड़ाई लड़ी जा रही है. ये शांत, लेकिन दमदार लड़ाई उनके लिए है, जो प्रदेश के चुनाव में सबसे अहम भूमिका निभाती हैं- महिलाएं. पिछले दो दशकों से ये महिला वोटर नीतीश कुमार के राजनीतिक अस्तित्व का अटूट आधार रही हैं. लेकिन नवंबर के विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, मैदान में नए दावेदार नए नजरिए के साथ उतर रहे हैं और बता रहे हैं कि बिहार में महिलाओं का भविष्य कैसा होना चाहिए.

प्रियंका को ये सबक सीखने चाहिए

प्रियंका को एक सबक जो नरेंद्र मोदी-नीतीश कुमार की जुगलबंदी से सीखना चाहिए, वह यह है कि जब गठबंधन की राजनीति जरूरत बन जाए तो 'एकला चलो' का राग नहीं अलापना चाहिए. अगर प्रियंका RJD की किसी अन्य महिला नेता (राबड़ी देवी, मीसा भारती या किसी अन्य) के साथ मोतिहारी गई होतीं, तो शायद महागठबंधन को कहीं ज्यादा सियासी लाभ मिल सकता था. चुनावों में जुगलबंदी का असर सिर्फ सांकेतिक नहीं, सीधा होता है. प्रियंका को राहुल गांधी से सीखना चाहिए था, जिन्होंने वोटर अधिकार रैली में तेजस्वी और दीपांकर भट्टाचार्य को साथ रखा था.

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नवंबर के चुनावों में असल सवाल ये नहीं होगा कि महिलाएं पार्टी को चुनेंगी, बल्कि ये होगा कि वो किस पार्टी की विचारधारा का समर्थन करेंगी. क्या वो नीतीश कुमार का हाथ थामे रहेंगी, जिन्होंने धीरे-धीरे अपनी विरासत जमाई है? या फिर वो पीएम मोदी के नकद कैश ट्रांसफर जैसे प्रभावशाली कदम से प्रभावित होंगी, जिसने सीधे उन्हें आर्थिक मजबूती दी है? या फिर वो प्रियंका को सपोर्ट करेंगी, जिनका वादा पीढ़ीगत सुरक्षा का एक गहरा सहारा जैसा लगता है. बहरहाल, बिहार की महिलाओं का फैसला चाहे जो हो, वह न सिर्फ नई सरकार बल्कि एक नए राजनीतिक युग का भविष्य भी तय करेगा.

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