पटना की शहरी सीटों पर घटता मतदान प्रतिशत, क्या बीजेपी के गढ़ में सेंध की उम्मीद जगा रहा है विपक्ष?

पटना के सेंट्रल में कुम्हरार विधानसभा चुनाव में सन 2020 में कुल मतदान करीब 35.73 % रहा और बीजेपी महज़ 26.5 हज़ार मतों से जीती. जबकि साल 2015 के विधानसभा चुनाव में मतदान 38.4 % रहा और बीजेपी के जीत का अंतर करीब 37 हजार रहा. साल 2010 में कुल मतदान का क़रीब 72 % वोट बीजेपी को मिला था.

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  • पटना के शहरी इलाकों में पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनावों में मतदान प्रतिशत लगातार कम होता जा रहा है
  • 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने शहर की चारों सीटें आसानी से जीत लीं लेकिन जीत का अंतर घट गया था
  • राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार शहरी क्षेत्रों में मतदाता बीजेपी की जीत को निश्चित मानकर कम मतदान करते हैं
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पटना:

पिछले दो-तीन विधानसभा और लोकसभा चुनाव में पटना के शहरी इलाकों में कम मतदान देखा जा रहा है. हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2020 में बीजेपी शहर की चारों सीट आसानी से जीत गई. लेकिन कम मतदान ने जीत का अंतर भी कम कर दिया है, जो कि बीजेपी के विरोध वालों को एक मनोवैज्ञानिक उत्साह दे सकता है. उदाहरण के लिए राजधानी पटना के सेंट्रल में कुम्हरार विधानसभा चुनाव में सन 2020 में कुल मतदान करीब 35.73 % रहा और बीजेपी महज़ 26.5 हज़ार मतों से जीती. जबकि साल 2015 के विधानसभा चुनाव में मतदान 38.4 % रहा और बीजेपी के जीत का अंतर करीब 37 हजार रहा. साल 2010 में कुल मतदान का क़रीब 72 % वोट बीजेपी को मिला था.

क्या कह रहे हैं एक्सपर्ट

राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि कई शहरी क्षेत्र को बीजेपी का गढ़ माना जाता है और इस कारण उनके मतदाता मतदान के दिन निश्चित रहते हैं कि किसी भी सूरत में उनका दल जीत ही जाएगा. विपक्ष के मतदाता भी इसी सोच में रहते हैं कि किसी भी सूरत में बीजेपी जीत जाएगी तो मतदान का प्रतिशत काफ़ी कम हो जाता है. हालांकि, इस बार चुनाव आयोग मतदान के प्रतिशत को बढ़ाने के लिए काफी प्रयास कर रही है. कल छठ के मौके पर पटना के विभिन्न घाटों से चुनाव आयोग का नौका भी घूमी, लेकिन इसमें राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं की भी कमी है कि वो समय रहते अपने मतदाता को सही सूचना नहीं दे पाते हैं.

पिछले चुनाव में आई थी ये समस्या

पिछले चुनाव कई मतदाता अपने मतदान केंद्र को खोजते भटकते नज़र आए. हालांकि अब टेक्नोलॉजी के साथ चुनाव आयोग बहुत कुछ सूचना अपने ऐप के माध्यम से मतदाताओं को उनके स्मार्टफोन पर उपलब्ध करा रही है, लेकिन बिहार के हर मतदाता के पास स्मार्टफोन भी नहीं है, ऐसे में उन्हें सरकारी कर्मचारी या राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर निर्भर रहना पड़ता है. ग्रामीण क्षेत्रों में कई पीढ़ी से राजनीतिक कार्यकर्ता या लोकल सरकारी कर्मचारी मतदाताओं को टोला मुहल्ला के हिसाब से जानते हैं तो वहां सूचना बिना स्मार्टफोन भी तेजी से पहुंच जाती है. जबकि शहर में सिवाय मकान मालिक बाकि सब कुछ एक चुनाव से दूसरे चुनाव बदल जाता है तो मुश्किल आती है.

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