- भाजपा ने बिहार चुनाव के लिए उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है. 101 में से 71 नामों की घोषणा की गई है.
- इस सूची में 40% उम्मीदवार ओबीसी से हैं. इनमें यादव अपेक्षाकृत कम और अन्य समुदायों को प्राथमिकता दी गई है.
- राज्य की आबादी में करीब 36% हिस्सेदारी रखने वाले अति पिछड़ों को भाजपा ने करीब 20% सीटें दी हैं.
भाजपा ने आखिरकार 2025 बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections) की पहली सूची जारी कर दी. 101 उम्मीदवारों में से 71 नामों की घोषणा की गई है. इस सूची में विभिन्न जातीय समूहों, आयु वर्गों, क्षेत्रीयता और लैंगिक प्रतिनिधित्व की झलक मिलती है. भाजपा की पहली सूची में जातीय संतुलन को बड़े ध्यान से साधने की कोशिश की गई है. बिहार की राजनीति में जाति अब भी सबसे निर्णायक कारक है और पार्टी ने अपने सामाजिक गठजोड़ को व्यापक बनाने की रणनीति अपनाई है.
ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत और कायस्थ, ये चार पारंपरिक सवर्ण समुदाय भाजपा के स्थायी वोट बैंक हैं. सूची में करीब 27-30% उम्मीदवार इन्हीं वर्गों से आते हैं. भूमिहार उम्मीदवारों की संख्या सबसे अधिक है, विशेषकर पटना, मुजफ्फरपुर और बक्सर जैसे जिलों में. राजपूत उम्मीदवार को पश्चिम बिहार (सारण, भोजपुर, कैमूर, और आरा) से ज्यादा दिए गए हैं. ब्राह्मण और कायस्थ को सीमित संख्या में लेकिन रणनीतिक सीटों पर उतारा गया है, विशेषकर शहरी क्षेत्रों में.
ओबीसी वर्ग से 40 फीसदी उम्मीदवार
पार्टी की सूची में करीब 40% उम्मीदवार ओबीसी वर्ग से हैं. इनमें यादव अपेक्षाकृत कम हैं, जबकि कुर्मी, कोइरी, बनिया, तेली, नोनिया, और कुशवाहा समुदायों को प्राथमिकता दी गई है. नीतीश कुमार की परंपरागत कुर्मी बिरादरी से करीब 8-9 उम्मीदवार, कोइरी (कुशवाहा) से करीब 10 उम्मीदवार, जबकि तेली और नोनिया जैसी पिछड़ी जातियों को भी 4-5 टिकट दिए गए हैं. यह स्पष्ट है कि भाजपा का उद्देश्य ओबीसी में गैर-यादव समूहों को सशक्त बनाना और जेडीयू पर निर्भरता घटाना है.
पासवान समुदाय के उम्मीदवारों को प्राथमिकता
SC आरक्षित 38 सीटों में से पहली सूची में 10-12 उम्मीदवार इस वर्ग से हैं. पासवान समुदाय के उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी गई है, जो चिराग पासवान की एलजेपी से भाजपा के संबंधों को सहेजने का संकेत है. मांझी और मुसहर समुदाय से भी टिकट दिए गए हैं, जिससे जीतन राम मांझी के प्रभाव को बैलेंस किया जा सके.
भाजपा की सूची में महिलाओं की हिस्सेदारी करीब 10 फीसदी है. इनमें से अधिकांश महिलाएं या तो पार्टी लाएं या तो पार्टी से लंबे समय से जुड़ी कार्यकर्ता हैं या किसी स्थानीय प्रभावशाली परिवार से आती हैं.
राजनीतिक रूप से क्या संदेश देना चाहती है भाजपा?
राजनीतिक रूप से, भाजपा यह संदेश देना चाहती है कि वह महिला मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए “महिला सशक्तिकरण” के मुद्दे को केंद्र में रख रही है, खासकर जब नीतीश सरकार “मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना” जैसी योजनाएं चला रही है.
महिला उम्मीदवारों की एक विशेषता यह भी है कि इनमें एक-तिहाई SC/OBC वर्ग से आती हैं, जबकि कुछ अति पिछड़ी जातियों से भी हैं, जो सामाजिक विविधता का प्रतीक है.
भाजपा का इन जिलों पर सबसे ज्यादा फोकस
पहली सूची में भाजपा ने सीवान, सारण, गया, मुजफ्फरपुर, दरभंगा और पटना जिलों में ज्यादा फोकस किया है. उत्तर बिहार (मिथिला और कोसी क्षेत्र) से करीब 35% उम्मीदवार, दक्षिण बिहार (मगध और शाहाबाद) से 30%, जबकि सीमांचल और चंपारण क्षेत्र को संतुलित प्रतिनिधित्व दिया गया है.
इससे साफ है कि भाजपा अपने पारंपरिक गढ़ों (बक्सर, भोजपुर, गया, पटना, दरभंगा) में मजबूती बनाए रखते हुए सीमांचल जैसे मुस्लिम-बहुल इलाकों में प्रयोग करना चाहती है.
पहली सूची से मिले कई राजनीतिक संकेत
भाजपा की यह पहली सूची कई राजनीतिक संकेत देती है. सवर्ण संतुलन कायम रखते हुए पिछड़ों की हिस्सेदारी बढ़ाना, EBC और दलित वोटों को मजबूत करना, महिलाओं और युवाओं को प्रतिनिधित्व देना और क्षेत्रीय संतुलन के साथ संगठनात्मक निष्ठा को पुरस्कृत करना.
यह सूची बताती है कि पार्टी ने बिहार के सामाजिक ढांचे को समझते हुए अपने टिकट वितरण को इस तरह संतुलित किया है कि ऊंची जातियों की परंपरागत पकड़ बनी रहे, पिछड़ों और दलितों में पैठ और गहरी हो और महिलाएं और युवा मतदाता को आकर्षित किया जा सके.