बिहार के पूर्वी चंपारण जिले की गोविंदगंज विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास काफी रोचक रहा है. कभी यह सीट कांग्रेस का अटूट गढ़ मानी जाती थी, लेकिन बदलते राजनीतिक समीकरणों ने इसे भाजपा और अन्य दलों के लिए भी महत्वपूर्ण बना दिया.साल 1952 से 1967 तक कांग्रेस लगातार यहां जीत दर्ज करती रही. हालांकि, 1980 के बाद से पार्टी दोबारा अपना परचम नहीं लहरा सकी. साल 2008 के परिसीमन के बाद इस विधानसभा में दक्षिणी बरियारिया, पहाड़पुर और अरेराज जैसे क्षेत्रों को भी शामिल कर लिया गया, जिससे समीकरण बदल गए.
साल 2020 में भाजपा ने बाजी पलटी
2020 के चुनाव में भाजपा उम्मीदवार सुनील मणि तिवारी ने कड़ी मेहनत और आक्रामक प्रचार अभियान के दम पर कांग्रेस के ब्रजेश कुमार को मात दी. तिवारी को 65,544 वोट मिले, जबकि ब्रजेश कुमार 37,620 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे. इस जीत ने साबित किया कि भाजपा का यहां मजबूत वोट बैंक तैयार हो चुका है.
साल 2015 में लोजपा ने किया था कमाल
2015 का चुनाव लोजपा के लिए खास रहा. पार्टी के उम्मीदवार राजू तिवारी ने कांग्रेस के ब्रजेश कुमार को बड़े अंतर से हराया. उन्हें 74,685 वोट हासिल हुए थे. इस जीत ने लोजपा को इस क्षेत्र में मजबूत पहचान दी और यह संदेश दिया कि क्षेत्रीय पार्टियां भी यहां निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं.
वहीं, 2010 के चुनाव में जदयू की मीना द्विवेदी ने 33,859 वोटों के साथ लोजपा के राजू तिवारी (25,454 वोट) को हराकर जीत दर्ज की थी. जदयू की यह सफलता बताती है कि विकास और स्थानीय मुद्दों पर आधारित राजनीति यहां असरदार रही है.
गोविंदगंज नए राजनीतिक समीकरण बनाता
गोविंदगंज विधानसभा सीट पर हर बार मुकाबला दिलचस्प और अप्रत्याशित होता है. बदलते समय के साथ यह साफ है कि गोविंदगंज में मतदाता हमेशा नए राजनीतिक समीकरण गढ़ते हैं और उनका फैसला अक्सर बड़े दलों की रणनीतियों को बदलने पर मजबूर कर देता है.