लोकतंत्र के महापर्व का प्रथम चरण अर्थात नामांकन का दौर थम चुका है. पार्टी द्वारा टिकट-वितरण से लेकर प्रत्याशियों के नामांकन तक मे खूब किचकिच हुई. टिकट बेचने के आरोप लगे ,रूठने-मनाने के दौर भी चले, दबाब की राजनीति हुई, संवादहीनता की स्थिति भी आई, किसी ने खुले शब्दों में तो किसी ने शायरी का सहारा लेकर अपना दर्द बयां किया. कमोबेश हर तरफ एक ही स्थिति, दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिए. जब हाथों के बीच भी फासले नजर आए तो दोस्ताना संघर्ष जैसा खूबसूरत नाम दे दिया. लोकतंत्र के अखाड़े में 'नेतालीला' के कई रंग देखने को मिले. कहीं धरना तो कही कुर्ता फाड़ प्रदर्शन, बेटिकट हुए तो दिल के अरमान आसुओं में तब्दील हुए, किसी ने आंसू जाया करने की बजाय चुनौती को हथियार बनाया तो किसी ने तुम नहीं तो और कोई सही की तर्ज पर नया आशियाना बसाया तो वहीं किसी ने बागी बनकर जनता की अदालत में जाना मुनासिब समझा.
दशकों तक पार्टी का झंडा उठाने की बजाय नेताजी ने आधुनिक कुशल प्रबंधन के ज़रिए पैराशूट के सहारे सीधे टिकट के साथ चुनावी मैदान का रुख किया. कुल मिलाकर इस अजब टिकट की गजब कहानी रही. पुरानी कहावत है कि इश्क और जंग में सब कुछ जायज है और चुनाव भी जंग की तासीर रखता है. लेकिन इन तमाम रंगों का लब्बोलुआब यह है कि चुनावी-समर के आगाज के साथ ही इस जंग में दलीय प्रतिबद्धता दरकती हुई नजर आई और राजनीतिक विचारधारा बेमानी साबित हुई. मतलब विधायकी के लिए कुछ भी करेगा.
विधायक और जिलाध्यक्ष हुए बागी,पैसे के लेनदेन का लगाया आरोप
कसबा विधानसभा क्षेत्र के कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री आफाक आलम खूब सुर्खियों में रहे. वे चार बार विधायक रहे हैं और उम्र के इस पड़ाव पर पार्टी ने उन्हें बेटिकट कर दिया. नाराज आलम ने प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम, विधायक शकील अहमद खान, प्रदेश प्रभारी कृष्णा अल्लावरु और पूर्णिया सांसद पप्पू यादव पर टिकट बेचने का आरोप लगाया. टिकट पप्पू यादव के करीबी मो इरफान को मिला. अपने आरोप के समर्थन में आलम ने प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम से बातचीत का एक ऑडियो क्लिप भी जारी किया. आफाक आलम कहते हैं 'उनके साथ नाइंसाफी हुई,न्याय के लिए जनता के बीच जा रहे हैं. अब वे निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में हैं। हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) के जिलाध्यक्ष राजेन्द्र यादव के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. वे वर्ष 2020 में कसबा विधानसभा चुनाव में एनडीए समर्थित हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के प्रत्याशी थे. हालिया एक पार्टी कार्यक्रम में पार्टी के संरक्षक केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी ने मंच से सार्वजनिक रूप से राजेन्द्र यादव की उम्मीदवारी की घोषणा भी किया था जिससे तब राजनीतिक विवाद हुआ था. यादव से टिकट दूर रहा तो उन्होंने आरोप लगाया कि पार्टी अध्यक्ष डॉ संतोष सुमन ने टिकट के एवज में उनसे करोड़ो रुपये की मांग की थी. बागी राजेन्द्र यादव अब चुनावी मैदान में निर्दलीय ताल ठोक रहे हैं.
बेटिकट हुए तो तलाश लिया नया ठिकाना
शाहनवाज आलम हाल तक राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश महासचिव थे और कसबा विधानसभा से टिकट की प्रत्याशा में थे. टिकट कांग्रेस के खाते में गई तो मो आलम ने विचारधारा के स्तर पर कट्टर विरोधी एआईएमआईएम का दामन थाम लिया और अब असदुद्दीन ओवैसी की पतंग की डोर उनकी हाथों में है. आरजेडी के ही प्रदेश महासचिव रहे आमोद कुमार को टिकट की उम्मीद क्षीण नजर आई तो ससमय जनसुराजी बन गए और अब रुपौली विधानसभा के प्रत्याशी बनकर लोगों से बिहार बदलने का आह्वान कर रहे हैं. प्रदीप दास कसबा विधानसभा से विधायक रह चुके हैं और वर्ष 2020 से ही बागी तेवर अपनाए हुए हैं. गत चुनाव में एलजेपी (आर) की सवारी कर दूसरे स्थान पर रहे ,इस बार नही मिली तवज्जो तो निर्दलीय बन मैदान में चुनौती दे रहे हैं. यहीं बीजेपी के भी एक बागी किशोर जायसवाल भी निर्दलीय उम्मीदवार हैं. इसी तरह बनमनखी विधानसभा क्षेत्र में आरजेडी के संभावित उम्मीदवार के रूप में महीनों से प्रचार-प्रसार में जुटे शंकर ब्रह्मचारी अब निर्दलीय प्रत्याशी बनकर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.
पैराशूट से उतरे नेताजी,टिकट पाने में रहे कामयाब
आधुनिक लोकतंत्र में पार्टी झंडा ढोने और दरी बिछाने से अधिक राजनीतिक प्रबंधन महत्वपूर्ण हो गया है. इसलिए इस बार भी जब दलीय प्रत्याशियों की सूची जारी हुई तो कई नाम चौकाने वाले थे. कसबा विधानसभा लोजपा(आर) के हिस्से में गई और यहां से पार्टी ने जब उम्मीदवार की घोषणा किया तो राजनीति के पंडित भी हैरान रह गए. रियल एस्टेट कारोबारी और होटल व्यवसायी नितेश सिंह उम्मीदवार बने, जिनका सक्रिय राजनीति से कभी करीब का रिश्ता नही रहा. यह अलग बात है कि उनका लगभग हर दल के बड़े चेहरों से नजदीक का रिश्ता रहा है. इसी प्रकार, बनमनखी(सु) क्षेत्र से महागठबंधन प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस के देवनारायण रजक चुनाव-मैदान में हैं. वे बीजेपी कोटे से विधायक रह चुके हैं और हाल में ही आरजेडी का लालटेन थामकर टिकट की रेस में शामिल हुए थे. रातों रात कब उनका हृदय -परिवर्तन हुए और वे राहुल गांधी के कायल हो गए और टिकट पाने में भी सफल रहे यह कोई नही जानता है. चर्चा है कि उनपर पूर्णिया सांसद पप्पू यादव की कृपा रही.
बेटिकट हुए लेकिन नही मारी पलटी, आगे आलाकमान से उम्मीद
कोई जरूरी तो नही कि वफा के बदले वफा नही मिले तो इंतकाम ही लिया जाय. वफा की राह में इंतजार की भी परीक्षा होती है. फेहरिस्त लंबी है, जिन्होंने वर्षों तक पार्टी के प्रति वफादारी दिखाई,लेकिन टिकट से वंचित रह गए. वाबजूद, तमाम तरह के दर्दों को दिल मे दफन किए पार्टी नेतृत्व के फैसले को स्वीकार करने की कसमें खा रहे हैं. बायसी विधायक मो रुकनुद्दीन एआईएमआईएम को छोड़ आरजेडी का दामान थामा लेकिन उनकी जगह पार्टी ने पूर्व विधायक हाजी सुभान को लालटेन थमाया. पूर्णिया सदर में कांग्रेस ने जितेंद्र यादव पर भरोसा जताया और नीरज सिंह,कुमार आदित्य और दिवाकर सिंह हाथ मलते रह गए.