एनडीए कार्यकर्ता सम्मेलन में दिखा घमासान, क्या वाकई सफल रहा सम्मेलन?

बिहार में एनडीए का कार्यकर्ता सम्मेलन एक बड़ी राजनीतिक कवायद है, जिसका उद्देश्य कार्यकर्ताओं को जोड़ना और चुनावी माहौल में एकजुटता दिखाना है.

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बिहार विधानसभा चुनाव का माहौल धीरे-धीरे गर्माता जा रहा है. सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने कार्यकर्ताओं को जोड़े रखने और जमीनी स्तर पर तालमेल मजबूत करने के लिए प्रदेश भर में कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित करने की शुरुआत की है. इस सम्मेलन का उद्देश्य था कार्यकर्ताओं के बीच एकजुटता का संदेश देना, चुनावी रणनीति पर चर्चा करना और गठबंधन की ताकत को जनता के सामने दिखाना. लेकिन सम्मेलन के दौरान जो दृश्य सामने आए, उन्होंने पूरे मकसद पर सवाल खड़े कर दिए हैं.

सीट बंटवारे का विवाद

बिहार चुनाव में सबसे अहम मुद्दा हमेशा से सीट बंटवारा रहा है. गठबंधन दलों के बीच कौन-सी पार्टी कितनी सीटों पर लड़ेगी और किसका उम्मीदवार कहां से खड़ा होगा, इसको लेकर अक्सर खींचतान होती रहती है. इस बार भी स्थिति अलग नहीं है. कार्यकर्ता सम्मेलन में कई नेताओं ने अपने-अपने पसंदीदा उम्मीदवारों के नाम पहले ही सार्वजनिक कर दिए, जिससे यह साफ हो गया कि गठबंधन के अंदर रणनीति पर अभी भी सहमति नहीं बनी है. यही वजह है कि कार्यकर्ताओं में भी असमंजस की स्थिति पैदा हो रही है.

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कार्यकर्ताओं में क्या संदेश गया?

एनडीए कार्यकर्ता सम्मेलन का असली मकसद था कि पार्टी के कार्यकर्ताओं तक एकता और उत्साह का संदेश पहुंचे. लेकिन मंच पर नेताओं की तनातनी और उम्मीदवारों के नामों की जल्दबाजी ने इस मकसद को धूमिल कर दिया. कार्यकर्ताओं के बीच यह सवाल उठने लगे हैं कि जब शीर्ष नेतृत्व ही एकमत नहीं है, तो कार्यकर्ताओं से तालमेल की उम्मीद कैसे की जा सकती है?

चुनावी रणनीति पर असर

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एनडीए को अगर चुनाव में मजबूती से उतरना है तो सबसे पहले आंतरिक मतभेदों को दूर करना होगा. कार्यकर्ता सम्मेलन जैसे कार्यक्रम तभी सफल हो सकते हैं, जब मंच पर एकजुटता दिखे. मंच पर हो रही बहस और नोकझोंक सीधे-सीधे विपक्ष को मुद्दा दे रही है.

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विपक्ष पहले से ही जनता के बीच यह संदेश फैलाने की कोशिश कर रहा है कि एनडीए अंदर से कमजोर है और चुनाव आते-आते यह गठबंधन टूट जाएगा. अगर एनडीए समय रहते रणनीतिक कदम नहीं उठाता, तो इसका असर सीधे-सीधे सीटों पर दिख सकता है.

बिहार में एनडीए का कार्यकर्ता सम्मेलन एक बड़ी राजनीतिक कवायद है, जिसका उद्देश्य कार्यकर्ताओं को जोड़ना और चुनावी माहौल में एकजुटता दिखाना है. लेकिन सम्मेलन के दौरान सामने आई खींचतान और समय से पहले उम्मीदवारों की घोषणा ने इसकी सफलता पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं.अब बड़ा सवाल यही है कि क्या एनडीए अपने अंदरूनी मतभेदों को दरकिनार कर चुनाव में एकजुट होकर उतर पाएगा या फिर विपक्ष के दावों की तरह यह सम्मेलन वाकई "फुटावल" की शुरुआत बन जाएगा?
 

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