बिहार चुनाव 2025: महागठबंधन का 15 जिलों में खाता तक नहीं खुल पाया, वजह जान लीजिए

बिहार के जिन 15 जिलों में महागठबंधन का खाता तक नहीं खुला, वो हैं- गोपालगंज, सिवान, औरंगाबाद, जहानाबाद, नवादा, गया, कैमूर, भोजपुर, बक्सर, सारण, पश्चिम चंपारण, नालंदा, मधुबनी, सुपौल और रोहतास.

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  • बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में 15 जिलों में महागठबंधन एक भी सीट जीतने में सफल नहीं हो सका
  • गोपालगंज, सिवान, औरंगाबाद, जहानाबाद, नवादा, गया, कैमूर, भोजपुर, बक्सर, चंपारण आदि जिलों में MGB जीरो रही
  • हर जिले में जातीय समीकरण, विकास कार्य और पीएम मोदी की लोकप्रियता का सीधा असर दिखा
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पटना:

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए ने शानदार प्रदर्शन करते हुए फिर से सत्ता हासिल की है. महागठबंधन को कई जिलों में करारी हार का सामना करना पड़ा. राज्य के 15 जिलों में महागठबंधन का खाता तक नहीं खुल पाया. इन जिलों की सभी सीटें एनडीए और उसके सहयोगी दलों ने जीत लीं. ये नतीजे संकेत हैं कि बिहार की राजनीति में मतदाता अब स्थिरता और विकास को तरजीह दे रहे हैं, जबकि विपक्ष मतदाताओं से जुड़ने में नाकाम रहा है.

इन 15 जिलों में MGB का निल बटे सन्नाटा

बिहार के जिन 15 जिलों में महागठबंधन का खाता तक नहीं खुल पाया, वो हैं- गोपालगंज, सिवान, औरंगाबाद, जहानाबाद, नवादा, गया, कैमूर, भोजपुर, बक्सर, सारण, पश्चिम चंपारण, नालंदा, मधुबनी, सुपौल और रोहतास. इन जिलों की लगभग सभी सीटें भाजपा, जेडीयू, हम और लोजपा जैसे एनडीए दलों ने जीत लीं. महागठबंधन के उम्मीदवार कई जगहों पर दूसरे या तीसरे स्थान पर रहे, लेकिन जीत हासिल नहीं कर पाए. 

NDA-जेडीयू की संयुक्त रणनीति 

एनडीए ने इस चुनाव में पूरी तैयारी के साथ मैदान संभाला. भाजपा और जेडीयू ने सीट बंटवारे से लेकर प्रचार तक मिलकर रणनीति बनाई. हर जिले में जातीय समीकरण, विकास कार्य और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का सीधा असर दिखा. गया, औरंगाबाद, कैमूर और बक्सर जैसे जिलों में भाजपा का संगठन और जेडीयू के स्थानीय कार्यकर्ताओं का तालमेल एनडीए को बढ़त दिलाने में निर्णायक साबित हुआ. 

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गांव-गांव तक सरकारी योजनाओं की पहुंच और नीतीश कुमार की “विकास और शांति” की इमेज ने ग्रामीण इलाकों में असर डाला. भाजपा को शहरी और मध्यम वर्ग का वोट मिला, जबकि जेडीयू को पिछड़े वर्ग और महिलाओं से बड़ा समर्थन मिला. दोनों दलों का यह संतुलन महागठबंधन के लिए बड़ी चुनौती बनकर सामने आया.

किस इलाके में क्या खेल, क्या फेल

  • उत्तर बिहार यानी मिथिलांचल और कोसी क्षेत्र में भाजपा और जेडीयू ने बेहतरीन प्रदर्शन किया. मधुबनी, सुपौल, अररिया और सहरसा में एनडीए को सीधी बढ़त मिली. राजद को सीमांचल के कुछ हिस्सों में मामूली सफलता मिली, लेकिन कुल मिलाकर एनडीए ने यहां मजबूती दिखाई.
  • दक्षिण बिहार यानी मगध और गया क्षेत्र में एनडीए ने लगभग सभी सीटें जीत लीं. गया जिले में नीतीश कुमार की शराबबंदी और शिक्षा योजनाओं का असर दिखा. राजद और कांग्रेस के उम्मीदवार यहां पिछड़ गए .
  • पश्चिम बिहार मुख्य तौर पर भोजपुर, बक्सर और रोहतास का इलाक़ा है. यह इलाका पारंपरिक रूप से भाजपा का गढ़ माना जाता है. इस बार भी भाजपा ने यहां अपना दबदबा कायम रखा. यहां जातीय संतुलन और कानून-व्यवस्था का मुद्दा एनडीए के पक्ष में गया.
  • उत्तर-पश्चिम बिहार के ज़िले जैसे सारण, सिवान, गोपालगंज में कभी राजद का प्रभाव हुआ करता था, लेकिन इस बार भाजपा और जेडीयू ने बढ़त बना ली. सारण में एनडीए ने सभी सीटें अपने खाते में डालीं. स्थानीय जातीय समीकरण और नीतीश की प्रशासनिक छवि यहां निर्णायक रही. 
  • मध्य बिहार का इलाक़ा जिसमे पटना और नालंदा पड़ते हैं, वहां भाजपा ने शहरी सीटों पर अच्छा प्रदर्शन किया, जबकि नालंदा नीतीश का पारंपरिक गढ़ बना रहा. महागठबंधन यहां भी कोई खास प्रभाव नहीं दिखा सका.

महिलाओं ने नीतीश को इतने वोट क्यों दिए

इस चुनाव में महिला मतदाताओं की भागीदारी निर्णायक रही. नीतीश कुमार की योजनाओं जैसे साइकिल योजना, नल-जल योजना, उज्ज्वला और आरक्षण नीति का असर महिला वोट के रूप में नजर आया. बेरोजगारी से परेशान युवाओं के एक बड़े वर्ग ने भी एनडीए को इसलिए वोट दिया क्योंकि उसे स्थिरता और सुरक्षा का भरोसा ज्यादा लगा.

बिहार के 15 जिलों में विपक्षी महागठबंधन खाता तक न खुलना दिखाता है कि बिहार की राजनीति में जनता अब महज नारे नहीं चलेंगे. जनता नतीजे और भरोसे को महत्व दे रही है. आने वाले समय में अगर विपक्ष को वापसी करनी है तो उसे जमीनी स्तर पर संगठन और लोगों का विश्वास फिर से जीतना होगा.

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