- बिहार में शराबबंदी के बाद युवा पीढ़ी में चिलम, स्मैक, ब्राउन शुगर जैसे सूखे नशे की लत तेजी से बढ़ रही है.
- समस्तीपुर में स्कूल, कॉलेज और गांव-गली तक नशे का अवैध कारोबार फैल चुका है, जिससे सामाजिक संकट गहरा रहा है_
- पुलिस की एंटी नारकोटिक्स सेल की कार्रवाई धीमी पड़ गई है और स्थानीय लोग सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं.
शराबबंदी के बाद बिहार में अब सूखा नशा समाज के लिए नई चुनौती बनता जा रहा है. किशोर और युवा पीढ़ी को तेजी से चिलम, स्मैक, ब्राउन शुगर, नशीली गोलियां जैसे खतरनाक नशे की लत लग रही है. कफ सिरप भी नशे का बड़ा विकल्प बनता दिखा है. समस्तीपुर में एनडीटीवी की पड़ताल में पता चला कि चौक-चौराहों से लेकर स्कूल-कॉलेज और गांव-गली तक नशे का अवैध कारोबार फैल चुका है. शहर के मगरदही मोहल्ले, काशीपुर, मोहनपुर, जितवारपुर हाउसिंग बोर्ड मैदान, पटेल मैदान सहित कई इलाकों में इंजेक्शन, निडिल और कफ सिरप की खाली बोतलें मिलीं, जो इस बात का सबूत हैं कि नशा युवाओं के बीच तेजी से पैर पसार रहा है. बाइपास बांध किनारे, चाय-पान दुकानों, बस स्टैंड और स्टेशन रोड जैसे स्थान नशे की सप्लाई के अड्डे बन चुके हैं.
नशे के चलते बढ़ रहा क्राइम
स्थानीय लोगों का कहना है कि नशे की लत न सिर्फ युवाओं के भविष्य को अंधकार में धकेल रही है, बल्कि अपराध भी बढ़ा रही है. वर्ष 2023 में अंगारघाट थाना क्षेत्र में बुजुर्ग महिला की हत्या के मामले में गिरफ्तार चारों युवक नशे के आदी पाए गए थे. जिले में चेन स्नैचिंग, मोबाइल छिनतई और वाहन चोरी जैसी घटनाओं में भी नशे की लत बड़ी वजह बनकर सामने आई है.
पुलिस ने पूर्व में एंटी नारकोटिक्स सेल बनाकर कार्रवाई शुरू की थी, लेकिन अधिकारियों के तबादले के बाद यह अभियान धीमा पड़ गया. शहरवासी मांग कर रहे हैं कि नशे के इस कारोबार पर सख्त कार्रवाई हो और युवाओं को बचाने के लिए जागरूकता अभियान चलाया जाए.
क्या कहते हैं मनोचिकित्सक?
सदर अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ एस ए आलम का कहना है कि शराबबंदी के बाद सूखे नशे का दायरा बढ़ा है, जो समाज के लिए गंभीर खतरा है. उन्होंने बताया कि वाइटनर, सुलेशन और इंजेक्शन जैसे नशे युवाओं की सेहत और जान दोनों के लिए घातक हैं. डॉ आलम ने सुझाव दिया कि नशे की शुरुआत को ही रोकना सबसे जरूरी है, क्योंकि ये लत धीरे-धीरे अपराध और मौत तक ले जाती है.
(समस्तीपुर से अविनाश कुमार की रिपोर्ट)