एक गलती और शेखपुरा से राजो सिंह परिवार का 5 दशक बाद दबदबा खत्म, लालू-नीतीश ने मुंह मोड़ा

श्रीकृष्ण सिंह के साथ ही जगन्नाथ मिश्रा के भी राजो सिंह काफी करीबी रहे थे. लालू प्रसाद के शासनकाल में भी राजो सिंह की मजबूत पकड़ रही थी. क्षेत्र में राजो सिंह की मजबूत पकड़ के कारण सियासत में गहरी पैठ थी.

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  • राजो सिंह ने 1972 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीतकर शिवशंकर सिंह को हराया था.
  • राजो सिंह परिवार की तीसरी पीढ़ी के जदयू विधायक सुदर्शन को इस बार चुनावी टिकट नहीं मिला.
  • सुदर्शन के टिकट कटने का कारण बिहार विधानसभा में आया पिछला अविश्वास प्रस्ताव बताया जा रहा है.
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राजो सिंह 1972 में पहली दफा बरवीघा विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार खड़ा हुए थे. बिहार के पहले मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह के पुत्र शिवशंकर सिंह को पराजित कर दिया था. तब राजो सिंह ने कहा था कि शिवशंकर सिंह राह भटक गए हैं. कांग्रेस को छोड़कर कम्युनिष्टों के पाले में चले गए, इसलिए उन्हें सबक सिखाना जरूरी है. इस चुनाव में जीत के बाद राजो सिंह और उनके परिवार का करीब पांच दशक तक सियासी दबदबा रहा है, लेकिन अब परिस्थितियां ऐसी उलट हो गई हैं कि बिहार के दिग्गज राजनेता रहे राजो सिंह के तीसरी पीढ़ी को विधायक रहने के बाबजूद सियासी पार्टियों ने चुनावी मुख्यधारा से बाहर कर दिया है. 

दिवंगत राजो सिंह के पौत्र बरबीधा से जदयू विधायक हैं, लेकिन एनडीए और महागठबंधन ने उन्हें टिकट नहीं दिया है. हालांकि, बताया जा रहा है कि सुदर्शन निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे.सुदर्शन की जगह नालंदा जिले के पुष्पांजय कुमार को जदयू ने उम्मीदवार बनाया है. पुष्पांजय, नालंदा जिले के सरमेरा थाना क्षेत्र के चेरो गांव के रहने वाले हैं. वे अस्थावां से विधायक रह चुके हैं. पुष्पांजय पटना के आरपीएस स्कूल समेत कई शैक्षणिक संस्थानों के संस्थापक आरपी शर्मा के पुत्र हैं.

दो बार के विधायक रहे हैं सुदर्शन

वैसे तो,  सुदर्शन ने 2015 में कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की और 2020 में जदयू से दोबारा विधायक बने. मगर इस बार पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया. सुदर्शन के टिकट कटने की वजह बिहार विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान पाला बदलने की संभावित साजिश में शामिल होने को बताया जा रहा है. जदयू नेताओं के मुताबिक, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस बात को लेकर नाराजगी थी. इसके चलते टिकट नही मिल पाया. वहीं लालू यादव ने भी उनको भाव देना बंद कर दिया है.

राजो सिंह परिवार के तीसरी पीढ़ी सुदर्शन

सुदर्शन सियासत में अपने परिवार के तीसरी पीढ़ी हैं. सुदर्शन के परिवार में 12 दफा विधायक निर्वाचित हुए. दो दफा एमपी निर्वाचित हुए. सुदर्शन के दादा राजो सिंह पहली दफा सियासत में आए थे. फिर सुदर्शन के पिता संजय सिंह और उसके बाद सुदर्शन की मां सुशीला देवी विधायक रही हैं. 1998 में राजो सिंह जब बेगूसराय से सांसद निर्वाचित हो गए थे, तब अपने पुत्र संजय कुमार सिंह को शेखपुरा विधानसभा क्षेत्र से उप चुनाव में उतारा था. तब संजय सिंह नौकरी करते थे, जिन्हें त्यागपत्र दिलाकर राजनीति में उतारा गया था. फिर 2000 के चुनाव में संजय सिंह दोबारा निर्वाचित हुए और राबड़ी देवी के मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री बने थे.

टाटी नरसंहार मामले में आरोपी होने के बाद संजय सिंह की जगह उनकी पत्नी सुनीला देवी राजनीति में आई थी. कांग्रेस से सुनीला देवी फरवरी 2005 और अक्टूबर 2005 में निर्वाचित हुई थीं. सुनीला देवी 2010 में जदयू के रंधीर कुमार सोनी से पराजित हो गई थीं.

सातवीं पास शिक्षक थे राजो सिंह

राजो सिंह शेखपुरा से पांच और बरबीधा से एक दफा एमलएल निर्वाचित हुए थे. इसके अलावा 1998 और 1999 में राजो सिंह बेगूसराय से सांसद निर्वाचित हुए थे. राजो सिंह बिहार के एक कद्दावर नेता थे. राजो सिंह एक शिक्षक थे. उन्हें बिहार के पहले मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह का सानिध्य था. लिहाजा, सातवीं पास राजो सिंह 1954 में पंचायत चुनाव में मुखिया निर्वाचित हुए थे.

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फिर राजो सिंह पहली दफा 1972 में बरबीघा से विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार खड़ा हुए थे. तब बिहार के पहले मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह के पुत्र शिवशंकर सिंह को पराजित किया था. 1977 में बरबीघा सुरक्षित हो गया था. लिहाजा, शेखपुरा से चुनाव लड़े थे. इसके बाद से वे लगातार निर्वाचित होते रहे. 1980 में जीते. 1985 में जब कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया था, तब निर्दलीय लड़कर निर्वाचित हुए थे. 1990 और 1995 में कांग्रेस की टिकट पर निर्वाचित हुए. श्रीकृष्ण सिंह के साथ ही जगन्नाथ मिश्रा के भी राजो सिंह काफी करीबी रहे थे. लालू प्रसाद के शासनकाल में भी राजो सिंह की मजबूत पकड़ रही थी. क्षेत्र में राजो सिंह की मजबूत पकड़ के कारण सियासत में गहरी पैठ थी.
 

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