तेजस्वी का रोजगार कार्ड बनाम नीतीश का विकास मॉडल या पीके का जन सुराज, कौन जीतेगा बिहार?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में मुकाबला सिर्फ एनडीए और महागठबंधन का नहीं, बल्कि जन सुराज की नई चुनौती का भी है. भ्रष्टाचार, जंगलराज, रोजगार और नीतीश कुमार की सेहत जैसे मुद्दे भी इस चुनाव को प्रभावित कर रहे हैं.

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  • विधानसभा चुनाव में भ्रष्टाचार प्रमुख मुद्दा बनकर उभरा है, प्रशांत किशोर ने कई मंत्रियों पर गंभीर आरोप लगाए हैं
  • एनडीए ने विकास और कानून-व्यवस्था को चुनावी मुद्दा बनाया है
  • तेजस्वी यादव ने रोजगार को चुनावी मुद्दा बनाने की बात कही है उन्होंने हर परिवार को सरकारी नौकरी का वादा किया है
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पटना:

बिहार में जैसे-जैसे चुनाव की तारीख सामने आ रही है राजनीतिक तापमान बढ़ता जा रहा है. राज्य की 243 सीटों पर दो चरणों में चुनाव होंगे, और इस बार मुकाबला सिर्फ एनडीए और महागठबंधन तक सीमित नहीं रह गया. मैदान में तीसरी ताकत बनकर उभरे प्रशांत किशोर और उनकी पार्टी जन सुराज ने सियासी खेल का संतुलन बदल दिया है. भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, विकास मॉडल और “जंगलराज” जैसे पुराने मुद्दे फिर से चर्चा में हैं, लेकिन नए अंदाज में. सीमांचल में AIMIM भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराने की कोशिश कर रही है, जबकि नीतीश कुमार की सेहत और तेजस्वी यादव का नौकरी वाला वादा इस चुनाव की दिशा तय कर सकते हैं. इस चुनाव में न सिर्फ नेताओं की लोकप्रियता बल्कि मुद्दों की धार भी तय करेगी कि बिहार की सत्ता की चाबी किसके हाथ में जाएगी.

भ्रष्टाचार को मुद्दा बना रहा है विपक्ष

बिहार चुनाव में भ्रष्टाचार इस बार सबसे बड़ा मुद्दा बनता दिख रहा है. जन सुराज के प्रमुख प्रशांत किशोर (PK) ने नीतीश कुमार सरकार के कई मंत्रियों और अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाए हैं. उन्होंने दस्तावेजों के साथ दावा किया कि उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, मंत्री अशोक चौधरी, मंगल पांडेय और अन्य नेताओं ने करोड़ों की संपत्ति हड़प ली है.
PK ने कहा कि “नीतीश कुमार भले ईमानदार हैं, पर उनकी सरकार में बैठे लोग दोनों हाथों से लूट मचा रहे हैं.” उन्होंने यहां तक कहा कि बिहार का हर विभाग, चाहे शिक्षा हो या ग्रामीण कार्य, भ्रष्टाचार की जकड़ में है. बीजेपी ने पलटवार करते हुए PK पर फंडिंग में अनियमितता के आरोप लगाए हैं. लेकिन यह सच है कि प्रशांत किशोर ने भ्रष्टाचार को चुनावी विमर्श के केंद्र में ला दिया है, जिससे NDA के लिए यह चुनाव पहले से कहीं मुश्किल बन गया है.

एनडीए को अपने विकास के मुद्दे पर भरोसा

एनडीए ने एक बार फिर आरजेडी को घेरने के लिए ‘जंगलराज बनाम विकास राज' का नारा बुलंद किया है. बीजेपी-जेडीयू लगातार लालू-राबड़ी शासनकाल की याद दिला रही है, जब कानून-व्यवस्था चरमरा गई थी. अपहरण, लूट, जातीय संघर्ष जैसी घटनाओं को फिर से चुनावी एजेंडा बनाया जा रहा है. वहीं, तेजस्वी यादव इस नरेटिव को बदलने की पूरी कोशिश में हैं. वे युवाओं और रोजगार के मुद्दे को सामने रखकर आरजेडी की पुरानी छवि से दूरी बनाना चाहते हैं. उनका फोकस “नई पीढ़ी का बिहार” है, जो अपराध नहीं बल्कि रोजगार की बात करे.

तेजस्वी का ‘नौकरी कार्ड' क्या जनता पर होगा असर? 

तेजस्वी यादव ने दोबारा रोजगार को अपनी चुनावी रणनीति का केंद्र बनाया है. उन्होंने वादा किया है कि सरकार बनने पर हर परिवार से एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी दी जाएगी. पिछली बार इसी मुद्दे ने उन्हें युवाओं में अपार लोकप्रियता दी थी. हालांकि बीजेपी ने इसे अव्यावहारिक बताया है. गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि “तेजस्वी 2.6 करोड़ नौकरियों का वादा कर रहे हैं, लेकिन ये बताएंगे नहीं कि इसके लिए 12 लाख करोड़ रुपये कहां से लाएंगे.” फिर भी, बेरोजगारी से जूझते बिहार में यह वादा जनभावना को प्रभावित कर रहा है.

नीतीश की सेहत को लेकर भी होती रही है चर्चा

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सेहत भी चर्चा में है. उनके सार्वजनिक व्यवहार और भाषणों पर विपक्ष लगातार सवाल उठा रहा है, जबकि जेडीयू इसे साजिश बता रही है. हालांकि नीतीश अपने विकास मॉडल को जनता के सामने रख रहे हैं  सड़क, बिजली, पानी और महिला सशक्तिकरण उनके सबसे बड़े हथियार हैं. शराबबंदी, जल-जीवन-हरियाली और मुफ्त बिजली जैसी योजनाओं के जरिए वे एंटी-इनकंबेंसी कम करने की कोशिश में हैं.लेकिन सवाल यह है कि क्या बीस साल का ‘विकास मॉडल' इस बार जनता को फिर से आकर्षित कर पाएगा या नहीं?

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