- मछली, मखाना और पान बिहार की सांस्कृतिक और आर्थिक पहचान से जुड़ी चीजें हैं, जो राजनीति में भूमिका निभाती हैं.
- मल्लाह समुदाय मछली पालन से जुड़ा है. जो बिहार की राजनीति में एक प्रभावशाली वोट बैंक माना जाता है.
- देश का लगभग 90 फीसदी मखाना बिहार में उपजता है. इसे सरकार ने जीआई टैग दिलाकर संरक्षण दिया है.
बिहार में चुनाव सिर्फ भाषण, रैलियों और नारों का खेल नहीं है. यहाँ चुनावों की असली खुशबू खेतों, तालाबों और पान की दुकानों से आती है. मछली, मखाना और पान — ये तीन चीजें बिहार के खाने, संस्कृति और पहचान से जुड़ी हैं. लेकिन हर चुनाव में ये तीनों चीज़ें राजनीति का भी अहम हिस्सा बन जाती हैं. बिहार में मछली सिर्फ़ एक व्यंजन नहीं है, यह लोगों की ज़िंदगी का हिस्सा है. उत्तर बिहार के ज़िलों — दरभंगा, समस्तीपुर, मुज़फ़्फ़रपुर या सीवान — में मछली-भात के बिना कोई भोज पूरा नहीं होता. मछली रोज़गार का भी बड़ा ज़रिया है.
लाखों परिवार तालाबों और नदियों से मछली पकड़कर अपनी ज़िंदगी चलाते हैं. इनमें ज़्यादातर लोग मल्लाह या निषाद समुदाय के हैं. यह समुदाय अब बिहार की राजनीति में ताक़तवर वोट बैंक बन चुका है.
हर पार्टी — चाहे वो BJP हो, RJD या JDU — मल्लाह वोट को अपनी ओर खींचना चाहती है. इसलिए सरकारें तालाबों की सफ़ाई, मछली पालन, ठंडे भंडारण (कोल्ड स्टोरेज) और मछली मंडियों के विकास की बातें करती हैं. मल्लाह समुदाय से जुड़े नेता मुकेश सहनी ने “सन ऑफ मल्लाह” नारा देकर इस समाज की ताक़त दिखा दी थी.
मछली जहाँ बिहार की नदियों का प्रतीक है, तो मखाना यहाँ के तालाबों की पहचान है. बिहार देश का लगभग 90% मखाना पैदा करता है. दरभंगा, मधुबनी, सुपौल और सहरसा इसके बड़े केंद्र हैं. लाखों किसान मखाना की खेती से अपना घर चलाते हैं. यही वजह है कि मखाना अब सिर्फ़ खेती नहीं, राजनीति का भी हिस्सा बन गया है. नीतीश कुमार सरकार ने मखाना को जीआई टैग दिलाया, दरभंगा में मखाना अनुसंधान केंद्र खोला और निर्यात की सुविधा दी.
बिहार टूरिज्म द्वारा सोशल मीडिया पर शेयर किया गया पोस्टर.
इन कदमों ने मिथिला में राजनीतिक असर डाला. चुनाव के समय मखाना को विकास का प्रतीक बनाकर पेश किया जाता है. नारे भी बनते हैं — “मखाना बिहार का मान है, नीतीश का अभियान है” या “मखाना किसानों को मिले सम्मान”. मखाना अब मिथिला की अस्मिता और गौरव से जुड़ चुका है. युवाओं के लिए यह नई उम्मीद का प्रतीक है — कि बिहार की पारंपरिक चीज़ें भी बड़े स्तर पर रोज़गार दे सकती हैं.
और अगर आप बात करे पान की तो बिहार में पान सिर्फ़ एक स्वाद नहीं, एक परंपरा है. गया का मगही पान और दरभंगा का मिथिलांचल पान देशभर में मशहूर है. शादी-ब्याह, त्योहार या मेहमाननवाज़ी — हर मौके पर पान पेश करना सम्मान का प्रतीक है.
बिहार की पान की दुकानें सिर्फ़ कारोबार की जगह नहीं होतीं, बल्कि यह लोगों की राजनीतिक चौपालें भी होती हैं. पान खाते-खाते यहाँ नेता से लेकर सरकार तक की चर्चा होती है. कौन जीतेगा, कौन हारेगा — सबकी राय पहले इन्हीं दुकानों पर बनती है.
पान की खेती भी बिहार में हज़ारों लोगों का पेशा है — गया, नवादा और औरंगाबाद में इसका बड़ा कारोबार है. किसान चाहते हैं कि सरकार उन्हें सिंचाई, बीमा और मंडी की सुविधा दे. जब कोई नेता किसी को पान की पत्ती भेंट करता है, तो यह सिर्फ़ एक रस्म नहीं — बल्कि अपनापन और भरोसे का इज़हार होता है. बिहार में यही अपनापन चुनाव जिताता है.
मछली, मखाना और पान — ये तीनों बिहार की मिट्टी और समाज की कहानियाँ हैं. हर एक चीज़ किसी क्षेत्र और समुदाय से जुड़ी है — मछली मल्लाहों की, मखाना मिथिला की, और पान मगध की पहचान है. यही कारण है कि राजनीतिक दल इन प्रतीकों का इस्तेमाल भावनात्मक जुड़ाव के लिए करते हैं.
मछली, मखाना और पान का सालाना 8 हजार करोड़ का कारोबार
इन तीन चीज़ों का कारोबार भी बहुत बड़ा है. बिहार में मछली, मखाना और पान का सालाना व्यापार लगभग 8,000 करोड़ रुपये का है. यानी इनसे जुड़ी रोज़ी-रोटी लाखों परिवारों की है. मछली उद्योग पे लगभग 15 लाख से ज़्यादा लोग निर्भर हैं. इन्हें कर्ज़, बीज और कोल्ड स्टोरेज चाहिए.
वहीं मखाना खेती से करीब 3 लाख किसान जुड़े हैं. इन्हें बेहतर दाम और निर्यात की मदद चाहिए. पान उद्योग लगभग 2 लाख लोगो को रोजगार देता है . इन्हें सस्ती ढुलाई और फसल सुरक्षा की जरूरत है.
बिहार की राजनीति हमेशा ज़मीन से जुड़ी रही है — खेत, तालाब और चौपाल से. मछली, मखाना और पान उसी जुड़ाव के प्रतीक हैं. ये याद दिलाते हैं कि यहाँ की राजनीति सिर्फ़ भाषणों या पोस्टरों से नहीं, बल्कि लोगों की ज़िंदगी के स्वाद से चलती है.
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