बिहार विधानसभा चुनाव: केवटी में चीनी मिल और पलायन बड़ा मुद्दा, पढ़ें आखिर इस बार कैसे रोमांचक होगा मुकाबला

इस सीट के इतिहास को देखते हुए हम यह कह सकते हैं कि केवटी की राजनीति कभी भी एकतरफा नहीं रही. इस सीट का चुनाव पूरी तरह जातीय समीकरण पर टिका रहता है.

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बिहार के केवटी विधानसभा सीट पर दिलचस्प होगा मुकाबला
नई दिल्ली:

बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मियों के साथ ही मधुबनी लोकसभा क्षेत्र और दरभंगा जिले के अंतर्गत आने वाले केवटी विधानसभा सीट पर सियासी हलचल तेज हो गई है. यह सीट बिहार की राजनीति में हमेशा से अहम रही है. यहां का इतिहास काफी दिलचस्प रहा है. मुकाबले अक्सर रोमांचक और कांटे के होते आए हैं. केवटी विधानसभा क्षेत्र केवटी प्रखंड की 26 पंचायतों और सिंहवाड़ा प्रखंड की 12 पंचायतों को मिलाकर बना है. यहां के ग्रामीण और शहर के बाहरी इलाकों की समस्याएं चुनाव में अहम मुद्दा बनती हैं.आगामी चुनाव में रोजगार और शिक्षा सबसे अहम मुद्दे होंगे. लोग रोजगार के नए अवसरों और शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की उम्मीद लगाए बैठे हैं.

इसके साथ ही, चीनी मिल का संचालन भी यहां का बड़ा मुद्दा है, क्योंकि इसके चालू होने से रोजगार सृजन की संभावनाएं बढ़ सकती हैं. मौजूदा स्थिति में रोजगार और शिक्षा की तलाश में बड़ी संख्या में लोग यहां से पलायन कर चुके हैं. इसके अलावा, लोग सरकारी योजनाओं और राजस्व स्रोतों में पारदर्शिता की मांग भी लगातार उठा रहे हैं.

केवटी विधानसभा का चुनावी इतिहास उतार-चढ़ाव से भरा रहा है. 1977 में जेएनपी के दुर्गादास ने यहां जीत दर्ज की थी. 1990 और 1995 में गुलाम सरवर ने जनता दल और फिर राजद के टिकट पर लगातार जीत हासिल कर अपनी पकड़ मजबूत की. 2000 में भी यह सीट राजद के खाते में गई, लेकिन 2005 का चुनाव निर्णायक मोड़ साबित हुआ, जब भाजपा के डॉ.अशोक कुमार यादव ने गुलाम सरवर को मात दी. इसके बाद 2010 तक भाजपा ने इस सीट पर कब्जा जमाए रखा. 2015 में राजद ने वापसी की, लेकिन 2020 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी मुरारी मोहन झा ने जीत दर्ज कर सीट को फिर अपने पक्ष में कर लिया.

इस सीट के इतिहास को देखते हुए हम यह कह सकते हैं कि केवटी की राजनीति कभी भी एकतरफा नहीं रही. इस सीट का चुनाव पूरी तरह जातीय समीकरण पर टिका रहता है. यहां यादव, ब्राह्मण और मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं. साथ ही, रविदास और पासवान समुदाय का वोट भी उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करता है. यही कारण है कि यहां हर दल अपनी रणनीति जातीय संतुलन को ध्यान में रखकर हीं तैयार करती है.

2024 के चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, इस विधानसभा की कुल जनसंख्या 5,07,911 है, जिसमें पुरुष 2,67,199 और महिलाएं 2,40,712 हैं. वहीं, कुल मतदाताओं की संख्या 3,01,945 है, जिसमें पुरुष मतदाता 1,59,622 और महिला मतदाता 1,42,318 हैं. आंकड़ों से यह साफ है कि महिलाओं का वोट चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकता है.

इस बार के चुनाव में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या भाजपा अपना गढ़ बचा पाएगी या राजद फिर से वापसी करेगी. सीट का इतिहास बताता है कि यहां हार-जीत हमेशा करीबी मुकाबले में तय होती है.

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