बरौली विधानसभा सीट: गोपालगंज की सियासत का पारंपरिक गढ़, जहां बीजेपी और आरजेडी की टक्कर हमेशा रोमांचक रही

बरौली विधानसभा सीट गोपालगंज की राजनीति का केंद्र रही है. 2020 में बीजेपी के रामप्रवेश राय ने यहां आरजेडी उम्मीदवार को 14,000 से ज्यादा वोटों से हराया था, अब 2025 में मुकाबला और दिलचस्प हो सकता है.

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गोपालगंज:

गोपालगंज जिले की बरौली विधानसभा सीट बिहार की राजनीति में हमेशा से अहम रही है. यह सीट गोपालगंज लोकसभा क्षेत्र के तहत आती है और यहां की सियासी लड़ाई का असर लोकसभा समीकरणों पर भी पड़ता है. 1952 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के अब्दुल गफ्फार ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी. तब से लेकर अब तक बरौली में सियासत कई करवटें ले चुकी है, लेकिन दिलचस्प बात ये है कि यहां का चुनावी मुकाबला हमेशा त्रिकोणीय या द्विपक्षीय रहा है.

2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के रामप्रवेश राय ने इस सीट पर जीत हासिल की थी. उन्होंने आरजेडी उम्मीदवार रेयाजुल हक उर्फ राजू को 14,155 वोटों से हराया था. राय को कुल 81,956 वोट मिले थे, जबकि रेयाजुल हक को 67,801 वोट मिले. रामप्रवेश राय के लिए यह जीत आसान नहीं थी, क्योंकि गोपालगंज और आसपास के इलाकों में आरजेडी का परंपरागत प्रभाव रहा है. बावजूद इसके, एनडीए की लहर और स्थानीय संगठन ने बीजेपी उम्मीदवार को बढ़त दिलाई.

बरौली की राजनीति में जातीय समीकरण अहम भूमिका निभाते हैं. यादव, भूमिहार, ब्राह्मण और मुस्लिम वोटर्स यहां की निर्णायक आबादी हैं. इन जातीय समीकरणों के साथ-साथ स्थानीय मुद्दे जैसे सड़क, सिंचाई और रोजगार भी चुनावी एजेंडा तय करते हैं.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2025 का विधानसभा चुनाव बरौली के लिए और भी दिलचस्प हो सकता है, क्योंकि विपक्ष इस सीट को “रिवेंज ग्राउंड” के तौर पर देख रहा है. वहीं बीजेपी के लिए यह प्रतिष्ठा की सीट बन चुकी है.

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