पटना से करीब 100 किलोमीटर दूर मोकामा में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले टाल क्षेत्र के बड़े बाहुबली दुलारचंद यादव की हत्या ने पूरे प्रदेश की राजनैतिक माहौल को गरमा दिया है. दुलारचंद यादव की हत्या तारतर गांव में हुई है. बिहार के मोकामा विधानसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार के दौरान दुलारचंद यादव की हत्या तब हुई, जब वे जनसुराज प्रत्याशी पीयूष प्रियदर्शी के समर्थन में प्रचार कर रहे थे. हत्या का आरोप जेडीयू प्रत्याशी अनंत सिंह और उनके समर्थकों पर लगे हैं, जबकि अनंत सिंह ने इसे विरोधियों की साजिश बताया है.
गुरुवार देर रात मृतक दुलारचंद यादव के पोते के बयान पर पुलिस ने अनंत सिंह, उनके दो भतीजों रणवीर और कर्मवीर समेत 5 लोगों पर हत्या की नामजद प्राथमिकी दर्ज की. मृतक के परिजनों का आरोप है कि अनंत सिंह के लोगों ने पहले गोली मारी और फिर गाड़ी चढ़ाकर दुलारचंद की हत्या कर दी. हालांकि, अभी तक इस मामले में किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है.
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अपराध और राजनीति के पुराने गठजोड़ से फिर खून बहा है. 90 के दशक में 'टाल क्षेत्र के आतंक' कहे जाने वाले दिलीप सिंह (अनंत सिंह के भाई) के सामने चुनाव भी लड़ चुका था. हत्या के बाद इलाके में व्यापक तनाव बना हुआ है.
कौन है दुलारचंद यादव
80 और 90 दशक में आतंक का दूसरा नाम दुलारचंद यादव बिहार के बड़े बाहुबलियों में शुमार होते हैं. दुलारचंद यादव कभी लालू तो कभी नीतीश के क़रीबी रहे. 90 के दशक में इनका बाढ़ और मोकामा टाल में खासा प्रभाव था और ये बाहुबली के तौर पर जाने जाते थे.
1990 में जब लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने तो दुलारचंद यादव की ताकत और बढ़ गई. तब विपक्ष के नेता जगन्नाथ मिश्र ने आरोप लगया था कि लालू यादव जाति के आधार पर अपराधियों को संगठित कर रहे हैं. उस समय लालू यादव की पार्टी (जनता दल) से दिलीप सिंह मोकामा के विधायक थे. दिलीप सिंह, अनंत सिंह के बड़े भाई थे. भूमिहार जाति से आने वाले दिलीप सिंह भी बाहुबली नेता थे. कहा जाता है कि बाढ़-मोकामा में दिलीप सिंह को कंट्रोल करने के लिए लालू यादव ने दुलारचंद यादव को खड़ा किया था.
एक दर्जन से अधिक मामले
दुलारचंद द्वारा 2010 में दिए चुनावी हलफनामा को देखेंगे तो इस पर एक दर्जन से अधिक मामले थे. उनमें हत्या से संबंधित चार आरोप, हत्या के प्रयास से संबंधित चार आरोप, हत्या की नीयत से अपहरण का एक आरोप शामिल थे. जमीन कब्जा और जबरन वसूली के भी कई आरोप थे. 1991 में हुए बहुचर्चित सीताराम सिंह हत्या में भी अभियुक्त रहे है.
लालू के वफादार पर टिकट नही दिया
90 के दशक में मोकामा बाढ़ के क्षेत्रों में इसका सिक्का चलता था. शुरुआती दौर से पहलवानी के शौकीन दुलारचंद को लालू यादव का हनुमान कहा जाता था. पर करीबी होने के बाद भी लालू यादव ने दुलारचंद यादव को कभी अपनी पार्टी से टिकट नहीं दिया. कहा जाता है कि लालू यादव ने अपने पिछड़ावाद को चमकाने के लिए दुलारचंद यादव का केवल इस्तेमाल किया.
सीताराम सिंह केस
दुलारचंद यादव लालू के साथ साथ कभी नीतीश कुमार के भी करीबी थे. 1991 के नवंबर में बिहार के बाढ़ संसदीय क्षेत्र में मध्यावधि चुनाव हो रहे थे और नीतीश कुमार जनता दल के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव में उतरे थे. शाम के चार-पांच बजे का वक्त था और वोटिंग बंद होने ही वाली थी. बाढ़ के पंडारक थाने के ढीबर मध्य विद्यालय में वोटिंग चल रही थी. इसी दौरान बूथ पर फायरिंग हो गई, जिसमें ढीबर गांव के कांग्रेस कार्यकर्ता सीताराम सिंह की मौत हो गई. मामले में केस दर्ज करवाने वाले अशोक सिंह ने अपने परिवाद पत्र में कहा था कि नीतीश कुमार के साथ उस समय तत्कालीन मोकामा विधायक दिलीप सिंह, दुलारचंद यादव, योगेंद्र प्रसाद और बौधु यादव थे. उस हत्या में नीतीश कुमार के साथ साथ दुलारचंद को भी अभियुक्त बनाया गया था.
मोकामा का आपराधिक इतिहास
कांग्रेस विधायक श्याम सुंदर धीरज 80 के दशक में लिए बूथ कब्जाने का काम दिलीप सिंह किया करते थे. एक तरह से दिलीप सिंह विधायक जी के मसल मैन थे. धीरज से किसी बात पर अनबन के बाद दिलीप से खुद चुनाव लड़े. 1990 में जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़े और अपने ही गुरु श्याम सुंदर सिंह धीरज को हारकर विधायक बने. सत्ता मिली तो उसे संभालने के लिए एक मजबूत हाथ चाहिए था, जो अनंत सिंह बन गए. बड़े भाई बिरंची सिंह की हत्या हुई तो अनंत सिंह बदला लेने नदी पार गए और अपने भाई के हत्यारे को ईंटों से कुचलकर मार डाला. यही वो दिन था जब बिहार के लोगों के बीच 'छोटे सरकार' का जन्म हुआ. दो हत्याओं के बाद जरायम की दुनिया में अनंत सिंह का परचम लहराने लगा. इसके बाद तो सिलसिला चल पड़ा.
मोकामा में दिलीप सिंह को बाद में सूरजभान सिंह से चुनौती मिली और विधानसभा चुनाव में 70 हजार के बड़े मार्जिन से हराया. बाद में अनंत सिंह उसी मोकामा क्षेत्र से कई बार विधायक चुने गए.
बिहार की राजनीति में बाहुबलियों का दबदबा
बिहार के राजनीति में बाहुबलियों का प्रवेश 90 के दशक से शुरू होता है. 90 के दशक में कई बाहुबलियों ने अपना चोला बदलकर कर राजनीति में प्रवेश करना चाहा, जिसमें कुछ सफल हुए और कुछ असफल भी. कोशी क्षेत्र से पप्पू यादव आनंद मोहन. दूसरी तरफ उत्तर बिहार से छोटन शुक्ला (केसरिया), मुजफ्फरपुर के बड़े बाहुबली रामू ठाकुर औराई से, सिवान से मो. शहाबुद्दीन गोपालगंज से काली पांडेय मोकामा से दिलीप सिंह. विगत है कि 1995 में पहली बार बड़े राष्ट्रीय पार्टी ने औराई से अपने सिंबल पर रामू ठाकुर जैसे बड़े बाहुबली को चुनाव लड़ाया था.
वर्तमान माहौल में देखिए हर पार्टी अपने राजनीतिक होती सेट करने के लिए बाबुबलियों को टिकी दिया है. भाजपा की बात करे तो तरारी से प्रशांत विशाल चुनाव लड़ रहे है जो एक बड़े बाहुबली सुनील पांडे के बेटे है. लोजपा ने हुलास पाण्डेय राजू तिवारी जैसे दबंग लोगों को टिकट दिया. वही राजद ने जेल में बंद रीतलाल यादव को दानापुर से उतारा है. जेडीयू ने तीन बड़े बाहुबली अनंत सिंह, धूमल सिंह और अमरेंद्र पांडेय को मैदान में उतारा है. कोई कैसे भूल सकता है कि नीतीश कुमार ने अपनी सरकार को बचाने के लिए बाहुबलियों का सहारा लिया था.














