इस बार गुरुआ सीट पर हुआ एकतरफा मुकाबला, बीजेपी के हाथ लगी बाजी

गुरुआ में पारंपरिक मुद्दे खेत और सिंचाई, ग्रामीण विकास, सड़क-सुविधा, बिजली और शिक्षा रहे हैं. साथ ही गया जिले के पहाड़ी और जंगलों से ढंके इलाकों और आसपास के कुछ हिस्सों में सुरक्षा व कानून-व्यवस्था, नक्सलियों की बढ़ती सक्रियता अहम मुद्दे हैं.

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  • गुरुआ विधानसभा सीट बिहार के गया जिले में स्थित है और यह औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है.
  • यहां की आबादी में यादव, कोइरी, अन्य पिछड़े समुदाय और मुस्लिम मतदाता प्रमुख रूप से शामिल हैं.
  • गुरुआ के प्रमुख मुद्दों में खेत, सिंचाई, ग्रामीण विकास, सड़क, बिजली, शिक्षा और सुरक्षा शामिल हैं.
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पटना:

विधानसभा संख्‍या 225 गुरुआ, बिहार के गया जिले में आने वाली सीट है. यह औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है. इस सीट पर ज्‍यादातर आबादी ग्रामीण है. यहां की आबादी में यादव, कोइरी और दूसरे पिछड़े समुदाय के साथ मुस्लिम मतदाता भी अच्‍छी-खासी आबादी में हैं. गुरुआ में बीजेपी जो पिछले चुनावों में नंबर दो पर थी, इस बार नंबर वन बनी. बीजेपी के उपेंद्र प्रसाद ने आरजेडी के विनय कुमार को 24194 वोटों से मात दी. पिछली बार विनय कुमार ने बीजेपी के उम्‍मीदवार को हराया था. 

गुरुआ के खास मुद्दे 

गुरुआ में पारंपरिक मुद्दे खेत और सिंचाई, ग्रामीण विकास, सड़क-सुविधा, बिजली और शिक्षा रहे हैं. साथ ही गया जिले के पहाड़ी और जंगलों से ढंके इलाकों और आसपास के कुछ हिस्सों में सुरक्षा व कानून-व्यवस्था, नक्सलियों की बढ़ती सक्रियता और उससे जुड़ी सुरक्षा छानबीन समय-समय पर सुर्खियों में रहती है. इन गतिविधियों का यहां के स्थानीय माहौल और विकास पर खासा असर पड़ता है. ग्रामीण बुनियादी ढांचे और रोजगार भी चुनावी बहस के प्रमुख विषय हैं. 

साल 2020 का वोट गणित 

पिछले विधानसभा चुनाव में आरजेडी के विनय कुमार ने जीत दर्ज की. उन्हें लगभग 70,761 वोट मिले थे. वहीं बीजेपी के राजीव नंदन दूसरे नंबर पर रहे और उन्हें करीब 64,162 वोट मिले. इस तरह से जीत का अंतर करीब 6,599 वोट रहा. इससे पता लगता है कि इस सीट पर मुकाबला काफी करीबी था. दोनों प्रमुख दलों के बीच वोटों के बंटवारे ने निर्णायक भूमिका अदा की थी. कुल स्पंजी वोट या नोटा वोट और छोटे दलों का प्रभाव भी मौके-मौके पर निर्णायक साबित हो सकता है. 

क्‍या है चुनावी माहौल 

सीट की लड़ाई अक्सर स्थानीय मुद्दों और जातीय समीकरण पर टिकी रहती है.  साल 2020 की निकट जीत दिखाती है कि कोई भी बड़ा झटका या गठबंधन बदलने पर परिणाम पलट सकता है. सुरक्षा से जुड़े इनपुट और विकास संबंधी वादों का स्थानीय मतदाता पर असर रहता है. साल 2025 जैसे निर्वाचन-वर्षों के आसपास, उम्मीदवारों की जमीन-कसरत, जाति-समर्थन और छोटे दलों/प्रत्यक्ष उम्मीदवारों की स्थिति निर्णायक बन सकती है. 
 

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