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Shiv Stuti : सोमवार को पढ़ेंगे शिव स्तुति, प्रसन्न होंगे भोले बाबा, हर मन्नत होगी पूरी!

Shiv Puja Ke Niyam : सोमवार को करते हैं भगवान शिव की पूजा तो जरूर पढ़े शिव स्तुति. पूरी होगी हर मनोकामना.

Edited by Updated : April 14, 2023 12:52 PM IST
Shiv Stuti : सोमवार को पढ़ेंगे शिव स्तुति, प्रसन्न होंगे भोले बाबा, हर मन्नत होगी पूरी!
Shiv Puja : भगवान शिव की पूजा अर्चना करते समय रखें इस बात का ध्यान.
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Shiva Stuti: देवों के महादेव कहे जाने वाले भोले शंकर भंडारी यानी महादेव शिव (lord Shiva) का प्रिय दिन सोमवार (Monday) कहा जाता है. हमारे सनातन धर्म में सोमवार के दिन को शिव भगवान को समर्पित किया गया है औऱ इसी कारण सोमवार को शिव का महाभिषेक होने के साथ साथ शिव की उपासना के लिए व्रत आदि भी रखे जाते हैं. इस दिन महादेव के साथ साथ मां पार्वती की भी पूजा का प्रावधान है. मान्यता है कि भोले भंडारी बहुत ही भोले हैं और भक्तों की पूजा से तुरंत प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं. उनके वरदान से जहां जीवन के सभी संकट मिट जाते हैं वहीं सांसारिक जीवन के पाप नष्ट होते हैं और परिवार में सुख शांति बनी रहती है. सोलह सोमवार को शिव भगवान का व्रत करने वाली कन्याओं को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है और इस दिन पूजा करने पर अविवाहितों की जल्द शादी के योग भी बनते हैं. अगर आप भी अपने और परिवार के लिए सुख समृद्धि पाना चाहते हैं तो सोमवार के दिन इस खास शिव स्तुति (Shiva stuti)का जाप करना आपके लिए लाभकारी होगा और इसे सच्चे मन से करने पर भोले भंडारी खुश होकर आशीर्वाद देते हैं.

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सोमवार को विधिवत पूजा के बाद करें शिव स्तुति  (On Monday chant this shiva stuti after pooja of mahadev)

आपको बता दें कि निम्नलिखित शिव स्तुति का जप करना काफी लाभकारी होगा अगर आप इसे सोमवार के दिन परिवार के साथ करेंगे. इससे प्रसन्न होकर भोलेनाथ भक्त के परिवार पर अपार क़ृपा बरसाते हुए उन्हें सभी संकटों से दूर रखते हैं. ये शिव स्तुति शिव के सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली मंत्रों में से एक कही गई है. इसे स्तुति को सोमवार को महादेव की विधिवत पूजा के बाद एक साथ बैठकर करना चाहिए.

शिव शम्भुं स्तुति

नमामि शम्भुं पुरुषं पुराणं

नमामि सर्वज्ञमपारभावम्।

नमामि रुद्रं प्रभुमक्षयं तं

नमामि शर्वं शिरसा नमामि॥१॥

नमामि देवं परमव्ययंतं

उमापतिं लोकगुरुं नमामि।

नमामि दारिद्रविदारणं तं

नमामि रोगापहरं नमामि॥२॥

नमामि कल्याणमचिन्त्यरूपं

नमामि विश्वोद्ध्वबीजरूपम् ।

नमामि विश्वस्थितिकारणं तं

नमामि संहारकरं नमामि ॥३॥

नमामि गौरीप्रियमव्ययं तं

नमामि नित्यंक्षरमक्षरं तम् ।

नमामि चिद्रूपममेयभावं

त्रिलोचनं तं शिरसा नमामि ॥४॥

नमामि कारुण्यकरं भवस्या

भयंकरं वापि सदा नमामि ।

नमामि दातारमभीप्सितानां

नमामि सोमेशमुमेशमादौ ॥५॥

नमामि वेदत्रयलोचनं तं

नमामि मूर्तित्रयवर्जितं तम् ।

नमामि पुण्यं सदसद्व्यातीतं

नमामि तं पापहरं नमामि ॥६॥

नमामि विश्वस्य हिते रतं तं

नमामि रूपापि बहुनि धत्ते ।

यो विश्वगोप्ता सदसत्प्रणेता

नमामि तं विश्वपतिं नमामि ॥७॥

यज्ञेश्वरं सम्प्रति हव्यकव्यं

तथागतिं लोकसदाशिवो यः ।

आराधितो यश्च ददाति सर्वं

नमामि दानप्रियमिष्टदेवम् ॥८॥

नमामि सोमेश्वरंस्वतन्त्रं

उमापतिं तं विजयं नमामि ।

नमामि विघ्नेश्वरनन्दिनाथं

पुत्रप्रियं तं शिरसा नमामि ॥९॥

नमामि देवं भवदुःखशोक

विनाशनं चन्द्रधरं नमामि ।

नमामि गंगाधरमीशमीड्यं

उमाधवं देववरं नमामि ॥१०॥

नमाम्यजादीशपुरन्दरादि

सुरासुरैरर्चितपादपद्मम् ।

नमामि देवीमुखवादनानां

ईक्षार्थमक्षित्रितयं य ऐच्छत् ॥११॥

पंचामृतैर्गन्धसुधूपदीपैः

विचित्रपुष्पैर्विविधैश्च मन्त्रैः ।

अन्नप्रकारैः सकलोपचारैः

सम्पूजितं सोममहं नमामि ॥१२॥

'रुद्राष्टकम'

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं ।

विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ॥

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं ।

चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥1॥

निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं ।

गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।

करालं महाकालकालं कृपालं ।

गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ॥2॥

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं ।

मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ॥

स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा ।

लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥3॥

चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं ।

प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ॥

मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं ।

प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ॥4॥

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं ।

अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ॥

त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं ।

भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥5॥

कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी ।

सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ॥

चिदानन्दसंदोह मोहापहारी ।

प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥6॥

न यावद् उमानाथपादारविन्दं ।

भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।

न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं ।

प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ॥7॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजां ।

नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ॥

जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं ।

प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ॥8॥

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ॥।

ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥9॥

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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