केवल फिल्मों में देखी थी बस और टैक्सी, फिर सपनों को सच करने पहुंचे मुंबई और आज वो...

'मुंबई में अपनी किस्मत आजमाने के लिए लाखों लोग आते हैं. मैं उनमें से एक था.'

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वेदांता रिसोर्सेज लिमिटेड (Vedanta Resources Limited) के कार्यकारी अध्यक्ष और संस्थापक, अरबपति अनिल अग्रवाल (Anil Agarwal) ने बताया, कि कैसे उन्होंने उस समय अपना घर छोड़ने का फैसला किया, जब वो एक युवा थे. केवल एक टिफिन बॉक्स, बिस्तर और अपने सपनों के साथ मुंबई (Mumbai) के लिए निकल पड़े. अग्रवाल उन लाखों लोगों में शामिल हैं जो हर साल सपनों के शहर खुद को बड़ा बनाने की उम्मीद के साथ पहुंचते हैं. आज अनुमानित 3.6 बिलियन डॉलर (फोर्ब्स के अनुसार) कमाने वाले, वह उन कुछ लोगों में से एक है जो सफल होते हैं.

इस सप्ताह की शुरुआत में शेयर किए गए एक ट्वीट में, 67 वर्षीय अनिल अग्रवाल ने उस दिन को याद किया जब वह बिहार छोड़कर मुंबई पहुंचे थे. उन्होंने लिखा, 'मुंबई में अपनी किस्मत आजमाने के लिए लाखों लोग आते हैं. "मैं उनमें से एक था. मुझे वह दिन याद है जब मैंने केवल एक टिफिन बॉक्स, बिस्तर और अपनी आंखों में सपने लेकर बिहार छोड़ा था."

उन्होंने कहा, कि वह मुंबई के प्रतिष्ठित विक्टोरिया टर्मिनस स्टेशन पर पहुंचे और ऐसे नजारे देखे जो उन्होंने तब तक केवल फिल्मों में देखे थे. अग्रवाल ने लिखा, "मैंने एक काली पीली टैक्सी, एक डबल डेकर बस और सपनों का शहर देखा- ये सब मैंने केवल फिल्मों में देखा था." उन्होंने युवाओं को "कड़ी मेहनत करने" के लिए प्रोत्साहित करते हुए एक संदेश के साथ अपना पोस्ट समाप्त किया.

वेदांता के चेयरमैन ने लिखा, “अगर आप मजबूत इरादे के साथ पहला कदम उठाएंगे, मंज़िल मिलना तय है.”

वेदांत एक खनन कंपनी है जिसे अनिल अग्रवाल ने जमीन से बनाया है. स्क्रैप मेटल डीलरशिप के रूप में मुंबई में स्थापित, यह आज भारत की सबसे बड़ी खनन कंपनियों में से एक है. हाल के वर्षों में, वेदांत को ओडिशा के नियमगिरि पहाड़ियों में अपने संचालन के लिए कई मानवाधिकार और कार्यकर्ता समूहों की आलोचना का सामना करना पड़ा है. तमिलनाडु के तूतीकोरिन में, जिसे आधिकारिक तौर पर थूथुकुडी के नाम से जाना जाता है, वेदांत पर अपने कारखाने से हवा और भूजल को प्रदूषित करने का आरोप लगाया गया है.

अनिल अग्रवाल इससे पहले भी अपनी विनम्र शुरुआत के बारे में बता चुके हैं. रेडिफ पर प्रकाशित 2005 के एक इंटरव्यू में उन्होंने 1970 के दशक में 19 साल की उम्र में मुंबई आने की बात कही थी और कभी भी पटना वापस घर न जाने की बात बताई. उन्होंने याद करते हुए कहा, "यह पहली बार था जब मैं विमान में (छात्र रियायत पर) बैठा था और पूरी फ्लाइट में चुप रहा क्योंकि मैं अंग्रेजी में एक शब्द भी नहीं बोल सकता था."

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