कहते हैं कि जब इंसान कोई सपना देखता है तो पूरी कायनात उसे पूरा करने में लग जाती है. नीरज चोपड़ा एक ऐसे ही खिलाड़ी हैं. इनका जन्म हरियाणा के एक छोटे से गांव में हुआ, मगर आज पूरी दुनिया इन्हें गोल्डन बॉय के नाम से जानती है. बेहद कम उम्र में अपनी पहचान बनाने वाले नीरज चोपड़ा की कहानी सबसे अलग है. इनकी कहानी में मेहनत, कठिन परिश्रम, सेवा और समर्पण हैं. आइए जानते हैं कैसे एक गांव का लड़का विश्व चैंपियन बन गया.
दो साल से पहले नीरज चोपड़ा को बहुत ही कम लोग जानते थे. मगर, टोक्यो ओलंपिक में इन्होंने गोल्ड मेडल जीतकर सबको अपनी ओर आकर्षित कर लिया. उस समय नीरज की उम्र महज 23 साल थी. 23 साल की उम्र में नीरज चोपड़ा ने भालाफेंक प्रतियोगिता में इतिहास रच दिया. नीरज की इस उपलब्धि से पूरा देश गौरान्वित हुआ. इसके बाद नीरज ने कई उपलब्धियां अपने नाम की. आज नीरज ने वर्ल्ड चैंपियनशिप भी जीत है. इसमें कोई शक नहीं है कि नीरज एक महान खिलाड़ी बनने की राह पर हैं.
आज नीरज की उपलब्धि से पूरा देश गौरान्वित हो रहा है. मगर हम सभी के लिए ये जानना बेहद जरूरी है कि नीरज ने अपना सफर कैसे शुरु किया था. सफलता के लिए उन्होंने कितनी मेहनत की है. नीरज का घर हरियाणा के पानीपत के रहने वाले हैं. यहीं इनका बचपन बीता है. इसी गांव में उन्होंने खेलना शुरु किया है. यहीं इन्होंने सपने देखना भी शुरु किया. अभी नीरज के पास इतिहास रचने को बहुत मौके हैं. इनके पिता का कहना है कि नीरज चोपड़ा ने अपने जैसे कई लड़कों को सपने देखने के लिए संदेश दिया है.
टोक्यो ओलंपिक से पहले नीरज का सफर
नीरज चोपड़ा को टोक्यो ओलंपिक में पहचान मिली, मगर इससे पहले भी वो कई चैंपियनशिप खेल चुके हैं. 2016 में वर्ल्ड जूनियर चैंपियनशिप में हिस्सा लेकर उन्होंने दस्तक दे दी थी. देखा जाए तो देश में क्रिकेटरों का जलवा है, मगर नीरज ने अपनी लोकप्रियता से जैवेलिन को एक नई पहचान दी है. टोक्यो ओलंपिक्स में जीतने के बाद नीरज चोपड़ा की ब्रांड वैल्यु काफी बढ़ी है. गूगल पर वो सबसे ज्यादा सर्च करे जाने वाले खिलाड़ी भी बने. विराट कोहली और रोहित शर्मा जैसे खिलाड़ियों के बीच वो आ गए. आज नीरज के कारण कई लड़कों ने इस गेम से प्यार कर लिया है.
घरवालों ने नीरज को प्रेरित किया
दरअसल, नीरज चोपड़ा बचपन में काफी मोटे थे. ऐसे में जब वो 17 साल के थे तो घरवालों ने वजन कम करने को कहा. इसी बीच नीरज को जैवेलिन के बारे में पता चला. फिर नीरज रुके नहीं. एक बार हाथ में भाला ले लिया तो अब लगातार बढ़ते जा रहे हैं. एक के बाद एक चैंपियनशिप पर अपना नाम दर्ज करवा रहे हैं. नीरज के पिता सतीश कुमार चोपड़ा बताते हैं कि नीरज के चाचा रोज 15 किमी उन्हें लेकर जाते थे. नीरज घरवालों के सामूहिक प्रयास से आगे बढ़े हैं. उन्होंने कहा- नीरज बस मेहनत कर रहे हैं, इतिहास खुद ब खुद लिखा जा रहा है.