राइटर्स कम्युनिटी के ज़रिए फ्रीलांसर्स की ज़िंदगी बदल रहे हैं अंकित देव अर्पण और शान्या दास

कोरोना काल में हमने देखा कि लोग कितने बेरोजगार हो गए थे. कई कंपनियों ने लोगों को कोस्ट कटिंग के नाम पर नौकर से निकाल दी थी. ऐसे में लोग बेरोजगार हो गए थे. उस समय लोग फ्रीलांस वर्क खोज रहे थे.

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कोरोना काल (Corona Pandemics) में हमने देखा कि लोग कितने बेरोजगार (Unemployment) हो गए थे. कई कंपनियों ने लोगों को कोस्ट कटिंग के नाम पर नौकर से निकाल दी थी. ऐसे में लोग बेरोजगार हो गए थे. उस समय लोग फ्रीलांस वर्क खोज रहे थे. बात 2020 की है, जब दो युवा उद्यमी अंकित देव अर्पण और शान्या दास राइटर्स कम्युनिटी (Writers Community) के ज़रिए लोगों को फ्रीलांस काम दे रहे थे. इनकी कहानी सभी लोगों के लिए प्रेरणा से कम नहीं है. अंकित देव अर्पण बिहार के पश्चिमी चंपारण के रहने वाले हैं. वहीं शान्या दास बिहार के अररिया जिले की रहने वाली हैं. 20 साल की उम्र में शान्या ने अंकित के साथ मिलकर राइटर्स कम्युनिटी की स्थापना की.

राइटर्स कम्युनिटी भारत के स्वदेशी फ्रीलान्स मार्केटप्लेस के रूप में उभर कर सामने आई जिसका एक मात्र कारण है कि अधिक से अधिक लोगों तक इसकी पहुंच अत्यंत सुगम्य है. आम लोग इसकी वेबसाइट https://thewriterscommunity.in के एम्प्लोयी सेक्शन में खुद को रजिस्टर कर जुड़ सकते हैं, अथवा सोशल मीडिया के माध्यम से @writerscommunityfreelancers से जुड़ना आसान है. इसके लिए फेसबुक, लिंक्डइन, इंस्टाग्राम, और ट्विटर पेज बनाया गया है. साथ ही राइटर्स कम्युनिटी के 4 आधिकारिक व्हाट्सएप्प ग्रुप में भी निरंतर सूचना दी जाती है जिस माध्यम से लोग जुड़ते हैं.


जुड़ने के लिए एक साधारण टेस्ट देना अनिवार्य है, उसके रिव्यु के आधार पर फ्रीलांसर को आगे का कार्य दिया जाता है. साथ ही इसमें लेखकों के अतिरिक्त ग्राफिक डिजाइनिंग, वेब डेवलपमेंट, सोशल मीडिया मैनेजर, SEO एक्सपर्ट, डिजिटल मार्केटिंग एक्सपर्ट इत्यादि भी जुड़ सकते हैं. राइटर्स कम्युनिटी अकादमिक कार्यों के साथ गैर अकादमिक कार्यों में भी कंटेंट तथा डिजिटल सेवाएं प्रदान कर रही है.

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फ्रीलांस भविष्य है

फ्रीलांस राइटर्स के भविष्य पर चर्चा करें तो यह कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि फ्रीलांस ही आगामी भविष्य है. कोरोना महामारी ने नुकसान अवश्य दिया है लेकिन इसने भारत जैसे देश को एक नया विकल्प जरूर दे दिया है. एक तरफ बढ़ती जनसंख्या, महंगाई और बेरोजगारी जहां हमारे लिए चुनौती है वहीं दूसरी ओर फ्रीलान्स हमारे लिए इन चुनौतियों से लड़ने का एक शस्त्र. कार्यालय से कार्य करना नई कंपनियों के लिए आर्थिक चुनौती होने के साथ-साथ, पर्यावरण के लिए भी घातक है. साथ ही महिलाओं तथा दिव्यांग जनों के लिए अब भी यह सुलभ नहीं है. फ्रीलांस एक अवसर के रूप में उभर कर सामने आया है, जहां आम महिलाओं, दिव्यांगों या सामाजिक रूप से उपेक्षित लोगों के साथ साथ गर्भवती या मातृत्व अवकाश प्राप्त कर रही महिलाओं हेतु भी सुलभ है. इसकी एक विशेषता यह है कि एक साथ अधिक से अधिक लोग कार्य कर सकते हैं, जिससे अधिक उत्पादन की संभावना है. 

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फ्रीलांसर्स के साथ कई बार धोखा भी हो जाता है. ऐसे में इससे निपटने के लिए राइटर्स कम्युनिटी की स्थापना की गई है. इस मामले पर अंकित बताते हैं कि जीरो स्कैम और सार्वभौमिक नमूने वाली प्रणाली (यूनिवर्सल सैंपल सिस्टम) को आधार बनाकर जब राइटर्स कम्युनिटी शुरू हुई थी तो इसकी प्रेरणा लगातार हुए कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं से जागृत हुई. हमने लगातार स्कैम का सामना किया और तब लगा कि इस स्कैम को समाप्त करने का एक प्रयास किया जाना चाहिए. यहां हमारा मानना है कि कई बार आस पास घटित होने वाली नकारात्मक घटनाएं भी उत्प्रेरक की भूमिका निभाती हैं. साथ ही सकारात्मक रूप से माने तो वैसे लेखक जो कार्य हेतु अपना शत प्रतिशत देने के लिए तैयार रहते हैं.

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