कहते हैं कि, जहरीले जीवों से जितनी दूरी उतना भला....आम धारणा यह है कि सांप, बिच्छू, मकड़ी जैसे अन्य जीवों का जहर इंसान की पलभर में जान ले सकता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ जानवरों के जहर से कई तरह की दवाएं बनाई जाती हैं. विशेषज्ञों की मानें तो कुछ जानवरों के जहर से गठिया, डायबिटीज, हार्ट अटैक जैसी बीमारियों को ठीक किया जा सकता है. यूं तो आज के समय में बहुत से ऐसे दवा बाजार हैं, जो कि जीवों के जहर से दवा तैयार कर रहे हैं. जैसे- साउथ अमेरिका के सांप पिट वाइपर जराराका के जहर से कैप्टोप्रिल (हाइपरटेंशन और दिल के दौरे के लिए) बनाई जाती है. इसी तरह अमेरिका में पाई जाने वाली जहरीली छिपकली 'गिला मॉन्स्टर' (Gila monster) की विषाक्त लार (lizard venom) में मौजूद एक प्रोटीन से टाइप-टू डायबिटीज सही करने की कोशिश की जाती रही है.
कैसे खोजी गई यह अनोखी चिकित्सा?
मनुष्यों के लिए जहरीला माने जाने वाला गिला मॉन्स्टर छिपकली का जहर, एक क्रांतिकारी दवा के रूप में सामने आया है. प्रसिद्ध मधुमेह और मोटापे की दवाएं जैसे Ozempic और Wegovy इसी विषैले पदार्थ से प्रेरित होकर बनाई गई हैं. 20वीं सदी के अंत में, वैज्ञानिक डेनियल ड्रकर (Daniel Drucker) एक ऐसी दवा की खोज में लगे थे, जो 'GLP-1 हार्मोन' की तरह काम करे और शरीर में ज्यादा समय तक सक्रिय रहे.
इसी दौरान, उन्हें शोधकर्ता 'जॉन एंग (John Eng), जीन-पियरे रॉफमैन (Jean-Pierre Raufman) और जॉन पिसानो' (John Pisano) के अध्ययन (research) मिले, जिन्होंने गिला मॉन्स्टर के विष में मौजूद 'Exendin-4' नाम के प्रोटीन को खोजा. यह प्रोटीन GLP-1 से मिलता-जुलता था, लेकिन शरीर में अधिक समय तक प्रभावी रहता था. इस शोध ने एक 'सिंथेटिक संस्करण' (synthetic version) का विकास किया, जिसे 2005 में 'FDA से मंजूरी मिली' और अब यह टाइप 2 मधुमेह (type 2 diabetes) और मोटापे के इलाज में व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है.
प्राकृतिक ज़हर से बनीं अन्य जीवनरक्षक दवाएं
गिला मॉन्स्टर ही नहीं, बल्कि अन्य जहरीले जीवों से भी कई महत्वपूर्ण दवाएं बनी हैं.
सांप का ज़हर और ब्लड प्रेशर की दवा
ब्राज़ीलियन वाइपर (Bothrops jararaca) के ज़हर से Lisinopril नामक दवा बनी, जो ब्लड प्रेशर नियंत्रित करने, हार्ट फेल्योर के इलाज और दिल के दौरे से बचाव में कारगर है.
समुद्री स्पंज से बना कैंसर रोधी उपचार
कैरेबियाई स्पंज Tectitethya crypta से मिले तत्वों ने Cytarabine नामक कैंसर की दवा को जन्म दिया, जो ल्यूकेमिया और लिम्फोमा जैसी बीमारियों के लिए प्रभावी साबित हुई.
बिच्छू के ज़हर से कैंसर की पहचान
डेथस्टॉकर स्कॉर्पियन के ज़हर में मौजूद Chlorotoxin नामक पदार्थ, ब्रेन ट्यूमर की पहचान में मदद करता है. इस तकनीक ने Tozuleristide नामक डाई विकसित करने में मदद की, जो सर्जरी के दौरान कैंसर कोशिकाओं को रोशन कर देती है, जिससे डॉक्टर ट्यूमर को पूरी तरह निकाल सकते हैं.
प्रकृति में छिपे हैं जीवन बचाने के रहस्य
इन खोजों से पता चलता है कि प्राकृतिक ज़हर, जो कभी खतरा माना जाता था, अब चिकित्सा विज्ञान के लिए वरदान बन चुका है, लेकिन इन दुर्लभ प्रजातियों और उनके पारिस्थितिकी तंत्र को बचाना बेहद ज़रूरी है. हो सकता है कि भविष्य की कई और बीमारियों का इलाज इन्हीं जीवों के जहर में छिपा हो.
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