इस गांव में नहीं निकलती थी धूप, अंधेरे से बचने के लिए गांववालों ने लगाया तगड़ा जुगाड़, चीन को भी छोड़ा पीछे

दुनिया का एक ऐसा गांव, जो कि एक तरफ घाटी तो दूसरी तरफ पहाड़ों से घिरा हुआ है. ठंड के महीनों में वहां सर्दी और अंधेरे से सन्नाटा पसर जाता है, लेकिन इस समस्या से निपटने का वहां के लोगों ने गजब का तरीका खोज निकाला है.

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अंधेरे से बचने के लिए गांव वालों ने बना डाला आर्टिफिशियल सूरज

रोशनी और धूप जिंदगी हैं. इनके बिना जीवन बड़ा ही अटपटा लगता है. धरती पर रहने वाले हर प्राणी के लिए सूरज की किरणें बेहद जरूरी है. वहीं, अगर कड़ाके की ठंड पड़ रही हो तो यही सूरज की किरणें एक अलग ही सुखद अहसास देती हैं. इंसानी शरीर क्या, पेड़-पौधे और पशु-पक्षी भी धूप से ज्यादा दिन की दूरी बर्दाश्त नहीं कर सकते, लेकिन एक जगह ऐसी भी है, जहां सूरज के दर्शन ही दुर्लभ हो गए हैं. दरअसल, इटालियन-स्विस सीमा (Italian-Swiss border) पर एक घाटी में बसा एक छोटा सा गांव विगनेला (Viganella) एक अजीब समस्या का सामना कर रहा है. यह दुनिया में एक ऐसा गांव है, जहां सूरज तो उगता था, मगर यहां धूप की एक किरण तक नहीं पहुंचती. पहाड़ों से घिरा यह शहर (Italian village built own sun) हर साल नवंबर से फरवरी तक तीन महीने अंधेरे में डूबा रहता है.

यहां बहुत कम आबादी रहती है. यह नगर एक तरफ घाटी तो दूसरी तरफ पहाड़ों से घिरा हुआ है. ठंड के महीनों में यहां सूरज की रोशनी नहीं पहुंच पाती. पूरे नगर में सर्दी और अंधेरे से सन्नाटा पसर जाता है. ये इस गांव के लिए एक बड़ी समस्या बनी हुई थी. इस समस्या से निजात पाने का एक गजब जुगाड़ गांववालों ने खोज लिया. उन्होंने 'धरती पर ही सूरज को उतार दिया.' दरअसल, गांववालों ने धूप की ऐसी व्यवस्था की है, जिसे देखकर आपको भी यही लगेगा जैसे कि उन्होंने अपने लिए अलग से एक सूरज का इंतजाम कर लिया हो. 

Vice News के मुताबिक, साल 1999 में विगनेला के स्थानीय आर्किटेक्ट जियाकोमो बोन्ज़ानी ने चर्च की दीवार पर एक धूपघड़ी लगाने का प्रस्ताव रखा, लेकिन तत्कालीन मेयर फ्रेंको मिडाली ने इस सुझाव को खारिज कर दिया. धूपघड़ी की जगह मेयर ने उस वास्तुकार को कुछ ऐसा बनाने के लिए जिससे गांव में पूरे साल धूप पड़ती रहे. धूप की जद्दोजेहद के लिए आर्किटेक्ट बोन्ज़ानी (Architect Giacomo Bonzani) और इंजीनियर गियानी फेरारी (engineer Gianni Ferrari) ने मिलकर आठ मीटर चौड़ा और पांच मीटर लंबा एक विशाल मिरर डिजाइन किया, जिसे बनाने में 1,00,000 यूरो (लगभग 1 करोड़ रुपए) की लागत आई. 17 दिसंबर, 2006 को इस प्रोजेक्ट का काम पूरा हो गया.

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मिरर में एक खास सॉफ्टवेयर प्रोग्राम भी लगाया गया. सॉफ्टवेयर की बदौलत मिरर सूरज के पथ के हिसाब से घूमता है. इस तरह चोटी पर लगे विशाल मिरर से गांव में दिन में 6 घंटे तक सूरज की रोशनी रिफ्लेक्ट होकर आने लगी. इस तरह से दिन में 6 घंटे तक गांव में रोशनी रहने लगी. यह आर्टिफिशियल रोशनी प्राकृतिक धूप के बराबर और इतनी शक्तिशाली नहीं है. वहीं गर्मी के मौसम में अगर ऐसी व्यवस्था रहेगी, तो विशाल मिरर की वजह से गांव में तेज धूप पड़ेगी, इसलिए गर्मी के सीजन में मिरर को ढक दिया जाता है.

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बताया जाता है कि, इस परियोजना से न केवल व्यावहारिक लाभ हुआ है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय (international) स्तर पर भी ध्यान आकर्षित हुआ है. मल्टीमीडिया कलाकार सिल्विया कैम्पोरेसी (multimedia artist Silvia Camporesi) ने 2020 में विगनेला का दौरा किया और दर्पण (mirror) का दस्तावेजीकरण किया. पूर्व मेयर मिडाली ने 2008 के एक इंटरव्यू में कहा, 'प्रोजेक्ट के पीछे का विचार किसी वैज्ञानिक आधार पर नहीं है. यह मानवीय आधार पर बना है. इटली के इस कस्बे के लोगों को जिस तरह से सफलता मिली, इसने दुनिया के और देशों को ऐसा साहसिक काम के लिए प्रेरित किया. 2013 में दक्षिण-मध्य नॉर्वे की एक घाटी में स्थित रजुकन में विगनेला की तरह की एक मिरर लगाया गया था. 

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