देश के विकास के लिए दिव्यांगजनों की शिक्षा बेहद जरूरी है : डॉ. सितांशु सिंह

हमारे देश में छोटे उम्र के विशेष जरूरतों वाले बच्चों या फिर दिव्यांग किशोरों के लिए शिक्षा में विकल्प काफी कठिन होते हैं. जब आप दिव्यांग बच्चों के माता पिता हों तो इसका निवारण कठिन हो सकता है.

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हमारे देश में छोटे उम्र के विशेष जरूरतों वाले बच्चों या फिर दिव्यांग किशोरों के लिए शिक्षा में विकल्प काफी कठिन होते हैं. जब आप दिव्यांग बच्चों के माता पिता हों तो इसका निवारण कठिन हो सकता है. भारत में 1.2 अरब की आबादी में लगभग 2  करोड़ 70 लाख लोग इस श्रेणी में आते हैं. इसका मतलब है कि हमारी आबादी के लगभग 2.2% लोगों की विशेष जरूरतें हैं. जिसमे लगभग 46 लाख बच्चे 10-19 वर्ष के आयु वर्ग के हैं, और 0-6 वर्षों के बच्चों की तस्वीर धूमिल है जो विशेष आवश्यकताएँ वाले श्रेणी में आते हैं. 

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करियर काउंसलर और थिंकफिनिटी एजुकेशन के संस्थापक डॉ. सितांशु सिंह बताते हैं कि, "हमारे देश की शिक्षा प्रणाली साधारण बच्चों के लिए तो ठीक है लेकिन दिव्यांग बच्चों को इस प्रणाली से जोड़ने में काफी परेशानी होती है. जनगणना के अनुसार, 5-19 आयु वर्ग के विशेष आवश्यकता वाले मात्र 61% बच्चे ही किसी भी प्रकार के शैक्षणिक संस्थानों में पहुँच पाते हैं. यह वह आंकड़े हैं जिनके बारे में सरकार को जानकारी है, आज भी देश में गलत धारणाओं, सामाजिक भय या निदान की कमी के कारण ऐसे कई मामले हैं जो रिपोर्ट नहीं किए जाते हैं और इसलिए उनकी 61% संख्या को भी सटीक नहीं कहा जा सकता."

कुछ स्कूलों में समावेशी शिक्षा के अभ्यास के बावजूद, विशेष आवश्यकता वाले अधिकांश बच्चों को कोई औपचारिक शिक्षा नहीं मिलती है. ऐसा इसलिए है क्योंकि विकलांग और सीखने की कमी वाले बच्चों को मुख्यधारा के स्कूलों और अन्य नियमित दिनचर्या तथा सामान्य बच्चों की सामाजिक गतिविधियों से अलग कर दिया जाता है.

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'विशेष आवश्यकता' के सन्दर्भ में डॉ. सितांशु बताते हैं कि, "यह शब्द कुछ भ्रम पैदा कर सकता है. यह सीखने की कठिनाइयों, शारीरिक अक्षमता, या भावनात्मक और व्यवहार संबंधी कठिनाइयों के परिणामस्वरूप विशेष शैक्षिक आवश्यकताओं को संदर्भित करता है. अक्सर, ये बच्चे की स्थिति के आधार पर ओवरलैप हो सकते हैं."

दिव्यांग बच्चों के विशेष शैक्षणिक व्यस्था के लिए देश में कई नीतिगत मुद्दे हैं जिनका निवारण जरुरी है. डॉ. सितांशु कहते हैं कि, "विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के संबंध में हमारे देश में नीतियां अस्पष्ट हैं. सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय इन विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए अलग स्कूल चलाता है. लेकिन, मानव संसाधन विकास मंत्रालय  इन बच्चों को नियमित कक्षाओं में शामिल किए जाने को बढ़ावा देता है. माता-पिता अक्सर यह तय नहीं कर पाते हैं कि सबसे अच्छा विकल्प कौन सा है."

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आगे जोड़ते हुए उन्होंने कहा कि, "भारत और दुनिया भर में विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की बड़ी संख्या है. वे किसी भी मायने में किसी साधारण बच्चे से कम नहीं होते अर्थात उन्हें भी शिक्षा का पूर्ण अधिकार है. सही संसाधनों, संस्थानों और शिक्षकों के साथ, विशेष आवश्यकता वाला बच्चा भी अच्छी तरह से सीख सकता है. यदि आपके बच्चे को इन संसाधनों की आवश्यकता है, तो आप मदद के लिए सरकारी या निजी योजनाओं की ओर रुख कर सकते हैं."

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हम समावेशी शिक्षा पर अधिक जागरूकता पैदा करके इन बाधाओं को दूर कर सकते हैं, हम संसाधनों के साथ सभी प्रकार के छात्रों की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने पाठ्यक्रम को फिर से तैयार करने की क्षमता, शिक्षकों की भर्ती करके जो विभिन्न मांगों को पूरा करने के लिए कौशल और दक्षता रखते हैं और स्कूल और परिवार का समर्थन प्राप्त करके दिव्यांग बच्चों के शैक्षणिक योग्यता में काफी सुधार कर सकते हैं. यदि इन परिवर्तनों को लागू किया जाता है, तो यह कई दिव्यांग बच्चों के अपने सामान्य साथियों की तरह एक मूल्यवान शिक्षा  के लिए आत्मविश्वास और प्रेरणा देगा.
 

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