सुरंग से बाहर निकाले गये श्रमिकों के गांव में जश्न, एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर मनायी 'दीपावली'

सिलक्यारा सुरंग में लखीमपुर खीरी जिले की निघासन तहसील के भैरमपुर गांव का निवासी मंजीत चौहान (25) भी फंसा था. वह मलबे के कारण सुरंग बंद होने के खौफनाक वाकये को यादकर अब भी सिहर उठता है. बहरहाल, सुरंग से सुरक्षित बाहर निकलने के बाद से उसके गांव में जश्न का माहौल है.

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उत्तराखंड की सिलक्यारा सुरंग में फंसे उत्तर प्रदेश के आठ मजदूरों के 16 दिन बाद मंगलवार रात को सुरंग से सही-सलामत बाहर आने की खबर सुनकर उनके परिजन और ग्रामीण झूम उठे तथा उसी समय से गांव में शुरू हुआ जश्न बुधवार को भी जारी रहा. सिलक्यारा सुरंग में श्रावस्ती जिले के मोतीपुर गांव के निवासी राम मिलन, अंकित, सत्यदेव, संतोष, जय प्रकाश और राम सुंदर नामक श्रमिक फंसे थे. उन सभी को व्यापक बचाव अभियान के बाद मंगलवार रात को सुरंग से बाहर निकाल लिया गया.

राम मिलन के बेटे संदीप कुमार ने बुधवार को 'पीटीआई-भाषा' को बताया, “मंगलवार रात जैसे ही सुरंग में फंसे श्रमिकों के बाहर निकलने की पहली खबर मिली, वैसे ही 'सब ठीक हो गया' बोलते हुए लोग घरों से बाहर निकल आए. देर रात तक आतिशबाजी हुई, लोगों ने दीये जलाकर और एक दूसरे को मिठाई खिलाकर ‘दीपावली' मनाई.”

सिलक्यारा सुरंग में लखीमपुर खीरी जिले की निघासन तहसील के भैरमपुर गांव का निवासी मंजीत चौहान (25) भी फंसा था. वह मलबे के कारण सुरंग बंद होने के खौफनाक वाकये को यादकर अब भी सिहर उठता है. बहरहाल, सुरंग से सुरक्षित बाहर निकलने के बाद से उसके गांव में जश्न का माहौल है.

चौहान ने 12 नवंबर के उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन को याद करते हुए 'पीटीआई-भाषा' को फोन पर बताया, 'जहां सुरंग ढही वहां से मैं मुश्किल से 15 मीटर की दूरी पर काम कर रहा था. मुझे पहले लगा कि यह एक सपना है, लेकिन मुझे जल्द ही अहसास हुआ कि यह सपना नहीं, बल्कि खौफनाक सच्चाई है. सुरंग बंद होने के बाद के पहले 24 घंटे अंदर फंसे हर व्यक्ति के लिए सबसे मुश्किल थे.''

चौहान ने बताया, ''हम सभी डरे हुए थे. लोग तरह-तरह की बातें कर रहे थे. प्यास, भोजन की कमी, घुटन सबकुछ एक साथ दिमाग में आया, लेकिन जब हमने बाहर से चार इंच के ड्रेन पाइप से संपर्क स्थापित किया, तो लोगों को राहत मिलनी शुरू हो गयी. जैसे-जैसे बाहर बचाव कार्य आगे बढ़ता गया, अंदर फंसे लोगों का मनोबल बढ़ता गया. मजदूरों के लिए उनके प्रियजनों से बात करने की व्यवस्था की गई और उन्हें एक नियमित दिनचर्या का पालन करने के लिए कहा गया.''

उत्तर प्रदेश के ये श्रमिक इस वक्त उत्तराखंड के एक अस्पताल में हैं. उनके परिवारों ने केंद्र, उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश सरकार की सराहना करते हुए उन्हें धन्यवाद दिया है.

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उत्तरकाशी से 800 किलोमीटर दूर नेपाल सीमा पर मौजूद श्रावस्ती के मोतीपुर कला गांव में आशा और निराशा के बीच झूल रहे परिजन टीवी और सोशल मीडिया पर निरंतर आ रहे सकारात्मक संकेतों के आधार पर अच्छे परिणाम की उम्मीद लगाए थे.

कुमार ने बताया कि मंगलवार शाम से जैसे-जैसे बचाव अभियान की सफलता के संकेत आ रहे थे और सुरंग के बाहर लोगों की भीड़ बढ़ रही थी, वैसा ही कुछ माहौल गांव में भी था. उन्होंने बताया कि आसपास रहने वाले रिश्तेदार और अन्य लोग, खासतौर पर थारू बिरादरी के लोग श्रमिकों के घरों में टीवी पर नजरें गड़ाए बैठे थे.

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उत्तर प्रदेश सरकार के राज्य समन्वयक अरुण मिश्र ने बुधवार सुबह उत्तरकाशी से फोन पर 'पीटीआई-भाषा' को बताया, 'हमलोग इस समय उत्तरकाशी हवाई पट्टी के नजदीक चिनयाली सोंड नामक जगह पर सरकार द्वारा बनाए गए अस्थाई शिविर अस्पताल में मौजूद हैं. यहां भर्ती उत्तर प्रदेश के आठों श्रमिक पूरी तरह से स्वस्थ हैं. सभी श्रमिकों को आज यहां से ऋषिकेश स्थित एम्स ले जाया जाएगा. वहां इन्हें मानसिक रोग विभाग में भर्ती कराकर इनकी मनोचिकित्‍सा संबंधी जांच होगी. संभवतः बृहस्पतिवार को उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी जाएगी.'

मिश्र ने बताया, “सुरंग के भीतर उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर का रहने वाला श्रमिक अखिलेश सिंह सबसे ज्यादा सक्रिय था. वह बाहर से दिए जा रहे दिशानिर्देशों के अनुसार सभी श्रमिकों को योगासन कराता था.'

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मिर्जापुर की चुनार तहसील के उपजिलाधिकारी भानु सिंह ने बताया कि अदलहाट थाना क्षेत्र के भरपुर गांव के रहने वाले 27-वर्षीय अखिलेश को लेने के लिए तहसीलदार शशि प्रताप को भेजा गया है.

अखिलेश के पिता रमेश कुमार सिंह ने बताया कि इस हादसे के बाद से ही उनके घर में सुंदरकांड और हनुमान चालीसा का पाठ हो रहा था और उनका बेटा जीवित है.

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उत्तराखंड के उत्तरकाशी में गत 12 नवंबर को यमुनोत्री मार्ग पर सुरंग का एक हिस्सा ढहने से उसमें 41 मजदूर फंस गये थे, जिन्हें मंगलवार रात बाहर निकाला जा सका.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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