बंद हुआ रेस्टोरेंट, तो वापिस बाबा का ढाबा पर लौटे कांता प्रसाद, बोले- 'हम यहीं खुश हैं...'
कुछ महीने पहले आपने दक्षिण दिल्ली के मालवीय नगर के बाबा का ढाबा की कहानी सुनी और देखी होगी. जिसमें सड़क किनारे एक छोटा सा ढाबा चलाने वाले कांता प्रसाद रातों रात मशहूर हुए क्योंकि एक फूड ब्लॉगर ने उनका एक वीडियो बनाया जिसमें 80 साल के बाबा का ढाबा के मालिक कांता प्रसाद रो रहे थे और कह रहे थे कि लोग उनके यहां खाने नहीं आ रहे हैं और उनकी दुकान नहीं चल रही है.
वीडियो वायरल होते ही लोगों ने उनकी खूब मदद की. लोगों ने लाखों रुपया दान के रुप में उनको दिया और जो पैसे से मदद नहीं कर सका उसने अन्य साधनों से बाबा कांता प्रसाद की मदद की.
लेकिन करीब 1 महीने बाद कहानी में तब एक नया मोड़ आया जब बाबा कांता प्रसाद ने उसी फूड ब्लॉगर गौरव वासन पर आरोप लगाया कि उसने पैसों की हेराफेरी की है, धोखाधड़ी की है. यह कहते हुए मालवीय नगर पुलिस थाने में शिकायत दे दी जिसके चलते फूड ब्लॉगर द्वारा वासन पर FIR दर्ज हो गई.
लेकिन इसके बाद की कहानी बहुत ही कम लोग जानते हैं. इसके बाद दिसंबर महीने में बाबा कांता प्रसाद ने अपने ढाबे से कुछ ही दूरी पर एक रेस्टोरेंट खोला. लेकिन दो महीने के भीतर ही यह रेस्टोरेंट बंद हो गया और बाबा कांता प्रसाद वापस अब अपने उसी ढाबे पर आ गए हैं जहां से उनकी कहानी की शुरुआत हुई थी.
रेस्टोरेंट से आमदनी कम, खर्च ज़्यादा था
बाबा कांता प्रसाद ने NDTV को बताया कि रेस्टोरेंट में खर्चा ज्यादा था और आमदनी कम हो रही थी. कांता प्रसाद के मुताबिक ' रेस्टोरेंट का किराया, स्टाफ़ की तनख्वाह, बिजली, पानी और अन्य खर्च मिला कर करीब 1 लाख महीने की लागत थी, जबकि आमदनी 30-45 हज़ार थी इसलिए हमने रेस्टोरेंट बंद कर दिया और वापस ढाबे पर आ गए हैं और अपने इस हाल पर खुश हैं.'
मदद के लिए आये पैसे का क्या हुआ?
कांता प्रसाद के मुताबिक वीडियो वायरल होने के बाद उनके पास कुल 45 लाख रुपये आये. जिसमें से कुछ पैसे का उन्होंने मकान बना लिया, कुछ पैसा रेस्टोरेंट में खर्च हो गया. आप उनके पास करीब 19 लाख रुपया बैंक अकाउंट में रखा हुआ है.
आरोप लगाने के लिए बरगलाया गया
कांता प्रसाद का कहना है कि उनको फूड ब्लॉगर गौरव वासन से कोई शिकायत नहीं है. उन्होंने कहा 'जिसने हमारी इतनी मदद कि हम उसके बारे में ऐसे कैसे कह सकते हैं यह उसने हमारे साथ धोखाधड़ी की. हमको बरगलाया गया और हम से कागज पर दस्तखत करवा लिए गए अगर हमको मालूम होता है कि इनके अंदर क्या लिखा है तो हम कभी दस्तखत नहीं करते. हम तो केवल यह जानना चाह रहे थे की कितना पैसा अकाउंट में आया है.'