राजस्थान में 650 करोड़ साल पहले क्या हुआ था, जब नहीं थे इंसान, अंतरिक्ष से घटी थी ऐसी विचित्र घटना

650 करोड़ साल पहले जब इस धरती पर इंसान का अस्तित्व तक नहीं था, तब भारत में एक ऐसी खगोलीय घटना घटी, जिसने राजस्थान के बारां जिले को एक अद्भुत और गौरवशाली पहचान दी. आसमान से गिरे एक विशाल उल्कापिंड के प्रहार से बनी यह भू-संरचना, जिसे आज रामगढ़ क्रेटर के नाम से जाना जाता है. बृजेश कुमार पारेता की रिपोर्ट

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कल्पना कीजिए... 650 करोड़ साल पहले की रात. धरती पर न इंसान था, न उसकी कोई सभ्यता. अचानक, अंतरिक्ष की गहराइयों से एक विशालकाय वस्तु तेजी से हमारे ग्रह की ओर बढ़ी और राजस्थान के बारां जिले से टकराई. हालांकि उस समय राजस्थान का कोई अस्तित्व नहीं था. यह सिर्फ एक टक्कर नहीं थी; यह था एक ऐसा प्रहार जिसने जमीन के सीने में 3.5 किलोमीटर चौड़ा एक घाव बना दिया, जो आज भी भारत के सबसे बड़े रहस्यों में से एक है—रामगढ़ क्रेटर! यह घटना इतनी प्राचीन है कि इसे मानव इतिहास नहीं, बल्कि पृथ्वी का इतिहास दर्ज करता है. यह क्रेटर अब भारत का पहला 'अधिसूचित भू-विरासत स्थल' है, लेकिन इसके भीतर जो रहस्य दफन हैं, वे सिर्फ भूविज्ञान की किताबों तक सीमित नहीं हैं.

अंतरिक्ष का वो वार- एक झील, दो स्वाद

रामगढ़ क्रेटर को केवल एक गोलाकार गड्ढा मत समझिए. यह वह जगह है, जहां आज भी आसमान से आए उस लोहे और पत्थरों के टुकड़े की ऊर्जा महसूस की जा सकती है. वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि क्रेटर की मिट्टी में लोहा, निकल और कोबाल्ट की सांद्रता सामान्य से बहुत अधिक है- ये वही तत्व हैं जो अक्सर उल्कापिंडों में पाए जाते हैं. क्या 650 करोड़ साल बाद भी, यह धरती उस खगोलीय टक्कर का प्रमाण अपने भीतर दबाए हुए है?

पुष्कर तालाब का चमत्कार

क्रेटर के केंद्र में मौजूद पुष्कर तालाब एक ऐसी पहेली है जो प्रकृति के विरोधाभास को दर्शाती है. यह खारे और क्षारीय जल दोनों का स्रोत है. एक ही झील में दो विपरीत स्वाद का पानी कैसे मिल सकता है?


दफन है एक किला

इस प्राचीन क्रेटर के वन क्षेत्र में एक ध्वस्त हो चुका प्राचीन किला छिपा है. यह किला किसका था? क्या यहां रहने वाले लोग क्रेटर के ऐतिहासिक महत्व को जानते थे? यह खंडहर अपने भीतर न जाने कितनी सदियों के इतिहास को समेटे हुए है.

भू-विरासत, जो उपेक्षा का शिकार

ब्रिटिश वैज्ञानिक डॉ. फ्रेडरिक मलेट ने 1865 में इसकी खोज की थी. रामगढ़ क्रेटर को 2018 में विश्व के 200वें क्रेटर के रूप में मान्यता मिली, और यह भारत के तीन प्रमाणित प्रभाव क्रेटरों (लोनार और ढाला के साथ) में से एक है. इसकी वैज्ञानिक और पुरातात्विक महत्ता निर्विवाद है. लेकिन विडंबना यह है कि यह 'पहला अधिसूचित भू-विरासत स्थल' अपने ही घर में उपेक्षा की धूल फांक रहा है. "650 करोड़ साल पुरानी यह धरोहर आज कागज़ों में ही विरासत बनकर रह गई है."


जहां विदेशी शोधकर्ता और पर्यटक इस जगह की महानता को देखने आते हैं, वहीं यहां तक पहुंचने वाला रास्ता अक्सर कीचड़ और बारिश के कारण बंद हो जाता है. सरकारों द्वारा 57 करोड़ रुपये के बड़े वादे किए गए, लेकिन जमीन पर काम नगण्य है. यहां न पर्यटकों के रहने की व्यवस्था है, न खाने की, और न ही कोई सूचना केंद्र.

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रामगढ़ क्रेटर केवल पत्थरों का एक गड्ढा नहीं है. यह अंतरिक्ष के इतिहास, धरती के निर्माण और हमारे ग्रह पर जीवन से पहले घटी सबसे बड़ी घटनाओं में से एक का जीता-जागता प्रमाण है. यह समय है कि इस अद्भुत और रहस्यमय धरोहर को कागजी सम्मान से निकालकर वह पहचान और विकास दिया जाए, जिसकी यह हक़दार है.

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