आखिर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को तानाशाह क्यों मानते हैं बाइडेन? सिंघम का क्या है कनेक्शन?

चीन बेहद चालाकी से एक पक्ष में खड़े होने का दिखावा करता है, लेकिन उसका मकसद सिर्फ और सिर्फ दुनिया की परेशानियों को और बढ़ाना है. चीन आधिकारिक रूप से इजरायल और गाजा के बीच मध्यस्थता की बात करता है. लेकिन ये बात सामने आ रही है कि अमेरिकी अरबपति नेविल रॉय सिंघम भी इसमें चीन का साथ दे रहे हैं.

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बाइडेन और शी जिनपिंग की मुलाकात सैन फ्रांसिस्को में चल रही APEC यानी एशिया-पैसेफिक इकोनॉमिक को-ऑपरेशन समिट के दौरान हुई.

नई दिल्ली:

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping)और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) ने सालभर बाद बुधवार देर रात कैलिफोर्निया में मुलाकात की. इस मुलाकात का मकसद चीन-अमेरिका में जारी तनाव को कम करना था. बाइडेन और शी जिनपिंग की मुलाकात सैन फ्रांसिस्को में चल रही APEC यानी एशिया-पैसेफिक इकोनॉमिक को-ऑपरेशन समिट के दौरान हुई. मीटिंग के दौरान दोनों देशों के मतभेद भी साफ-साफ दिखाई दिए. जिनपिंग से मुलाकात के बाद बाइडेन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इस दौरान एक रिपोर्टर ने बाइडेन से पूछा- क्या आप अब भी शी जिनपिंग को तानाशाह मानते हैं? इसके जवाब में बाइडेन ने कहा- वो तानाशाह (Dictator) हैं, क्योंकि वो एक कम्युनिस्ट देश को चलाते हैं. अब सवाल ये है कि क्या चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग वाकई में तानाशाह हैं? आइए समझते हैं कि जो बाइडेन ने चीनी राष्ट्रपति को किस आधार पर तानाशाह करार दिया.

वैसे तमाम मुद्दे हैं, जिसपर चीन अपनी मनमानी करना चाहता है. ऐसा करके वो दुनिया की नज़रों में अलग-थलग हो रहा है. इन मुद्दों में सबसे पहले ताइवान की बात करते हैं. चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है. पिछले साल तत्कालीन अमेरिका प्रतिनिधि सभा की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे का चीन ने विरोध किया था. चीन अभी भी लगातार ताइवान को डराने के लिए सैन्य अभ्यास करता रहता है. वह ताइवान पर कब्जा करने की धमकी भी देता रहता है. 

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ताइवान के चुनाव में गड़बड़ी कर सकता है चीन
हालांकि, हकीकत ये भी है कि ताइवान के प्रति दुनिया का बदलता नज़रिया चीन के कम होते दबदबे की तरफ इशारा करता है. चीन कहता तो है कि शांतिपूर्ण तरीके से ताइवान को वापस मिलाना चाहता है, लेकिन उसकी करतूतों को देखकर ऐसा बिल्कुल नहीं लगता है. इस बात की आशंका है कि ताइवान में होने वाले चुनाव में चीन गड़बड़ी कर सकता है.

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उत्तर कोरिया से दोस्ती निभाता है चीन
चीन के तमाम ऐसे फैसले हैं, जो बताती हैं कि तानाशाही क्या होती है. ताइवान के बाद उत्तर कोरिया की बात करते हैं. उत्तर कोरिया पूरी दुनिया के लिए ख़तरा बनता जाता है. लेकिन वो चीन का सबसे करीबी दोस्त है. चीन अपने दोस्त उत्तर कोरिया और इसके तानाशाह किम जोंग उन की हर तरह की मदद करता है.

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इजरायल और हमास के बीच मध्यस्थता की करता है बात
चीन बेहद चालाकी से एक पक्ष में खड़े होने का दिखावा करता है, लेकिन उसका मकसद सिर्फ और सिर्फ दुनिया की परेशानियों को और बढ़ाना है. चीन आधिकारिक रूप से इजरायल और गाजा के बीच मध्यस्थता की बात करता है. लेकिन ये बात सामने आ रही है कि अमेरिकी अरबपति नेविल रॉय सिंघम भी इसमें चीन का साथ दे रहे हैं. 

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कट्टर कम्युनिस्ट हैं सिंघम
सिंघम खुद कम्युनिस्ट विचारधारा के हैं और उनकी कंपनी चीन से पैसे लेकर उसके प्रोपगेंडा को पूरी दुनिया में फैलाने का काम करती है. ऐसा माना जा रहा है कि सिंघम फिलिस्तीन के समर्थन में अमेरिका में हो रही रैलियों के पीछे हो सकते हैं. इन रैलियों को 'द पीपुल्स फ़ोरम' ऑर्गनाइज कर रही है. नेविल रॉय सिंघम पर इसे फंडिंग करने का आरोप भी है.

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अमेरिका के न्यूज़ पोर्टल 'द फ़्री प्रेस' ने रिपोर्ट छापी है कि कैसे नेविल रॉय सिंघम ने उस संगठन का समर्थन किया, जो अमेरिका में फिलस्तीन के समर्थन में हो रहे प्रदर्शन में शामिल था.

सिंघम का भारत से भी है कनेक्शन
अमेरिकी अरबपति नेविल रॉय सिंघम का भारत से भी कनेक्शन है. न्यूज़ क्लिक मामले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में प्रवर्तन निदेशालय ने सिंघम को नोटिस भेजा था. न्यूज़ क्लिक पर चीन के लिए प्रोपगैंडा का आरोप लगा है. अमेरिका के अखबार का दावा है कि न्यूज़ क्लिक में नेविल रॉय सिंघम ने फंडिंग की है. हालांकि, ईडी का नोटिस सिंघम तक पहुंचा ही नहीं. 

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ज़्यादातर पड़ोसियों से रिश्ते ख़राब
चीन शायद दुनिया का ऐसा देश होगा, जिसके ज़्यादातर पड़ोसियों से रिश्ते ख़राब हैं. 14 देशों के साथ चीन की सीमा लगती है. लेकिन अपनी विस्तारवादी नीति की वजह से चीन के अपने पड़ोसियों के साथ रिश्ते खराब रहते हैं. चीन बार-बार भारत की सीमा में घुसने की कोशिश करता है. भारतीय सेना उसे मुंहतोड़ जवाब भी देती है. इंडोनेशिया, सिंगापुर, मलेशिया के साथ साउथ चाइना सी को लेकर चीन का विवाद है. चीन साउथ चाइना सी को अपना बताता है. कज़ाख़िस्तान के साथ भी चीन का सीमा विवाद है. किर्गिस्तान, तज़ाकिस्तान के बड़े इलाके पर चीन दावा करता है. अफगानिस्तान के बड़े इलाके पर चीन ने कई बार दावा किया है. 

पाकिस्तान के साथ चीन के रिश्ते ठीक
आज चीन-रूस के रिश्ते देखकर ये लग रहा होगा कि दोनों बहुत करीबी देश हैं. लेकिन ऐसा नहीं है. चीन तो रूस के साथ लगती कई वर्ग किलोमीटर ज़मीन पर अपना दावा जताता रहा है. रूस और चीन के बीच 1969 में सीमा विवाद को लेकर लड़ाई तक हो चुकी है. ईस्ट चाइना सी में स्थित सेनकाकु द्वीप पर जापान का शासन है, लेकिन चीन कहता है कि इस द्वीप पर उसका ऐतिहासिक अधिकार है. इसके अलावा मंगोलिया, फिलीपींस, कंबोडिया की ज़मीन पर भी चीन अपना हक जताता है. सिर्फ पाकिस्तान के साथ चीन के रिश्ते ठीक हैं. 

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चीन क्यों करता है पाकिस्तान की मदद?
चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का ड्रीम प्रोजेक्ट है. 2013 में इसकी शुरुआत हुई. इसके बनने के बाद चीन अरब सागर तक अपनी पहुंच बना लेगा. पाकिस्तान को कुछ आर्थिक मदद मिल जाएगी. इसलिए वो चीन के प्रोजेक्ट के साथ दिख रहा है. 

कमज़ोर देशों को मदद का दिखावा क्यों करता है चीन?
अब चीन की एक और चाल को समझिए. चीन लगातार कमज़ोर देशों को मदद का दिखावा करता है. पिछले पांच साल में चीन 35 देशों को हथियार एक्सपोर्ट कर रहा है. इसे खरीदने वालों में ज़्यादातर कम आय वाले देश हैं. कहा जाता है कि चीन के हथियार निर्यात का तीन चौथाई हिस्सा पाकिस्तान और म्यांमार को जाता है. हालांकि, चीन मुफ्त में इन देशों की मदद नहीं करता है. वो इसके बदले में उस देश में अपनी गतिविधियों को बढ़ाने की कोशिशें करता है. श्रीलंका इसका ताजा उदाहरण है.

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श्रीलंका में चीन ने क्या किया?
श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को चीन ने 99 साल के लिए लीज़ पर लिया है. ये दक्षिणी श्रीलंका में पूर्व-पश्चिम समुद्रीमार्ग के करीब है. इस बंदरगाह का निर्माण 2008 में शुरू हुआ था. चीन ने तब श्रीलंका को 1.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कर्ज दिया था. श्रीलंका की आर्थिक हालत बिगड़ी, तो इसका फायदा उठाकर चीन ने हंबनटोटा बंदरगाह पर कब्जे की कोशिश की. 

अब श्रीलंका को बचाने के लिए सामने आया अमेरिका 
इस मुश्किल घड़ी में अमेरिका श्रीलंका की मदद करने के लिए सामने आया है. अमेरिका के इंटरनेशनल डेवलपमेंट फ़ाइनेंस कॉरपोरेशन ने कोलंबो में कंटेनर टर्मिनल प्रोजेक्ट में 533 मिलियन डॉलर के निवेश की घोषणा की है.  
अमेरिका को उम्मीद ये बंदरगाह चीन के प्रभाव को कम करेगा.

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