यूक्रेन जाने वाले मालवाहक जहाजों को रूस ने क्यों दी धमकी? जानें - आखिर क्या है इसकी वजह 

रूस आरोप लगा चुका है कि यूक्रेन ब्लैक सी का इस्तेमाल सैन्य मक़सदों के लिए कर रहा है. इसी वजह से रूस ने कारगो जहाज़ों को निशाना बनाने की धमकी दी है.

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रूस ने यूक्रेन जाने वाले कार्गो जहाजों को दी चेतावनी
नई दिल्ली:

रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच रूस ने उन कार्गो जहाजों पर सैन्य हमले की धमकी दी है जो यूक्रेन जाने वाले रास्ते पर दिखेगा. रूस का कहना है कि वह ऐसा मानेगा कि ये कारगो जहाज यूक्रेन के लिए सैन्य साजो-सामान लेकर जा रहा है. आइये जानते हैं कि आखिर रूस ने ऐसी धमकी दी क्यों है...

रूस और यूक्रेन के बीच ब्लैक सी के ज़रिए अनाज के निर्यात को लेकर जो समझौता हुआ था सोमवार को रूस उससे पीछे हट गया. रूस की दलील है कि काला सागर अनाज समझौते के तहत यूक्रेन को अनाज तो निर्यात हो रहा था लेकिन हमे अनाज और फ़र्टिलाइज़र निर्यात नहीं करने दिया गया. रूस ने इसके लिए अमेरिका और पश्चिमी देशों को ज़िम्मेदार ठहराया है.
रूस आरोप लगा चुका है कि यूक्रेन ब्लैक सी का इस्तेमाल सैन्य मक़सदों के लिए कर रहा है. इसी वजह से रूस ने कारगो जहाज़ों को निशाना बनाने की धमकी दी है.इससे पहले अमेरिका की तरफ़ से एक बयान आया कि रूस नागरिक जहाज़ों को निशाना बना कर उसे यूक्रेन के मत्थे मढ़ सकता है. दरअसल, रूस के अनाज समझौते से निकलने के बाद अमेरिका, पश्चिमी और यूएन सब ने रूस को आड़े हाथों लिया है.

बता दें कि फ़रवरी 2022 में यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद यूक्रेन के बंदरगाहों के आसपास रूसी सेना ने घेरा डाल दिया. इससे काला सागर के रास्ते यूक्रेन का अनाज निर्यात रूक गया. क़रीब दो करोड़ टन अनाज फंस जाने की वजह से दुनिया में इसके दाम में भारी इज़ाफ़ा होने लगा. इससे अफ़्रीका और मध्यपूर्व के उन देशों में अनाज संकट पैदा होने लगा जो यूक्रेन से आयात पर निर्भर हैं.

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संयुक्त राष्ट्र और तुर्की की मध्यस्थता में पिछले साल जुलाई में रूस और यूक्रेन के बीच अनाज निर्यात का समझौता हो गया. इसके बाद काला सागर के रास्ते मालवाहक जहाज़ यूक्रेन के ओडेसा और कोर्नोमोर्स्क जैसे बंदरगाहों से अनाज ढोने लगे. इस समझौते के बाद यूक्रेन ने क़रीब तीन करोड़ टन गेहूं का निर्यात किया. ग़ौरतलब है कि यूक्रेन गेहूं, मक्का, बाजरा और सूरजमुखी का बहुत बड़ा निर्यातक है. 

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समझौता तोड़ने के पीछे रूस की दलील है कि इस समझौते के तहत उस को जो मदद मिलनी थी उस पर पश्चिमी देशों ने अमल नहीं किया. मतलब ये कि ये समझौता एकतरफ़ा तौर पर लागू हुआ. और जैसा कि वादा किया गया था उसके मुताबिक़ रूस को इससे कोई फ़ायदा नहीं हुआ. रूस के राष्ट्रपति पुतिन की शिकायत रही है कि रूस को अपने खाद्य पदार्थ और उर्वरक को निर्यात नहीं करने दिया जा रहा. रूस ने पहले भी समझौता तोड़ने की धमकी दी थी और नवंबर में इससे बाहर भी आ गया था लेकिन फिर समझौते में बना रहा.

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आख़िर रूस क्या चाहता है?

रूस चाहता है कि उसके कृषि बैंक को स्विफ्ट व्यवस्था के तहत जोड़ लिया जाए जिससे उसे दुनिया के बैंको के साथ लेन देन में सहूलियत हो. रूस खेती की मशीनों के लिए रखरखाव के कलपुर्जे भी हासिल करना चाहता है. कुल मिला कर वह अपने ऊपर लगे प्रतिबंधों में राहत चाहता है. ऐसा नहीं हुआ इसलिए वह समझौते से बाहर आ गया है.

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यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने अनाज निर्यात के लिए वैकल्पिक मार्ग अपनाने की बात की है लेकिन वह इतना सुगम नहीं होगा. तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन ने कहा है कि अगली मुलाक़ात में रूस के राष्ट्रपति पुतिन को फिर इस समझौते के लिए राज़ी करने की कोशिश करेंगे.

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