राजा खुश हुआ और घोड़े से नपवाकर दान दे दी जमीन, जानें पोलैंड के तातार मुस्लिमों की कहानी

तातार मुस्लिम (Poland Tatar Muslims) दूसरे मुस्लिमों से अलग हैं, उनका रहन-सहन और तौर तरीके उनको दूसरों से अलग बनाते हैं. उन पर कैथोलिक धर्म का असर इस कदर है कि वह क्रिसमस पर क्रिसमस ट्री खरीदते हैं. मक्का जाने के बजाय वह आम तौर पर उन जगहों पर जाना पसंद करते हैं. जहां पर उनके पवित्र पूर्वजों को दफनाया गया था.

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दिल्ली:

जवाहर लाल नेहरू (1955), इंदिरा गांधी (1967) और मोरारजी देसाई (1979) के बाद पीएम नरेंद्र मोदी पोलैंड में हैं. तीन करोड़ की आबादी वाले यूरोप के इस बहुरंगी संस्कृति वाले मुल्क में काफी कुछ खास है. पोलैंड में मुस्लिमों की आबादी करीब 25 -30 हजार है. इसमें तातार मुस्लिमों (Poland Tatar Muslims) की बात करें तो ये महज 2 हजार के करीब है. पोलैंड में तातार मुस्लिम हमेशा ही अल्पसंख्यक रहे हैं. तातार तुर्क और मंगोलों के वंशज माने जाते हैं. ये कद, काठी और खाने-पीने में दूसरे मुस्लिमों से अलग हैं. इनको ये सब अपने पूर्वजों से विरासत में मिला है. तातार मुस्लिम 600 सालों से पोलैंड के लिए लड़ते आ रहे हैं. पोलैंड में तातार मुस्लिमों के बसने की कहानी अनूठी है. तातार मुस्लिम कब और कैसे आए, इसके पीछे कई कहानियां हैं. लेकिन एक कहानी बहुत ही रोचक है. 

कहा जाता है कि तातार मुस्लिम 14वीं शताब्दी में पोलैंड आए थे. एक बहुत ही रोचक कहानी राजा जान तृतीय सोबिस्की से जुड़ी है. कहा जाता है कि राजा जान तृतीय सोबिस्की तातार सेना के एक घुड़सवार कैप्टन से इतने खुश हो गए कि उसको उतनी जमीन दे दी, जितनी वह एक दिन में घोड़े पर बैठकर नाप सकता था. पोलिश-लिथुआनियाई सेना के साथ लड़ने के बदले में तातारों को बेलस्टॉक शहर के आसपास के 150 किलोमीटर से ज्यादा जगह में फैली जमीन दे दी गई. यहां पर अलग-अलग संस्कृतियों के लोग रहते थे.

राजा ने कहा कि तुम घोड़े पर बैठकर एक दिन में जितनी जमीन नाप लोगे, वो तुम्हारी. बस फिर क्या था उस कैप्टन ने जमीन नाप डाली. इस तरह से पोलैंड में तातारों की एंट्री हुई. 

कहानी 14वीं शताब्दी के उस दौर की है, जब ट्यूटनिक शूरवीरों के खिलाफ युद्ध चल रहा था. उस दौरान तातार सेना ने अपने शौर्य का ऐसा परिचय दिया कि लिथुआनिया के ग्रैंड ड्यूक विटौटास खुश हो गए. उन्होंने तातार मुस्लिमों की सैन्य सेवाओं की जमकर तारीफ की. जिसके बाद उनको शरण देने की भी पेशकश कर दी. इनमें ज्यादातर लोग राजनीतिक रूप से निर्वासित गोल्डन होर्डे और क्रीमिया के बुजुर्ग थे. जिनको अपना समुदाय छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था.

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AI से ली गई फोटो.

तातारों की बहादुरी और उनके युद्ध कौशल के चर्चे 15वीं शताब्दी में पोलैंड और लिथुआनिया में खूब होते थे. इसका बड़ा उदाहरण 1410 में ग्रुनवल्ड की वह लड़ाई है, जिसे तातारों ने बहुत ही वीरता से लड़ा था. कहा जाता है कि इसके बाद से तातार मुस्लिमों को पोलिश सेना के साथ लड़ने के लिए इनाम के रूप में नाइटहुड, हथियारों के साथ ही जमीन के साथ मुआवजा भी दिया. 17वीं शताब्दी में वो वक्त भी आया जब पोलिश के एलीट क्लास ने तातार मुस्लिमों के अधिकारों पर सवाल उठाया और उनके सैनिकों को उनका सही मेहनताना नहीं दिया. 

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पोलिश इतिहास में, तातार लोग 600 सालों से पोलैंड के लिए लड़ते रहे हैं, ग्रुन्वाल्ड की लड़ाई से साल1939 तक पोलिश सेना की अलग तातार इकाइयों के रूप में उन्होंने जंग लड़ी. 

तातार मुस्लिम कितनी तरह के हैं?

पोलैंड में चार तरह के तातार मुसलमान हैं. लिप्का तातार मुस्लिम, पोलिश तातार, लिपकोवी और मुस्लीमी तातार. पोलैंड में तातार ट्रेल की अगर बात करें तो ये बेलस्टॉक, सोकोल्का, बोहोनिकी, क्रिंकी, क्रुस्ज़िनियानी, क्रिंकी और सुप्राल में रहते हैं. यह इलाका सिर्फ 150 किमी लंबा है. दूर दराज से लोग इन इलाकों को देखने पहुंचते हैं. 

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AI से ली गई फोटो.

तातार मुस्लिम दूसरे मुस्लिमों से कितने अलग?

तातार मुस्लिम दूसरे मुस्लिमों से अलग हैं, उनका रहन-सहन और तौर तरीके उनको दूसरों से अलग बनाते हैं. उन पर कैथोलिक धर्म का असर इस कदर है कि वह क्रिसमस पर क्रिसमस ट्री खरीदते हैं. मक्का जाने के बजाय वह आम तौर पर उन जगहों पर जाना पसंद करते हैं. जहां पर उनके पवित्र पूर्वजों को दफनाया गया था. ये लोग  अरबी भाषा भी नहीं बोलते हैं. हालांकि उनकी युवा पीढ़ी अब अरबी पढ़ने लगी है.

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तातार मुस्लिम तातारहुड का पालन करते हैं. वह अपने समुदाय के भीतर ही शादी-विवाह करते हैं, यह उनकी अहम प्रथा है. शारीरिक बनावट की बात करें तो तातार मुस्लिमों की आंखे थोड़ी झुकी हुई, ठोस गाल, मोटा कद और रंग सांवला होता है.    
 

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