फ्रांस के एक नेता को अमेरिका से करारा जवाब मिला है. नेता ने अमेरिका से स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी वापस मांगी तो अमेरिकी राष्ट्रपति के ऑफिस, व्हाउस हाउस ने पलटकर जवाब दे दिया. व्हाइट हाउस ने सोमवार, 17 मार्च को स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी को वापस लौटाने की यूरोपीय संसद के एक फ्रांसीसी सदस्य की मांग को खारिज कर दिया और कहा कि अगर द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका मदद नहीं करता तो फ्रांस के लोग "जर्मन बोल रहे होते.” इशारा साफ था कि अमेरिका साथ देने नहीं आता तो फ्रांस पर जर्मनी का कब्जा हो जाता.
"बिल्कुल नहीं," कैरोलिन लेविट ने सवाल के जवाब में मुस्कुराते हुए कहा. उन्होंने कहा, "और, उस अनाम, लो-लेवल के फ्रांसीसी राजनेता को मेरी सलाह है कि उन्हें याद दिलाएं कि सिर्फ अमेरिका के कारण ही फ्रांसीसी अभी जर्मन नहीं बोल रहे हैं.. इसलिए उन्हें हमारे महान देश के प्रति बहुत आभारी होना चाहिए."
गौरतलब है कि यह मांग राफेल फ्रांसीसी नेता ग्लक्समैन ने की थी जो यूरोपीय संसद में फ्रांस के सदस्य हैं. रविवार को अपनी पब्लिक प्लेस पार्टी के समर्थकों को संबोधित करते हुए उन्होंने अमेरिका से कहा था कि हमें स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी वापस दे दो. ग्लुक्समैन ने कहा, "यह आपको हमारा उपहार था. लेकिन जाहिर तौर पर आप उसका तिरस्कार करते हैं. इसलिए वह यहां हमारे साथ खुश होगी."
यूनेस्को की विश्व धरोहर की सूची में स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी शामिल है. 1865 में फ्रांसीसी एडौर्ड डी लाबौले ने फ्रांस के लोगों की ओर से अमेरिका के लोगों को एक स्मारकीय उपहार पेश करने का विचार प्रस्तावित किया था. फ्रांसीसी लोगों ने फंड दिया और 1875 में फ्रांस में काम शुरू हुआ.