जब चापलूसी ही विदेश नीति बन जाए... अपने ही घर में घिर गए पाकिस्‍तान के पीएम शहबाज

इस आर्टिकल को अहमद सज्जाद मलिक ने लिखा है और वह यूके में रेवेन्‍यू एंड कस्‍टम्‍स के साथ जुड़े हैं. उन्‍होंने लिखा है इजिप्‍ट में हुई समिट में जैसे ही पीएम शहबाज शरीफ ने माइक्रोफोन संभाला तो माहौल बदल गया.

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  • पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इजिप्ट में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की जोरदार तारीफ की.
  • उन्होंने ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया और भारत-पाकिस्तान परमाणु युद्ध टालने का श्रेय दिया.
  • पाकिस्तानी अखबार द डॉन में शहबाज की चापलूसी को बेतुकी और कूटनीतिक मानदंडों के खिलाफ बताया गया है.
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नई दिल्‍ली:

सोमवार को इजिप्‍ट के शहर शर्म-अल-शेख में माहौल बिल्‍कुल किसी समिट का था. यहां पर पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ भी पहुंचे थे. शहबाज ने फिर अपने उसी पुराने अंदाज में अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप की तारीफ की और उन्‍हें एक बार फिर नोबेल शांति पुरस्‍कार के लिए नॉमिनेट कर डाला. लेकिन अब उनकी इसी अदा को उनके मुल्‍क में चापलूसी करार दिया जा रहा है. पाकिस्‍तान के अखबार द डॉन में आए एक आर्टिकल में प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के शब्‍दों और उनकी तारीफ का विश्‍लेषण किया गया है. हालांकि इसी आर्टिकल में यह भी कहा गया है 'चापलूसी वाली रणनीति' से शरीफ ने वह, हासिल कर लिया जो दुनियाभर में चर्चा का विषय बन गई है. 

शहबाज की हरकत बनी सुर्खियां  

इस आर्टिकल को अहमद सज्जाद मलिक ने लिखा है और वह यूके में रेवेन्‍यू एंड कस्‍टम्‍स के साथ जुड़े हैं. उन्‍होंने लिखा है, 'इजिप्‍ट के शर्म अल-शेख में हुई समिट में जैसे ही पीएम शहबाज शरीफ ने माइक्रोफोन संभाला तो माहौल बदल गया, गंभीरता की जगह तमाशा छा गया. गाज़ा के भविष्य पर चर्चा के लिए विश्व नेताओं की बैठक से पहले, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने कोई अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की जमकर तारीफ की. उन्होंने ट्रंप को 'शांति पुरुष' कहा और नोबेल पुरस्कार के लिए नॉमिनेट करने की बात कही. साथ ही भारत-पाकिस्तान के बीच परमाणु वॉर टालने का श्रेय उन्हें दिया. ट्रंप भी आत्मसंतुष्टि से भरी मुस्कान के साथ देख रहे थे, जबकि बाकी हॉल अविश्वास और हैरानी के बीच मानो जम गया. तालियों की गड़गड़ाहट में भी  झिझक थी और यही हरकत तुरंत दुनिया की सुर्खियां बन गई. 

बेलगाम चापलूसी का मुकाबला नहीं 

मलिक के अनुसार पारंपरिक कूटनीतिक मानदंडों के अनुसार पीएम की टिप्पणियां बेतुकी थीं. उन्‍होंने लिखा, 'उस कमरे में मौजूद किसी भी नेता ने, न सिसी, न मैक्रों, न एर्दोआन, उस बेलगाम चापलूसी के लहजे का मुकाबला नहीं किया. बहुपक्षीय गंभीरता के लिए बने एक मंच पर, प्रधानमंत्री की अति तारीफ नाटकीय तौर पर बेतुकी, करीब हास्य-व्यंग्य जैसी लग रही थी. फिर भी, विडंबना यह है कि यह कारगर रही, कम से कम उस सुनने वाले के लिए जो सबसे ज्‍यादा मायने रखता था, खुद डोनाल्ड ट्रंप.' 

बेतुकी बातें ही बनीं सफलता 

सज्‍जाद मलिक के अनुसार ट्रंप के लिए शहबाज के शब्‍द शर्मनाक नहीं बल्कि एनर्जी बूस्‍टर की तरह थी. मलिक तो यहां तक लिख गए कि चापलूसी ट्रंप के लिए धोखा नहीं हैं. मलिक के मुताबिक, शहबाज ने जो कुछ कहा उसे राजनीति के मनोविज्ञान में 'आत्ममुग्ध पुरस्कार चक्र' कहते हैं, यानी एक ऐसा रिएक्‍शन जिसके जरिये से प्रशंसा, चाहे उसका सार कुछ भी हो, मदद को मजबूत करती है. उनके अनुसार प्रधानमंत्री ने भले ही पाकिस्तान के रणनीतिक हितों को आगे नहीं बढ़ाया हो, लेकिन उन्होंने उतना ही प्रभावशाली कुछ हासिल किया. उन्होंने खुद को, और विस्तार से पाकिस्तान को, ट्रंप के शांति के भाषण में प्रासंगिक बना दिया. भाषण की बेतुकी बात ही उसकी सफलता का तंत्र बन गई. 
 

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