महान अंतरिक्ष यात्री जिम लवेल का निधन, किशोर रॉकेट साइ‍ंंटिस्‍ट से चांद के पार जाने तक, ऐसा रहा जीवन

जिम लवेल दो बार चंद्रमा के बेहद करीब गए. धरती को अंतरिक्ष से जाना-समझा. अपने जीवन में बेहद कठिन परिस्थितियों से जूझकर धरती पर वापस लौटे. उनका जीवन स्‍पेस साइंस में रुचि रखने वालों के लिए प्रेरणा है. 

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  • किशोरावस्था में रॉकेट विज्ञान में रुचि लेकर अस्थाई रॉकेट बनाने से जिम लवेल की स्‍पेस साइंस की यात्रा शुरू हुई.
  • अपोलो 13 मिशन में जिम लवेल ने संभावित त्रासदी को सफल मिशन में बदलकर अंतरिक्ष यात्रा का इतिहास रच दिया.
  • जिम लवेल की जीवन कहानी पर आधारित फिल्म लास्ट मून 1995 में रिलीज हुई, जिसमें टॉम हैंक्स ने उनकी भूमिका निभाई.
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Jim Lovell: तब उनकी उम्र महज 16 साल रही होगी. बारूद बनाने के लिए उनके पास जरूरी रसायन/केमिकल्‍स थे. अपने साइंस टीचर की मदद से उन्‍होंने एक अस्‍थाई रॉकेट बना डाला. वेल्डिंग करते समय इस्‍तेमाल होने वाला हेलमेट पहना और रॉकेट में आग झोंक कर पीछे भाग लिए. वो रॉकेट करीब 40 फीट तक ऊपर गया और फिर फट पड़ा. इससे वो घबराए नहीं, बल्कि रॉकेट साइंस की ओर उनकी दिलचस्‍पी और बढ़ गई. ऐसी बढ़ी कि आगे चलकर उनका नाम अमेरिका के प्रसिद्ध अंतरिक्ष यात्रियों में शुमार हो गया. अमेरिकी स्‍पेस एजेंसी नासा के कई अंतरिक्ष मिशन में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाने वाले जिम लवेल अब उन्‍हीं सितारों के बीच चले गए. 97 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया. 

संभावित त्रासदी को सफल मिशन बनाने का श्रेय 

नासा ने उनके योगदान को याद करते हुए कहा कि 1970 में अपोलो 13 मिशन की धरती पर सुरक्षित वापसी में जिम लवेल का अहम रोल था. उन्‍होंने एक संभावित त्रासदी को सफल मिशन में बदल दिया था. उस समय चंद्रमा पर उतरने का प्रयास एक विस्‍फोट के कारण रद्द हो गया था, जब उनका अंतरिक्षयान धरती से लाखों मील दूर था. लाखों लोग टीवी पर इस घटना को देख रहे थे, जब लवेल और उनके दो साथी पेसिफिक महासागर में सुरक्षित उतरे और ये क्षण अंतरिक्ष यात्रा के इतिहास में सबसे यादगार बन गया. जिम लवेल अपोलो 8 मिशन के भी सदस्य थे. वो चंद्रमा के करीब दो बार गए लेकिन चंद्रमा पर नहीं उतरे.  

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मुफलिसी के बीच पले-बढ़े, पूरा किया सपना  

25 मार्च 1928 को जन्‍मे जेम्स आर्थर लवेल जूनियर ने बचपन में ही कार दुर्घटना के चलते पिता को खो दिया था. ऐसे में उनकी मां ने काफी जतन से परिवार का पालन-पोषण किया. परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी थी कि वो कॉलेज तक भी नहीं पहुंच पाते. ऐसे में लवेल ने अमेरिकी नेवी में शामिल होने का फैसला लिया. उन्होंने नेवी अकादमी अन्नापोलिस में प्रवेश लिया और कोरियाई युद्ध के दौरान अपनी पढ़ाई पूरी की. नेवी उन्हें पायलट बनाने की भी ट्रेनिंग देती थी. 

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लवेल ने अपने पढ़ाई के दौरान रॉकेट साइंस में गहरी रुचि दिखाई. शुरुआत में उन्हें मौके भी मिले. करीब 30 वर्ष की आयु में साल 1958 में, उन्होंने पहली बार नासा के लिए आवेदन किया. हालांकि मेडिकल के दौरान वे छंट गए. 4 साल बाद 1962 में वो नासा की 'न्यू नाइन' में चुने गए, जो चंद्रमा पर अमेरिका के पहले कदम के मिशन में शामिल हुए.

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चांद के पार गए, दिखाई धरती की तस्‍वीर 

अपोलो 8 मिशन के दौरान, लवेल अपने दो अन्‍य साथी के साथ अंतरिक्ष में 25,000 मील/घंटे की रफ्तार से चंद्रमा के पार गए. वहां से उन्होंने पृथ्वी का अद्भुत दृश्य देखा, जिसे 'अर्थराइज' कहा गया. उन्होंने दुनियाभर के लोगों को ये दिखाया कि पृथ्वी कितनी सुंदर है. 1969 में, नासा ने नील आर्मस्ट्रांग और बज एल्ड्रिन को चंद्रमा पर भेजा, जो तब तक का सबसे बड़ा इंसानी मिशन था. 

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जब असंभव को संभव कर दिखाया 

1970 में जिम लवेल अपोलो 13 मिशन के कमांडर बने. उनका यान चंद्रमा पर उतरने ही वाला था, लेकिन एक दुर्घटना में यान में विस्फोट हो गया, जिससे उनका मिशन लगभग असफल हो गया. यान की ऑक्सीजन टंकी में समस्या आ गई थी. जमीन पर उतरने के लिए लवेल और उनकी टीम ने चंद्रमा की लूनर मॉड्यूल का इस्तेमाल किया, लेकिन इसमें गर्मी से बचाने का कवच नहीं था, इसलिए इसे धरती पर फिर से प्रवेश के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था. उन्होंने उस मॉड्यूल में रहकर मुश्किल परिस्थितियों में जीवन रक्षा की. तापमान नीचे गिर गया, खाना और पानी कम हो गया, पर वे लड़ते रहे. आखिरकार, वे सफलतापूर्वक धरती पर वापस आए.  

लवेल की लाइफ पर बनी फिल्‍म 

1973 में लवेल, नेवी से रिटायर हुए और शांति से जीवन बिताया. उनकी कहानी पर 'लास्‍ट मून' नाम से फिल्‍म भी बनी, जो 1995 में रिलीज हुई. इसमें टॉम हैंक्स ने उनकी भूमिका निभाई. जिम लवेल दो बार चंद्रमा के बेहद करीब गए. धरती को अंतरिक्ष से जाना-समझा. अपने जीवन में बेहद कठिन परिस्थितियों से जूझकर धरती पर वापस लौटे. उनका जीवन स्‍पेस साइंस में रुचि रखने वालों के लिए प्रेरणा है. 

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