श्रीलंका में विदेशी निवेश के माहौल पर अमेरिकी विदेश मंत्रालय की एक अहम रिपोर्ट आई है. इन्वेस्टमेंट क्लाइमेट स्टेटमेंट्स-2025 नाम की इस रिपोर्ट में श्रीलंका के निवेश माहौल को काफी चुनौतीपूर्ण करार दिया है. अस्थिर-अनिश्चित नीतियां, अफसरशाही, पेचीदा नियम-कानूनों के पेच आदि को इसकी वजह बताया है.
अदाणी ग्रीन ने छोड़ा था प्रोजेक्ट
अदाणी ग्रुप की कंपनी अदाणी ग्रीन एनर्जी ने इस साल फरवरी में श्रीलंका में अपने बड़े पवन ऊर्जा प्रोजेक्ट से हाथ खींच लिए थे. यह 400 मिलियन डॉलर का बड़ा प्रोजेक्ट था. अमेरिकी रिपोर्ट के मुताबिक, कंपनी ने प्रोजेक्ट से हटते हुए जो वजहें बताई थीं, उनमें श्रीलंका में सरकारी रवैये और तय हो चुकी शर्तों पर फिर से सौदेबाजी करना शामिल था.
सरकार की चुनौती फुस्स, प्रोजेक्ट अटका
अमेरिकी विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया है कि अदाणी ग्रीन ने दो साल के मोलभाव के बाद श्रीलंका को 8.26 अमेरिकी सेंट्स का काफी कंपटीटिव रेट ऑफर किया था. रकम भी श्रीलंकाई रुपये में दी जानी थी ताकि अतिरिक्त बोझ न पड़े. लेकिन श्रीलंका 5 सेंट का रेट चाहता था. अदाणी ग्रीन ने इस रेट पर प्रोजेक्ट बनाने में असमर्थता जताई तो सरकार ने पब्लिकली कहा था कि वह इस रेट पर ठेका देकर दिखाएंगे. हालांकि सच्चाई ये है कि अभी तक ये प्रोजेक्ट कोई और बनाने को तैयार नहीं है.
टॉप-3 कंपनी बनी अदाणी ग्रीन
अमेरिकी रिपोर्ट में कहा गया है कि अदाणी की कंपनी ने इस रकम को भारत जैसे अन्य फायदेमंद जगहों पर निवेश किया और अपनी रिन्यूएबल एनर्जी क्षमता का विस्तार किया. आज वह 15 गीगावॉट से अधिक का उत्पादन करता है और दुनिया के टॉप 3 अक्षय ऊर्जा उत्पादकों में से एक है. इस क्षेत्र में ग्रुप का निवेश एक अरब डॉलर से अधिक हो चुका है. इसमें ट्रांसमिशन लाइनों पर निवेश भी शामिल है.
निवेशकों के मोहभंग की वजह
अमेरिकी विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट में बताया गया है कि श्रीलंका में विदेशी कंपनियों के लिए काम करना कितना मुश्किल है. निवेश माहौल को चुनौतीपूर्ण बताते हुए अस्थिर- अनिश्चित नीतियां, कानूनी पेचीदगियां, अफसरशाही जैसी वजहें गिनाई गई हैं. इसके अलावा ऊंची लागत, पारदर्शिता की कमी, बेवजह के नियमों का जाल और अफसरों के ढीले रवैये को भी जिम्मेदार बताया है.
श्रीलंका में निवेशकों की चुनौतियां
- मंजूरी की लंबी प्रक्रियाः अमेरिकी रिपोर्ट के मुताबिक, श्रीलंका के इन्वेस्टमेंट बोर्ड (BOI) के अधिकार कई सरकारी विभागों में बंटे हैं, जिससे वह "वन-स्टॉप सेंटर" नहीं बन पा रहा है. इससे मंज़ूरी की प्रक्रिया लंबी हो जाती है.
- अनिश्चितता: निवेशक प्रोजेक्टों के बदलने, नियमों में लगातार बदलाव, फैसला लेने की धीमी प्रक्रिया के अलावा पहले से स्थापित बिजनेस को अपर्याप्त सपोर्ट जैसी चिंताएं जताते हैं.
- निजीकरण ठप: घाटे में चल रहे सरकारी उद्यमों खासकर सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड का निजीकरण रुका हुआ है. इससे उद्योगों को चलाने के लिए किफायती दर पर बिजली नहीं मिल पा रही है. कई अन्य निजीकरण प्रस्ताव भी ठप हैं.
- अफसरशाही रवैयाः श्रीलंका सरकार निवेश को लेकर पॉजिटिव बयान देती है, लेकिन कुछ वरिष्ठ अधिकारी लगातार प्राइवेट सेक्टर को हतोत्साहित करते हैं और सरकारी समूहवाद के जरिए निवेश को बढ़ावा देने का प्रयास करते हैं.
श्रीलंका 2022 के आर्थिक संकट से उबर रहा है. 2024 में उसकी जीडीपी 5 पर्सेंट तक पहुंच गई थी, जो उम्मीद से कहीं ज्यादा है. राजनीतिक स्थिरता भी आई है. लेकिन निवेश का माहौल काफी चुनौतीपूर्ण बना हुआ है. श्रीलंका में एफडीआई 3 से 5 मिलियन डॉलर की रेंज में है. सरकार ने 2025 के लिए 5 अरब डॉलर का टारगेट रखा है.
अमेरिकी रिपोर्ट में कहा गया है कि श्रीलंका में निवेश करने से कई निवेशक अब भी हिचक रहे हैं. अनुभवी निवेशक बड़े निवेश से पहले नीतिगत स्थिरता, नियामकीय सुधार और बेहतर पारदर्शिता पर जोर दे रहे हैं. आईएमएफ और श्रीलंका के स्थानीय बिजनेस चैंबर भी सरकारी रवैये से खुश नहीं हैं और समग्र सुधार की मांग उठा हैं.
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