काबुल एयरपोर्ट के हालात देख पेंटागन में बैठे अमेरिकी सैन्य अधिकारी कड़वा घूंट पीकर रह गए

सोशल मीडिया पर पोस्ट किए वीडियो में काबुल में दहशत और भय का माहौल दिख रहा है. अमेरिकी सैन्य विमान के बगल में दौड़ती भीड़ वाला वीडियो भी इसमें शामिल है, लोग विमान के साथ ऐसे भागते दिख रहे हैं, जैसे भीड़ चलती ट्रेन में चढ़ने की कोशिश कर रही हो.

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काबुल एयरपोर्ट पर अराजकता का माहौल था...
वाशिंगटन:

अमेरिका स्थित पेंटागन के गलियारों में सोमवार को उदासी का माहौल था, जहां अमेरिकी सैन्यकर्मियों ने काबुल हवाईअड्डे पर असहाय नागरिकों और अराजकता को देखा. साथ ही अमेरिका के सहयोगी रहे अफगानों को निकालने में बाइडेन प्रशासन की धीमी गति की भी निजी तौर पर आलोचना की. पिछले दो महीने से तालिबान के खतरे में अपने जीवन को बचाने की प्रतीक्षा करते इन लोगों को लेकर कुछ ने तो विदेश विभाग की भी आलोचना की, जिनके पास पूर्व दुभाषियों और अमेरिकी सैनिकों के सहायक स्टाफ और उनके परिवारों को वीजा देने का एकमात्र अधिकार है. 

सोशल मीडिया पर पोस्ट किए वीडियो में काबुल में दहशत और भय का माहौल दिख रहा है. अमेरिकी सैन्य विमान के बगल में दौड़ती भीड़ वाला वीडियो भी इसमें शामिल है, लोग विमान के साथ ऐसे भागते दिख रहे हैं, जैसे भीड़ चलती ट्रेन में चढ़ने की कोशिश कर रही हो. एक सैन्य अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, हमने इस बारे में चेतावनी दी थी. एक अन्य अधिकारी ने टिप्पणी की  कि मैं नाराज नहीं, निराश हूं. इस पूरे मामले को अलग तरीके से संभाला जा सकता था.

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अप्रैल के मध्य में फैसला लिया था कि 11 सितंबर तक सभी सैनिकों को अफगानिस्तान से बाहर निकाल लिया जाएगा, हालांकि बाद में उन्होंने तारीख की बढ़ाकर अगस्त 2021 तक कर दिया था.

एएफपी द्वारा इंटरव्यू में पेंटागन के एक अन्य अधिकारी ने कहा कि राजनयिकों ने वीजा प्रक्रिया को तेज करने की कोशिश की थी, लेकिन अफगानिस्तान की परिस्थितियों के चलते प्रक्रिया बहुत लंबी और जटिल हो गई. उन्होंने कहा कि बाइडेन प्रशासन ने मान लिया था कि काबुल में अमेरिकी दूतावास खुला रहेगा और अमेरिका की वापसी के बाद महीनों तक अफगान सरकार देश पर नियंत्रण बनाए रखेगी.

गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि वह अमेरिकी सैनिकों की वापसी के फैसले के साथ हैं. अमेरिका ने 20 सालों तक अफगानिस्तान में काम किया और 3 लाख अफगान सैनिकों को तैयार किया, लेकिन भ्रष्टाचार ने उस देश को भी कमजोर किया. सेना ने बिना लड़े ही हार मान ली और अफगानी राष्ट्रपति भी बिना लड़े ही देश छोड़कर भाग गए.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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