ट्रंप का ₹88 लाख वाला H-1B 'वीजा बम' आज से लागू, अब कंफ्यूजन हुआ दूर- जानिए किसे मिलेगी छूट?

US H-1B Visa New Fess: अमेरिकी कंपनियां भारत जैसे देशों से एक्सपर्ट प्रोफेशनल्स को इसी वीजा के जरिए अमेरिका ले जाकर काम कराती हैं. एच-1बी वीजा 3 साल के लिए मिलता है, जिसे 3 साल और बढ़ाया जा सकता है.

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  • अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने H-1B वीजा पर एक लाख डॉलर की नई फीस 21 अक्टूबर से लागू कर दी है
  • सरकारी शटडाउन के कारण डॉक्यूमेंट लेने में हो रही देरी को असाधारण परिस्थिति माना जाएगा और माफी दी जा सकती है
  • FY 2026 के लिए H-1B वीजा की नियमित सीमा पूरी- 65 हजार सामान्य और 20 हजार मास्टर डिग्री कैटेगरी के वीजा शामिल
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के 'टैरिफ बम' के बाद भारतीयों पर H-1B वाला 'वीजा बम' भी फूट गया है. डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा पर जो एक लाख डॉलर (करीब 88 लाख रुपये) की फीस थोपी थी, वो आज यानी मंगलवार, 21 अक्टूबर से लागू हो गई है. अमेरिका में बसकर काम करने का सपना देखने वाले भारतीयों के लिए यह चोट कितनी बड़ी है, इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि 70 फीसदी H-1B वीजा भारतीयों को मिलते हैं. नई नोटिस में यह तीन बातें कही गई हैं:

  1. यूएस सिटिजनशिप एंड इमिग्रेशन सर्विसेज (USCIS) की वेबसाइड पर जारी नोटिस के अनुसार 19 सितंबर को राष्ट्रपति ट्रंप ने जो H-1B वीजा से जुड़ी जो उद्घोषणा जारी की थी, उसके तहत 21 सितंबर को रात के 12:01 बजे EDT (भारत में सुबह के 9.31 बजे) या उसके बाद दायर की गई नई H-1B वीजा याचिकाओं के साथ 1 लाख डॉलर का भुगतान होना चाहिए. 
  2.  USCIS ने यह भी माना है कि चूंकि अमेरिका की सरकार अभी शटडाउन में चल रही है इसलिए यह संभव है कि यह स्थिति अप्लाई करने के लिए जरूरी डॉक्यूमेंट (जैसे लेबर कंडिशन एप्लीकेशन या अमेरिका के लेबर डिपार्टमेंट से टेंपररी लेबर सर्टिफिकेशन) लेने में परेशानी हो सकती है, जिससे फॉर्म I-129 या फॉर्म I-129CW जमा करने की उनकी क्षमता में देरी हो सकती है. USCIS ने कहा है कि यदि याचिकाकर्ता यह साबित कर पाता है कि वह अन्य सभी शर्तो को पूरा करता है और सरकारी शटडाउन के कारण अपना वीजा अपडेट नहीं करा पाया तो इसे एक असाधारण परिस्थिति माना जाएगा और उसके आधार पर यह फैसला लिया जाएगा कि समय पर एप्लीकेशन दाखिल करने में उनकी विफलता को माफ करना है या नहीं.
  3. USCIS ने कहा कि वित्तीय वर्ष 2026 के लिए कानूनी रूप से H-1B वीजा जारी करने की जो रेगुलर सीमा है (65,000 H-1B वीजा) और अमेरिकी एडवांस डिग्री वालों को छूट के तहत जो सीमा है यानी मास्टर कैप (20,000 H-1B वीजा)- उतने एप्लीकेशन या याचिका प्राप्त हो गई है.

₹88 लाख वाले H-1B ‘वीजा बम' से किसे छूट?

USCIS ने साफ किया है कि 88 लाख रुपए की यह भारी फीस "स्टेटस में बदलाव" पर लागू नहीं होगी - यानी ऐसे मामले में जहां कोई व्यक्ति देश छोड़े बिना एक कैटेगरी से दूसरी कैटेगरी में बदलता है, जैसे F -1 छात्र H-1 बी स्टेटस में जा रहा है या अमेरिका के भीतर रहने के विस्तार (एक्सटेंशन) की मांग कर रहा है. हालांकि एजेंसी ने यह भी कहा है कि अमेरिका के बाहर रहने वाले वर्कर्स के दायर एप्लीकेशन या उन वर्कर्स के लिए दायर एप्लीकेशन जिन्हें एप्लीकेशन पर निर्णय होने से पहले अमेरिका छोड़ना होगा, उनको यह 88 लाख रुपए की फीस देनी होगी.

एजेंसी के मुताबिक, मौजूदा H-1B वीजा धारकों को भी अमेरिका छोड़ने और वापस आने से नहीं रोका जाएगा. USCIS ने साफ कहा है कि यह उद्घोषणा 21 सितंबर, 2025 को रात 12:01 बजे या उसके बाद दायर की गई नई H-1B याचिकाओं पर लागू होती है, जो उन लाभार्थियों की ओर से हैं जो अमेरिका से बाहर हैं और जिनके पास वैध H-1B वीजा नहीं है.”

अमेरिका में भारतीय छात्रों को राहत की सांस

सोमवार को सामने आई यह गाइडलाइन पहली बार है जब ट्रंप प्रशासन ने ऐलान के बाद से H-1B वीजा फीस पर सामने आए भ्रम और सवालों को संबोधित करने का प्रयास किया है. ऐसा लगता है कि नई फीस से F-1 स्टूडेंट स्टेटस रखने वाले वाले कॉलेज ग्रेजुएट और भारतीयों सहित H-1B वीजा वाले कर्मचारियों को राहत दिया गया है, क्योंकि इसमें कहा गया है कि जो लोग पहले से ही अमेरिका में हैं, उन पर 88 लाख रुपए की फीस नहीं लगाई जाएगी.

अमेरिका में काम करने का सपना देख रहे भारतीयों पर क्या असर?

अमेरिकी कंपनियां भारत जैसे देशों से एक्सपर्ट प्रोफेशनल्स को इसी वीजा के जरिए अमेरिका ले जाकर काम कराती हैं. एच-1बी वीजा 3 साल के लिए मिलता है, जिसे 3 साल और बढ़ाया जा सकता है. अमेरिका अभी हर साल 85 हजार एच-1बी वीजा बांटता है. इस वीजा पर अभी 1700 से 4500 डॉलर तक की फीस लगती थी, जिसे बढ़ाकर एक लाख डॉलर कर दिया गया है. इससे भारतीयों का ग्रीन कार्ड (नागरिकता) पाने का सपना और दूर हो सकता है. कंपनियां भारतीयों के लिए ग्रीन कार्ड स्पॉन्सर करने से भी पीछे हट सकती हैं. 

ये फीस कर्मचारियों को नहीं, कंपनियों को देनी होगी. कंपनियां जिस भी कर्मचारी को H-1B वीजा दिलाना चाहेंगी, उस हर प्रोफेशनल के लिए ये फीस लगेगी. सवाल है कि अमेरिका में काम कर रहे भारतीयों की नौकरी अब कितनी सेफ है? यह पूरी तरह उस कर्मचारी की वैल्यू पर निर्भर करेगा. अगर कंपनी को लगता है कि आप इतने कुशल हैं कि आपका काम कोई अमेरिकी नहीं कर सकता तो वह ये फीस दे सकती हैं. लेकिन कंपनियां एंट्री लेवल या मिड लेवल प्रोफेशनल्स पर इतना खर्च नहीं करना चाहेंगी. 

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