- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की H-1B वीजा पर 88 लाख रुपए की फीस 21 अक्टूबर से लागू हो गई है
- अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग ने साफ किया की F-1 वीजा (छात्र) से H-1B में स्विच करने वालों को फीस नहीं देना होगा
- अमेरिका में रहने वाले मौजूदा H-1B वीजा धारकों को वीजा संशोधन या अवधि बढ़ाने पर यह फीस नहीं देनी होगी
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा पर जो एक लाख डॉलर (करीब 88 लाख रुपये) की फीस थोपी थी, वो आज यानी मंगलवार, 21 अक्टूबर से लागू हो गई है. इस मामले में बड़ी खबर यह भी है कि H-1B वीजा पर यह भारी-भरकम फीस को लेकर अमेरिका में रह रहे भारतीयों को जो कंफ्यूजन था, वो अब दूर हो गया है. दरअसल विदेशी पेशेवरों को बड़ी राहत देते हुए अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग (DHS) ने H-1B वीजा की 88 लाख रुपए की आवेदन फीस पर नई गाइडलाइंस जारी की है. इसमें कई छूटें और अपवाद शामिल किए गए हैं.
नई गाडइलाइंस के अनुसार, जो लोग F-1 (स्टूडेंट) वीजा से H-1B वीजा कैटेगरी में स्विच कर रहे हैं, उन्हें यह भारी फीस नहीं देनी होगी. इसी तरह, अमेरिका के भीतर रहकर वीजा में संशोधन, उसके स्टेटस में बदलाव या अवधि बढ़ाने (एक्सटेंशन) के लिए आवेदन करने वाले H-1B वीजा धारकों पर भी यह फीस लागू नहीं होगी.
यह स्पष्टीकरण ऐसे समय आया है जब अमेरिकी वाणिज्य मंडल ने इस फैसले के खिलाफ ट्रंप प्रशासन पर मुकदमा दायर किया है. संगठन ने इस फीस को “गैरकानूनी” बताते हुए कहा कि इससे अमेरिकी व्यवसायों पर “गंभीर आर्थिक असर” पड़ेगा और कंपनियों को या तो अपने श्रम खर्च में भारी बढ़ोतरी करनी पड़ेगी या फिर कुशल विदेशी कर्मचारियों की भर्ती कम करनी होगी.
ट्रंप प्रशासन के खिलाफ यह दूसरी बड़ी कानूनी चुनौती है. इससे पहले, श्रमिक संघों, शिक्षा विशेषज्ञों और धार्मिक संस्थाओं के समूह ने भी 3 अक्टूबर को मुकदमा दायर किया था.
ट्रंप ने 19 सितंबर को हस्ताक्षरित इस घोषणा पर कहा था कि इसका उद्देश्य “अमेरिकी नागरिकों को रोजगार का प्रोत्साहन देना” है. हालांकि, इस फैसले से मौजूदा वीजा धारकों में भ्रम की स्थिति बन गई थी कि क्या वे अमेरिका लौट पाएंगे या नहीं. व्हाइट हाउस ने 20 सितंबर को न्यूज एजेंसी IANS से कहा था कि यह “एक बार लिया जाने वाली फीस” है, जो केवल नए वीजा आवेदनों पर लागू होगा, न कि नवीनीकरण या मौजूदा वीजा धारकों पर.
बता दें कि 2024 में भारतीय मूल के पेशेवरों को कुल स्वीकृत H-1B वीजाओं में 70 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी मिली थी. इसका कारण था वीजा स्वीकृति में लंबित मामलों का भारी बैकलॉग और भारत से आने वाले उच्च कौशल वाले आवेदकों की बड़ी संख्या.