US-Taliban ने Doha समझौते के उल्लंघन के आरोप एक-दूजे पर लगाए ,जानें यह क्या था, इसकी शर्तों का क्या हुआ?

अफगानिस्तान की राजधानी काबुल (Kabul) में अल-जवाहिरी (Al-Zawahiri) के अमेरिकी एयरस्ट्राइक (US Air strike) में मारे जाने के बाद अमेरिका और तालिबान दोनों एक दूसरे पर 2020 में हुए एक समझौते के उल्लंघन का आरोप लगा रहे हैं. जानें क्या था यह दोहा समझौता (Doha Agreement) और इसकी शर्तों का क्या हुआ?

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अफगानिस्तान (Afghanistan) में अल जवाहिरी (Al Zawahiri)) के खात्मे के बाद अमेरिका (US) और तालिबान (Taliban) को याद आया दोहा (Doha) समझौता (File Photo)

अफगानिस्तान (Afghanistan) में शांति बहाली के लिए 2020 में अमेरिका (US) और तालिबान (Taliban) ने एक संयुक्त घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए थे. अफगानिस्तान (Afghanistan) में अल कायदा (Al Qaeda) के सरगना अल जवाहिरी (Al- Zawahiri) के काबुल (Kabul) अमेरिकी हमले में मारे जाने के बाद अमेरिका (US) और तालिबान (Taliban) दोनों ने साल 2020 में दोहा में हुए समझौते (Doha Agreement) के उल्लंघन के आरोप एक-दूसरे पर लगाए. अमेरिका ने कहा कि अल जवाहिरी को शरण देकर तालिबान ने दोहा समझौते का घोर उल्लंघन किया तो तालिबान प्रवक्ता ने भी अमेरिका पर 2020 में अमेरिकी सेनाओं की अफगानिस्तान (Afghanistan) से वापसी के लिए हुए समझौते का उल्लंघन करने का आरोप लगाया. आइए आपको बताते हैं कि साल 2020 में अमेरिका और तालिबान के बीच क्या समझौता हुआ था, उसकी शर्तें क्या थीं और उन शर्तों को अफगानिस्तान में शांति के लिए कितना माना गया. 

क्या था दोहा समझौता? 

अफगानिस्तान  को लेकर कतर की राजधानी दोहा में हो रहे शांति के प्रयासों के दौरान अमेरिका और तालिबान के बीच एक फरवरी 2020 में  एक समझौता हुआ था.  विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ और भारत समेत कई अन्य विदेशी राजनयिकों की मौजूदगी में अमेरिका ने दोहा में तालिबान के इस समझौते पर हस्ताक्षर किये थे.

इस संयुक्त घोषणा पत्र में कहा गया था कि "इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान जो संयुक्त राष्ट्र का एक सदस्य है और अमेरिका द्वारा मान्यता प्राप्त देश है साथ ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसे अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार संप्रभु देश मानता है. अफगानिस्तान और अमेरिका साथ मिल कर एक समग्र और लंबे समय तक बने रहने वाले शांति समझौते पर काम करेंगे जिससे अफगानिस्तान में युद्ध खत्म हो और इससे सभी अफगान नागरिकों का हित हो. यह समझौता क्षेत्रीय और स्थिरता और वैश्विक सुरक्षा के लिए भी बेहतर होगा."  अमेरिका -अफगानिस्तान संयुक्त घोषणा पत्र में अफगानिस्तान की शांति के लिए अमेरिका और तालिबान मुख्य तौर से चार बातों पर सहमत हुए थे.

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पहली शर्त 

समझौते की पहला भाग या पहली शर्त यह थी कि यह समझौता यह गारंटी देता है कि अफगान जमीन का इस्तमाल किसी अंतरराष्ट्रीय आतंकी समूह या व्यक्ति को नहीं करने दिया जाएगा जो अमेरिका या उसके सहयोगियों के खिलाफ काम करता हो.   

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क्या हुआ? 

अफगानिस्तान में अमेरिका के 9/11 हमले के जिम्मेदार आतंकी संगठन अल-कायदा के सरगना अल जवाहिरी को शरण मिली. अमेरिकी एयरस्ट्राइक में अल-जवाहिरी मारा गया. अमेरिका ने कहा तालिबान ने 2020 के दोहा समझौते का घोर उल्लंघन किया. लेकिन तालिबान ने काबुल में अमेरिकी एयरस्ट्राइक को अंतरराष्ट्रीय नियमों के खिलाफ बताया.  हालांकि तालिबान अफगानिस्तान में आतंकी संगठन आईएसआईएस-के आंतकी संगठन के खिलाफ सख़्त है. तालिबान और आईएसआईएस-के के बीच कई आपसी झड़प भी हो चुकी हैं.  

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दूसरी शर्त 

अमेरिकी सेना और सभी गठबंधन सेनाओं की अफगानिस्तान से वापसी के लिए एक टाइमलाइन निर्धारित की जाएगी. 

क्या हुआ? 
शांति समझौते के अभाव और तालिबान के दबाव में अमेरिकी सेनाओं को अफगानिस्तान से समय से पहले ही वापसी करनी पड़ी थी.

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तीसरी शर्त 

एक राजनैतिक स्थिरता हल निकाला जाएगा जो तालिबान और अफगानिस्तान की सरकार की नेगोशिएशन टीम आपस में बात करके निकालेंगे.  

क्या हुआ?

अफगानिस्तान की तत्कालीन सरकार और तालिबान के बीच कभी अफगानिस्तान में शांति के लिए आपसी सहमति से हल नहीं निकल सका. अफगानिस्तान में तालिबान ने तत्कालीन सरकार को पलट कर सत्ता पर कब्ज़ा जमा लिया. इससे अफगानिस्तान से भागने के लिए लोगों में भगदड़ मच गई थी.    

चौथी शर्त 

एक स्थाई और समग्र युद्धविराम होगा 

क्या हुआ?

अफगानिस्तान में युद्धविराम के लिए तालिबान ने शर्त रखी थी कि जेल  में बंद उसके हजारों लड़ाकों को छोड़ा जाए. तत्कालीन अफगान सरकार ने जेलों में बंद अफगान लड़ाकों की रिहाई की. लेकिन जब तालिबान राजधानी काबुल पर कब्जे के लिए आगे बढ़े तो देश के कई शीर्ष नेता डर से देश छोड़ कर भाग गए और अफगान सेना को तालिबान के सामने हथियार डालने पड़े. 

इन सभी चारों भागों को आपस में संबंधित और एक दूसरे पर निर्भर करने वाला बताया गया था. समझौते के चार भागों को लंबे चले युद्ध के बाद अफगानिस्तान और पड़ोसी देशों में शांति चाहने वाले पक्षों के लिए महत्वपूर्ण बताया गया था. जिस मुल्ला बरादर ने तालिबान की ओर से इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे बाद में अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनने के बाद उसे पर्दे के पीछे धकेल दिया गया.   
 

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