युगांडा के राष्ट्रपति योवेरी मुसेवेनी ने भारतीय प्रवासियों के योगदान की सराहना की

युगांडा को 1964 में काहिरा में आयोजित गुटनिरपेक्ष आंदोलन के दूसरे शिखर सम्मेलन में संगठन का सदस्य बनाया गया था और देश पर 1971 से 1979 तक युगांडा के तीसरे राष्ट्रपति के रूप में अमीन का शासन था.

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युगांडा के राष्ट्रपति योवेरी मुसेवेनी
कंपाला:

युगांडा के राष्ट्रपति योवेरी मुसेवेनी ने 1972 में बड़े पैमाने पर निष्कासन और संघर्षों के बावजूद देश की अर्थव्यवस्था में दक्षिण एशियाई समुदाय, विशेष रूप से भारतीय प्रवासियों के योगदान की सराहना की है. युगांडा ने 15 से 20 जनवरी तक गुटनिरपेक्ष आंदोलन (एनएएम) के 19वें शिखर सम्मेलन की मेजबानी की. मुसेवेनी ने पूर्व सैन्य शासक ईदी अमीन द्वारा की गई गलतियों के बारे में बात की, जिन्होंने युगांडा में बसे एशियाई मूल के लोगों को देश छोड़ने के लिए मजबूर किया जिनमें से अधिकांश भारतीय मूल के थे.

युगांडा को 1964 में काहिरा में आयोजित गुटनिरपेक्ष आंदोलन के दूसरे शिखर सम्मेलन में संगठन का सदस्य बनाया गया था और देश पर 1971 से 1979 तक युगांडा के तीसरे राष्ट्रपति के रूप में अमीन का शासन था.

एनएएम सम्मेलन में मुसेवेनी ने कहा, ‘‘एनएएम देशों ने भी युगांडा की तरह गलतियां कीं. तब हमारे पास ईदी अमीन नाम का एक व्यक्ति था.''

मुसेवेनी ने कहा, 'बहुत ही कम समय में, उन्होंने हमारे एशियाई लोगों विशेषकर भारत और पाकिस्तान मूल के लोगों को निष्कासित कर दिया.' उन्होंने कहा, ‘‘ आपके पास एक एनएएम देश का नेता था जो अपनी ही अर्थव्यवस्था को कमजोर कर रहा था.''

मुसेवेनी ने कहा कि भारतीय मूल के लोगों ने चीनी, होटल और इस्पात उत्पादन में निवेश किया था. राष्ट्रपति ने कहा कि युगांडा छोड़ने के लिए मजबूर होने के बाद देश में रह रहे एशियाई लोगों का एक बड़ा और समृद्ध समुदाय दुनिया भर में खुद को बिखरा हुआ पाया व कई लोगों ने अपना वह व्यवसाय खो दिया जिसके लिए उन्होंने सालों तक मेहनत की थी.

राष्ट्रपति ने उस अवधि के दौरान आर्थिक वृद्धि और विकास के अवसर से चूक जाने को लेकर खेद व्यक्त किया. उन्होंने अमीन द्वारा पैदा की गई समस्याओं को दूर करने के लिए युगांडा सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर भी चर्चा की.

उन्होंने कहा, ‘‘जब हम सरकार में आए, तो हमने अपने एशियाई नागरिकों और गैर-नागरिकों की संपत्तियां वापस कर दीं जो अमीन ने उनसे ले ली थीं.''

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राष्ट्रपति ने कहा कि 1980 और 1990 के दशक में देश लौटने के बाद से भारतीय उपमहाद्वीप के एशियाई लोग एक बार फिर देश की अर्थव्यवस्था का आधार बन गए हैं.

मुसेवनी कहा, ‘‘मैं लोगों से पूछ रहा था कि हमारे लौटे भारतीयों ने कितनी फैक्टरी बनाई हैं. उन्होंने मुझे उन 900 फैक्टरी के बारे में बताया जो उन्होंने वापस आने के बाद बनाई थीं.'' शिखर सम्मेलन के दौरान उन्होंने एनएएम के गठन में भारत की भूमिका को स्वीकार किया.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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